किसान भाइयों ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) की ZTM & BPD इकाई ने आप के लिए एक शानदार पहल की है। 25 अगस्त से 29 अगस्त 2025 तक दिल्ली में प्लांट पैथोलॉजी डिवीजन के साथ मिलकर उन्होंने पांच दिवसीय राष्ट्रीय प्रशिक्षण कार्यक्रम “सतत कृषि व्यवसाय के लिए मशरूम की खेती” का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में देशभर से छात्र, किसान, महिला उद्यमी, और सरकारी अधिकारी शामिल हुए। IARI के निदेशक डॉ. च. श्रीनिवास राव ने उद्घाटन करते हुए मशरूम को ग्रामीण उद्यमिता और पर्यावरण के लिए वरदान बताया। उन्होंने प्रतिभागियों से इस ज्ञान को लेकर स्टार्टअप शुरू करने की प्रेरणा दी। साथ ही, एक नई प्रशिक्षण पुस्तिका “मशरूम की खेती: सतत व्यवसाय का रास्ता” भी लॉन्च की गई।
वैज्ञानिकों का मार्गदर्शन, सीखें और कमाएं
प्रशिक्षण के दौरान IARI के दिग्गज वैज्ञानिकों ने अपने अनुभव साझा किए। डॉ. एम.एस. सहारण ने मशरूम उत्पादन की बारीकियां बताईं, जबकि डॉ. दीबा कमिल और डॉ. अमृता दास ने खाद बनाने और बीज उत्पादन की तकनीक सिखाई। ZTM & BPD यूनिट की प्रभारी डॉ. आकृति शर्मा ने शिटाके, ऑयस्टर, और मिल्की मशरूम जैसी किस्मों की खेती के गुर बताए। प्रतिभागियों को मशरूम का पोषण, औषधीय गुण, प्रसंस्करण, और पैकेजिंग की ट्रेनिंग दी गई। इसके अलावा, कृषि अपशिष्ट से खाद बनाना और उद्यमिता विकास के अवसरों पर भी चर्चा हुई। यह ज्ञान हमारे गाँव के लोगों के लिए कमाई का नया जरिया बन सकता है।
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प्रशिक्षण के चौथे दिन, 28 अगस्त को प्रतिभागियों को हरियाणा के सोनिपत जिले के एक मशरूम फार्म की यात्रा कराई गई। वहां उन्होंने खाद तैयार करने से लेकर मशरूम की पैकिंग और बाजार तक की पूरी प्रक्रिया देखी। इस दौरे ने उनके व्यावसायिक कौशल को निखारा और उन्हें मशरूम खेती की वास्तविकता से रूबरू कराया। गाँव के किसान भाई इसे अपने खेतों में आजमा सकते हैं, क्योंकि यह तकनीक कम जगह और संसाधनों में भी फलती-फूलती है। यह अनुभव उनके लिए एक प्रेरणा बन गया, जो उन्हें अपने घर लौटकर कुछ नया करने को प्रोत्साहित कर रहा है।
समापन का उत्साह, नई शुरुआत की राह
29 अगस्त को हुए समापन समारोह में IARI के संयुक्त निदेशक (अनुसंधान) डॉ. सी. विश्वनाथन ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की। उन्होंने सभी प्रतिभागियों को बधाई दी और IARI के नवाचारों से जुड़े रहने की सलाह दी। समारोह में सभी को प्रशिक्षण प्रमाणपत्र वितरित किए गए, जो उनके लिए एक नई पहचान बन गए। डॉ. विश्वनाथन ने कहा कि मशरूम खेती से ग्रामीण युवा और महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकते हैं। यह पल हमारे गाँव के लोगों के लिए एक नई शुरुआत की तरह था, जो उन्हें मशरूम व्यवसाय में कदम रखने के लिए प्रेरित कर रहा है।
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प्रशिक्षण से लौटे प्रतिभागियों ने इस कार्यक्रम की जमकर तारीफ की। किसानों ने कहा कि उन्हें वैज्ञानिक जानकारी के साथ-साथ खेत स्तर का अनुभव मिला, जो उनके लिए सोने की तरह है। महिला उद्यमियों ने बताया कि अब वे मशरूम की खेती से घर बैठे कमाई शुरू कर सकती हैं। छात्रों ने इसे भविष्य की नौकरी और स्टार्टअप का आधार बताया। इस पहल ने न सिर्फ ज्ञान दिया, बल्कि हमारे गाँव के लोगों में आत्मविश्वास भी जगाया। यह प्रशिक्षण साबित करता है कि मशरूम खेती एक ऐसा रास्ता है, जो रोजगार और सेहत दोनों दे सकता है।
देसी तरीके से मशरूम उगाएं
मशरूम खेती शुरू करने के लिए पुराने तरीकों को भी अपनाया जा सकता है। कृषि अपशिष्ट, जैसे भूसा और पुआल, को खाद में मिलाकर तैयार करें। इसे गर्म करके कीटाणुरहित करें, फिर बीज (स्पॉन) डालें। गमले या छोटे कमरों में नमी बनाए रखें और हल्की रोशनी दें। नीम की पत्तियों का छिड़काव कीटों से बचाने के लिए देसी नुस्खा है। मशरूम 15-20 दिन में तैयार हो जाता है। इसे सुखाकर या ताजा बेचकर अच्छी कमाई हो सकती है। यह तरीका कम लागत में शुरू हो सकता है और गाँव की महिलाओं के लिए घरेलू व्यवसाय बन सकता है।
मशरूम खेती से प्रति किलो 150-200 रुपये की कमाई हो सकती है। एक छोटे कमरे से महीने में 50-100 किलो मशरूम तैयार हो सकते हैं, जो 7,500-20,000 रुपये का मुनाफा दे सकता है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन (NHM) और प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत बीज, उपकरण, और प्रशिक्षण पर सब्सिडी मिलती है। अपने नजदीकी कृषि केंद्र या IARI की वेबसाइट से संपर्क करें। ICAR और राज्य सरकारें ग्रामीण युवाओं को लोन और तकनीकी सहायता भी दे रही हैं, ताकि मशरूम खेती हर गाँव तक पहुंचे।
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