सब्जियां-फल नहीं, इस घास की खेती से किसान कमा रहें 6 महीने में लाखों, जानें तरीका

Napier Grass Ki Kheti: नेपियर घास जिसे हाथी घास या बाजरा नेपियर हाइब्रिड घास भी कहा जाता है, पशुपालन के लिए एक उच्च उत्पादन वाली बारहमासी चारा फसल है। यह मूल रूप से अफ्रीका से आई है लेकिन भारत में पिछले कई वर्षों से सफलतापूर्वक उगाई जा रही है। भारतीय चारा अनुसंधान संस्थान (IGFRI) झांसी और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की रिपोर्ट्स के अनुसार नेपियर घास सूखा सहन करने वाली तथा तेजी से बढ़ने वाली फसल है। एक बार लगाने पर 7 से 8 साल तक उत्पादन देती रहती है।

उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्य प्रदेश महाराष्ट्र गुजरात कर्नाटक और दक्षिणी राज्यों में डेयरी किसान इसे बड़े स्तर पर उगा रहे हैं। चारे की बढ़ती कीमतों के कारण इसकी मांग और बढ़ गई है। एक हेक्टेयर से सालाना 800 से 1500 क्विंटल तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है।

जलवायु और मिट्टी की आवश्यकताएं

नेपियर घास गर्म और उप-आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह उगती है। तापमान 15 से 40 डिग्री सेल्सियस तक उपयुक्त रहता है। यह सूखा सहन कर लेती है लेकिन अच्छी पैदावार के लिए 600 से 1000 मिलीमीटर वार्षिक वर्षा वाली जगह बेहतर है। बलुई दोमट से लेकर दोमट मिट्टी में सफल होती है। मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 8 तक ठीक रहता है। जल निकास वाली मिट्टी चुनें ताकि पानी रुकने से जड़ें न सड़ें। कम उपजाऊ या बंजर जमीन में भी जैविक खाद डालकर अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है।

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उन्नत किस्में और उनका चयन

भारत में कई हाइब्रिड और उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। CO-3 CO-4 CO-5 और CO-BN-5 तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की किस्में हैं जो उच्च उत्पादन देती हैं। IGFRI की पीबीएन-83 पीबीएन-233 और एपीबीएन-1 किस्में उत्तर भारत के लिए उपयुक्त हैं। ये किस्में प्रोटीन युक्त और पौष्टिक होती हैं। पशु इन्हें पसंद करते हैं और दूध उत्पादन में वृद्धि होती है। प्रमाणित नर्सरी या कृषि विश्वविद्यालय से रूट स्लिप या स्टेम कटिंग लें। 2025 की नवीनतम सिफारशों में CO-5 और पीबीएन-345 को अधिक उत्पादन वाली पाया गया है।

रोपण का समय और विधि

रोपण फरवरी-मार्च या जून-जुलाई में किया जा सकता है। बारिश शुरू होने से पहले रोपण करने पर पौधा अच्छी तरह स्थापित हो जाता है। रूट स्लिप या दो आँख वाली कटिंग का उपयोग करें। दूरी 50 सेमी x 50 सेमी रखें जिससे प्रति हेक्टेयर 40,000 से 50,000 पौधे लग जाते हैं। रोपण के समय गोबर खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर मिलाएं। नाइट्रोजन 150-200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वर्ष में तीन भागों में दें। पहली कटाई 70-80 दिन बाद तथा बाद में हर 40-45 दिन में की जा सकती है। साल में 8 से 10 कटाई आसानी से हो जाती है।

देखभाल और सिंचाई प्रबंधन

रोपण के बाद पहली 2-3 सिंचाई जरूरी है उसके बाद बारिश पर निर्भर रह सकती है। गर्मी में 15-20 दिन के अंतर पर पानी दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए शुरुआती 2 महीने निराई करें उसके बाद घास खुद दबा लेती है। कीट-रोग बहुत कम लगते हैं लेकिन दीमक या तना छेदक लगे तो क्लोरपायरीफॉस का छिड़काव करें। जैविक खेती के लिए नीम आधारित दवाएं उपयोगी हैं। हर कटाई के बाद नाइट्रोजन की ऊपरी ड्रेसिंग दें ताकि नई कल्ले तेजी से आएं।

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उत्पादन लागत और कमाई

पहले साल रोपण की लागत 25,000 से 35,000 रुपये प्रति हेक्टेयर आती है। उसके बाद सालाना रखरखाव 15,000-20,000 रुपये। हरा चारा 1.5 से 2 रुपये प्रति किलोग्राम बिकता है। एक हेक्टेयर से सालाना 4-6 लाख रुपये तक की कमाई संभव है। सूखा चारा बनाकर भी बेचा जा सकता है जिसकी कीमत अधिक मिलती है। डेयरी फार्म वाले किसान खुद उपयोग करके दूध उत्पादन बढ़ाते हैं। राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की रिपोर्ट में नेपियर घास को सबसे किफायती चारा बताया गया है।

सरकारी सहायता और सब्सिडी

राष्ट्रीय पशुधन मिशन और परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत चारा उत्पादन पर सब्सिडी उपलब्ध है। कई राज्यों में 50 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है। स्थानीय कृषि या पशुपालन विभाग से संपर्क करके पौध सामग्री और सब्सिडी की जानकारी लें।

नेपियर घास की खेती पशुपालन को लाभकारी बनाने का सरल और वैज्ञानिक तरीका है। कम लागत और कम मेहनत में स्थिर चारा उत्पादन से किसानों की आय बढ़ाई जा सकती है। सही किस्म और प्रबंधन अपनाकर अच्छा लाभ प्राप्त करें।

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  • Shashikant

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