भारतीय खेती में आधुनिक तकनीकों का दौर चल रहा है, और मल्चिंग ऐसी ही एक क्रांतिकारी विधि है जो पारंपरिक तरीकों से कहीं आगे है। चाहे आप सब्जियों, फलों या अनाज की खेती कर रहे हों, मल्चिंग से मिट्टी की नमी बनी रहती है, खरपतवार कम होते हैं, और फसल की गुणवत्ता बढ़ जाती है। बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के किसान इसे अपनाकर 20-25% अधिक उपज पा रहे हैं। लेकिन क्या यह हर खेत के लिए जरूरी है? आइए जानते हैं मल्चिंग क्या है, इसके फायदे, लागत, तरीका और किन फसलों में इसका सबसे अच्छा उपयोग होता है।
मल्चिंग क्या है और क्यों अपनाएँ?
मल्चिंग खेती की एक सरल लेकिन प्रभावी तकनीक है, जिसमें फसल लगाने के बाद मिट्टी की सतह को सूखी घास, पत्तियों, पराली या प्लास्टिक शीट जैसी सामग्री से ढक दिया जाता है। यह परत मिट्टी को सूरज की तेज किरणों, हवा और बारिश से बचाती है। भारत जैसे जलवायु वाले देश में, जहाँ गर्मी और सूखा आम समस्या है, मल्चिंग पानी की 30-50% बचत करती है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक मिट्टी के कटाव को रोकती है और पौधों को रोगों से दूर रखती है। अगर आपकी मिट्टी रेतीली या कम उपजाऊ है, तो मल्चिंग आपकी फसल को नई जिंदगी दे सकती है। लेकिन ज्यादा लागत वाले प्लास्टिक मल्च के बजाय जैविक विकल्प (जैसे धान-गेहूँ की पराली) से शुरू करें, जो मिट्टी को लंबे समय तक उपजाऊ बनाए रखते हैं।
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मल्चिंग के प्रमुख फायदे
मल्चिंग न केवल मेहनत बचाती है, बल्कि खेती की कुल लागत को 15-20% घटाती है। सबसे बड़ा फायदा पानी की बचत है – एक बार सिंचाई के बाद मिट्टी में नमी 40% तक बनी रहती है, जिससे सिंचाई की संख्या 2-3 कम हो जाती है। खरपतवार न उगने से मजदूरी पर 50% खर्च बचता है, और फसलें मिट्टी से सीधे न छूने से सड़न या कीटों से सुरक्षित रहती हैं।
गर्मी में मिट्टी ठंडी और सर्दी में गर्म रहती है, जिससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं। परिणामस्वरूप, उपज में 25% तक इजाफा होता है। उदाहरण के लिए, मध्य प्रदेश के शाहडोल जिले के किसान मल्चिंग से सब्जियों में 2-2.5 लाख रुपये प्रति एकड़ की कमाई कर रहे हैं। लेकिन याद रखें, ज्यादा मल्च न डालें 5-10 सेंटीमीटर की परत पर्याप्त है।
किन फसलों और खेतों में मल्चिंग सबसे जरूरी?
मल्चिंग हर फसल के लिए फायदेमंद है, लेकिन यह खासकर उन खेतों में चमत्कार करती है जहाँ पानी की कमी या खरपतवार की समस्या ज्यादा हो। सब्जियों (टमाटर, भिंडी, बैंगन, शिमला मिर्च) और फलों (तरबूज, खरबूजा, संतरा) की खेती में 50% तक पानी बचत होती है। अनाजों जैसे गेहूँ या मक्का में पराली मल्चिंग से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। रेतीली या जलभराव वाली मिट्टी वाले खेतों में यह सबसे उपयोगी है, क्योंकि यह मिट्टी का कटाव रोकती है। छोटे खेतों (1-2 एकड़) वाले किसानों के लिए शुरूआत आसान है। अगर आप जैविक खेती कर रहे हैं, तो सूखी घास या पत्तियों का मल्च चुनें यह मिट्टी को जैविक खाद भी प्रदान करता है।
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मल्चिंग का तरीका स्टेप बाय स्टेप गाइड
मल्चिंग करना आसान है, लेकिन सही तरीके से करें तो फसल 20% तेज बढ़ेगी। सबसे पहले खेत की जुताई करें और पौधे लगाने के लिए क्यारियाँ बनाएँ। फिर 1.2 मीटर चौड़ी प्लास्टिक शीट (या जैविक सामग्री) को ट्रैक्टर से बिछाएँ – शीट के बीच 30-40 सेंटीमीटर की जगह छोड़ें, जहाँ पौधे लगेंगे। प्लास्टिक मल्च को किनारों से मिट्टी से दबाकर फिक्स करें। जैविक मल्च के लिए सूखी पराली या पत्तियाँ 5-10 सेंटीमीटर मोटी परत में बिछाएँ। सिंचाई ड्रिप सिस्टम से करें, ताकि पानी सीधे जड़ों तक पहुँचे। फसल कटाई के बाद मल्च हटाकर नई लगाएँ। शुरुआत में 1/4 एकड़ पर ट्रायल करें।
कम खर्च में बड़ा रिटर्न
मल्चिंग की लागत फसल और सामग्री पर निर्भर करती है। प्लास्टिक मल्च (ब्लैक या सिल्वर-ब्लैक) के लिए प्रति एकड़ 8,000-12,000 रुपये लगते हैं – इसमें शीट (50-60 माइक्रॉन मोटी) और बिछाने की मजदूरी शामिल है। जैविक मल्च (पराली) मुफ्त या 2,000-5,000 रुपये प्रति एकड़ सस्ता पड़ता है। कुल मिलाकर, पहली फसल में 10,000-25,000 रुपये का निवेश होता है, लेकिन पानी-खरपतवार पर 30-50% बचत से अगली फसल में लाभ साफ दिखता है। सरकार 50% सब्सिडी दे रही है, इसलिए कृषि विभाग से संपर्क करें। एक एकड़ में 40-50 क्विंटल उपज से 1-1.5 लाख का मुनाफा संभव है।
मल्चिंग अपनाकर आप न केवल पर्यावरण बचाएँगे, बल्कि खेती को लाभकारी बनाएँगे। अगर आपका खेत सूखा प्रभावित है, तो आज ही शुरू करें। अधिक जानकारी के लिए स्थानीय कृषि केंद्र से सलाह लें।
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