सरसों में ज्यादा तेल चाहिए? ये 3 चीजें खेत में डालते ही बदल जाएगी पूरी फसल

सरसों की बुवाई का आखिरी समय चल रहा है और ठंडी हवाओं के बीच किसान भाई फसल की चिंता कर रहे हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की मिट्टी में 60 प्रतिशत से ज्यादा जगहों पर सल्फर और जिंक की कमी है, जिससे पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और तेल की गुणवत्ता घट जाती है। लेकिन राहत की बात ये है कि प्रोफेसर डॉ. आई.के. कुशवाहा जैसे विशेषज्ञों ने एक साधारण फॉर्मूला बताया है जिंक सल्फेट, बेंटोनाइट सल्फर और पोटाश का सही इस्तेमाल।

 इन तीन चीजों को समय पर डालने से तेल की मात्रा 40 प्रतिशत तक पहुँच जाती है, फसल रोगों से बची रहती है और प्रति एकड़ 2-3 क्विंटल अतिरिक्त उपज मिल जाती है। सरकार तिलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है, लेकिन ये छोटे-छोटे कदम ही आत्मनिर्भरता लाएँगे। अभी बुवाई चल रही है, देरी न करें आज ही खेत का जायजा लें और ये फंडा आजमाएँ।

सरसों की फसल में तेल बढ़ाने का आसान फॉर्मूला

सरसों रबी की मुख्य तिलहनी फसल है, जो गेहूँ के साथ मिश्रित या अकेले बोई जाती है। लेकिन तेल की गुणवत्ता ही इसका असली दम है अगर 40 प्रतिशत तक पहुँच गई तो मिल वाले ऊँचा दाम देंगे। विशेषज्ञ बताते हैं कि मिट्टी में जिंक, सल्फर और पोटाश की कमी से फूल झड़ जाते हैं, दाने छोटे रह जाते हैं और तेल निकलने पर फायदा कम हो जाता है। पीली और काली दोनों सरसों में ये समस्या आम है।

अच्छी बात ये कि बेसल डोज में न डाला हो तो छिड़काव से भी काम चल जाता है। इससे पत्तियाँ गहरी हरी हो जाती हैं, फलियाँ मोटी बनती हैं और बीमारियाँ दूर रहती हैं। किसान भाई, ये तीनों सस्ते हैं और सरकारी दुकानों पर आसानी से मिल जाते हैं।

जिंक सल्फेट का जादू

जिंक की कमी से सरसों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और फूल कम लगते हैं, जिससे तेल घट जाता है। डॉ. कुशवाहा की सलाह है कि बुवाई के समय ही 20-25 किलो जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिला दें। अगर भूल गए तो छिड़काव करें 2-3 ग्राम चैलेटेड जिंक को 500 लीटर पानी में घोलकर फूल आने से पहले छिड़क दें। इससे जड़ें मजबूत होती हैं, दाने अच्छे भरते हैं और तेल की मात्रा 2-3 प्रतिशत बढ़ जाती है। यूपी-बिहार जैसे इलाकों में जहाँ मिट्टी में जिंक कम होता है, ये कदम अनिवार्य है। एक बार छिड़काव से ही 15-20 दिन तक असर रहता है।

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सल्फर का कमाल

सल्फर सरसों का सबसे बड़ा दोस्त है, क्योंकि ये तेल के निर्माण में सीधा मदद करता है। बेंटोनाइट सल्फर को बुवाई के समय 50-60 किलो प्रति हेक्टेयर डालें, जो मिट्टी में धीरे-धीरे घुलकर पोषण देता रहता है। अगर छिड़काव चाहिए तो सल्फर 80WDG का 2-3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर फूल आने पर डाल दें। इससे पत्तियों का रंग गहरा हो जाता है, फलियाँ मोटी बनती हैं और तेल की मात्रा 38-40 प्रतिशत तक पहुँच जाती है। सबसे बड़ी बात, ये सफेद रोली और झुलसा जैसे रोगों को भी रोकता है। सर्दियों में जब नमी बढ़ती है, ये फसल को मजबूत ढाल देता है।

पोटाश की पूर्ति न भूलें

पोटाश की कमी से फलियाँ पतली रह जाती हैं और तेल निकलते समय फायदा कम होता है। बेसल डोज में 40-50 किलो म्यूरेट ऑफ पोटाश डालें, लेकिन अगर नहीं हुआ तो छिड़काव से काम चलाएँ। 19-19-19 या 20-20-20 का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 1-2 बार छिड़काव करें पहला फूल आने पर, दूसरा फलियाँ बनने पर। इससे पोटाश की कमी पूरी होती है, पौधा मजबूत होता है और तेल की गुणवत्ता चमकदार हो जाती है। ये छोटा सा कदम उत्पादन को 10-15 प्रतिशत बढ़ा देता है।

सावधानियाँ और अतिरिक्त टिप्स

इन तीनों को डालते समय सावधानी बरतें – छिड़काव सुबह या शाम करें, धूप में न करें वरना पत्तियाँ जल सकती हैं। पानी साफ और हल्का गुनगुना इस्तेमाल करें। अगर मिट्टी अम्लीय है तो चूना मिला लें। सरसों को गेहूँ के साथ मिश्रित बो रहे हैं तो दूरी 30-10 सेंटीमीटर रखें। सरकारी योजनाओं से सब्सिडी पर ये उर्वरक लें। डॉ. कुशवाहा कहते हैं कि जिंक-सल्फर-पोटाश का संतुलन ही तेल उत्पादन की कुंजी है। इनसे फसल न सिर्फ स्वस्थ रहेगी बल्कि बाजार में ऊँचा दाम भी मिलेगा।

सरसों की खेती से आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार हो रहा है। इन तीन चीजों को अपनाकर तेल की मात्रा बढ़ाएँ और मुनाफा दोगुना करें। बुवाई का समय खत्म होने वाला है, अभी खेत पर नजर रखें और ये फंडा आजमाएँ। मार्च में जब कटाई होगी, तब आपकी जेब भरी हुई होगी।

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  • Shashikant

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