चक्रवात मोंथा के असर से झांसी की बर्बादी में भी कैसे बची एक फसल? जानिए नैनो तकनीक का कमाल

Nano Fertilizers in Farming: किसान भाइयों, चक्रवात मोंथा के असर से तेज हवाओं और बेमौसम बारिश ने खेतों को तबाह कर दिया। झाँसी में 80-90% धान की फसलें गिर गईं, खेत तालाब बन गए, और कई किसानों ने आर्थिक संकट में जान तक दे दी। मोंठ तहसील के समथर क्षेत्र में एक किसान ने 15 बीघा धान बर्बाद होने पर फांसी लगा ली। बंडेलखंड के सूखे इलाके में जहां किसान वर्षा पर निर्भर थे, वहां ये आपदा ने सब कुछ उजाड़ दिया। लेकिन इस अंधेरे में एक रोशनी की किरण है – जनपद झांसी के एक किसान भाई ने, जिनकी धान फसल में नुकसान मात्र 1% से भी कम रहा। कारण? नैनो उर्वरकों का वैज्ञानिक प्रयोग।

नैनो उर्वरकों का चमत्कार

झांसी जैसे क्षेत्र में धान की खेती किसानों की मुख्य आय का स्रोत है। लेकिन तेज हवा से पौधे उखड़ गए, बारिश से बालियां सड़ गईं, और कई जगह अंकुरण तक निकल आया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मोंठ, गुरसराय और बामौर जैसे इलाकों में हजारों बीघा फसल डूब गई। लेकिन किसान जी की फसल खड़ी रही। उन्होंने दानेदार डीएपी का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया और दानेदार यूरिया को सिर्फ 25% तक सीमित रखा। इसके बजाय नैनो उर्वरकों पर भरोसा किया, जो पोषक तत्वों को पौधों तक तेजी से पहुंचाते हैं। नैनो जिंक से जड़ें मजबूत बनीं, नैनो डीएपी ने पोषण संतुलित रखा, और नैनो यूरिया ने हवा-बारिश में पौधों को लचीलापन दिया।

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किसान की खेती की रणनीति, नैनो उर्वरकों का चरणबद्ध उपयोग

किसान ने अपनी धान की खेती को वैज्ञानिक बनाया। सबसे पहले नर्सरी में नैनो जिंक का स्प्रे किया। ये सूक्ष्म पोषक तत्व जड़ों को मजबूत बनाता है और पौधों को तनाव सहने की क्षमता देता है। रोपाई के समय पौधों की जड़ों को नैनो डीएपी के घोल में डुबोया – ये फॉस्फोरस और नाइट्रोजन को सीधे जड़ों तक पहुंचाता है, जिससे पौधे तेजी से स्थापित होते हैं। खड़ी फसल में दो स्प्रे किए – पहला नैनो डीएपी और दूसरा नैनो यूरिया। नैनो यूरिया नाइट्रोजन को धीरे-धीरे रिलीज करता है, जो हवा-बारिश में भी पोषण बनाए रखता है। इफको जैसे संस्थानों के अनुसार, नैनो डीएपी पारंपरिक डीएपी से सस्ता है – एक एकड़ में 75 रुपये की बचत।

नैनो उर्वरकों के फायदे, पर्यावरण और किसान दोनों के हित में

नैनो उर्वरक छोटे कणों (1-100 नैनोमीटर) के कारण पौधों द्वारा 80-90% अवशोषित हो जाते हैं, जबकि पारंपरिक उर्वरक 40-50% ही काम करते हैं। बाकी मिट्टी में रहकर प्रदूषण फैलाते हैं। नैनो जिंक से पौधों की जड़ें गहरी होती हैं, जो हवा में स्थिरता देती हैं। नैनो डीएपी फॉस्फोरस की कमी दूर करता है, जो धान में फुटाव बढ़ाता है। नैनो यूरिया से नाइट्रोजन का अपव्यय रुकता है, और ग्रीनहाउस गैस कम उत्सर्जित होती है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के अनुसार, धान में नैनो उर्वरक उपज 15-20% बढ़ाते हैं और लागत 20-30% घटाते हैं। झांसी जैसे क्षेत्र में, जहां बेमौसम बारिश आम है, ये उर्वरक फसल को लचीला बनाते हैं।

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झांसी के किसानों के लिए सबक

झांसी में धान फसल का नुकसान सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि कई परिवारों का दर्द है। लेकिन किसान जी की कहानी उम्मीद जगाती है। सरकार की नैनो उर्वरक योजना (इफको नैनो डीएपी, नैनो यूरिया) से सब्सिडी मिल रही है। किसानों को सलाह: नर्सरी में नैनो जिंक स्प्रे करें, रोपाई पर नैनो डीएपी जड़ डिप, और खड़ी फसल पर 2 स्प्रे। इससे फसल मजबूत बनेगी, नुकसान कम होगा। स्थानीय कृषि केंद्रों से ट्रेनिंग लें। 2025 के रबी सीजन से पहले ये बदलाव अपनाएं।

झांसी के किसान ने साबित कर दिया कि नैनो उर्वरक प्राकृतिक आपदाओं में फसल का सहारा बन सकते हैं। जहां 80-90% फसलें बर्बाद हो गईं, वहां 1% नुकसान के साथ खड़ी फसल हर किसी के लिए प्रेरणा है। नैनो जिंक, डीएपी और यूरिया अपनाकर लागत घटाएं, उपज बढ़ाएं। झांसी जैसे क्षेत्रों में ये तकनीक क्रांति लाएगी।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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