जानें कैसे एक किसान ने बना दिया नरेंद्र 09 गेहूं की एक विशेष प्रजाति, किसान नवाचार और उन्नत खेती की नई मिसाल

किसान भाइयों, हमारेदेश में गेहूं की खेती रबी मौसम की सबसे महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और बिहार जैसे राज्यों में किसान उन्नत किस्मों का उपयोग कर उत्पादन और आय बढ़ा रहे हैं। गेहूं की नई किस्म ‘नरेंद्र 09’ एक ऐसी ही क्रांतिकारी उपलब्धि है, जो कम लागत, उच्च उपज, और पर्यावरण अनुकूल खेती का प्रतीक है। यह किस्म प्राकृतिक उत्परिवर्तन और वैज्ञानिक चयन की बदौलत विकसित की गई है। यह लेख नरेंद्र 09 की विशेषताएँ, विकास प्रक्रिया, पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPV&FRA) पंजीकरण, खेती की प्रक्रिया, लागत-लाभ, और जैविक खेती में इसके योगदान पर विस्तृत जानकारी देगा।

नरेंद्र 09 की विशेषताएँ

नरेंद्र 09 गेहूं की एक उन्नत किस्म है, जो अपनी उच्च उपज और मजबूती के लिए जानी जाती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कम बीज दर पर अधिक उत्पादन देती है। सामान्य गेहूं किस्मों में प्रति एकड़ 40 किलो बीज की जरूरत होती है, जबकि नरेंद्र 09 में केवल 35 किलो बीज पर्याप्त है। इसके पौधों में अधिक कल्ले निकलते हैं, जिससे प्रति पौधा उपज बढ़ती है। एक बाली में 70-80 दाने आते हैं, जबकि सामान्य किस्मों में यह संख्या 50-55 तक सीमित रहती है।

यह किस्म मजबूत तनों वाली है, जो तेज हवाओं और भारी बारिश में भी नहीं गिरती। यह पहाड़ी, मैदानी, और सूखा प्रभावित क्षेत्रों में आसानी से उगाई जा सकती है। नरेंद्र 09 कम पानी की आवश्यकता के साथ अच्छी उपज देती है, जो जल संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। यह जैविक खेती के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि यह रासायनिक उर्वरकों पर कम निर्भर करती है। इसके दाने चमकदार और मध्यम आकार के होते हैं, जो रोटी और चपाती के लिए उत्तम गुणवत्ता प्रदान करते हैं।

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विकास की प्रक्रिया

नरेंद्र 09 का विकास एक प्राकृतिक उत्परिवर्तन से शुरू हुआ। 2008 में, उत्तराखंड के एक खेत में एक असामान्य गेहूं का पौधा देखा गया, जो बाकी पौधों से अलग था। इस पौधे के बीजों को संरक्षित कर अगले सीजन में अलग से बोया गया। कई वर्षों तक चयन और परीक्षण के बाद इस किस्म को स्थिर किया गया। इसके बाद, इसे वैज्ञानिक परीक्षण के लिए जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर भेजा गया। कृषि अनुसंधान केंद्र मझेड़ा (नैनीताल) और कृषि विज्ञान केंद्र ग्वालदम (चमोली) में इसके सकारात्मक परिणाम मिले।

इस प्रक्रिया में स्थानीय KVK और कृषि वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 2017 में, इस किस्म को PPV&FRA के तहत पंजीकृत करने के लिए आवेदन किया गया। साढ़े चार साल की कठिन प्रक्रिया के बाद, 2021 में इसे आधिकारिक मान्यता मिली। यह किस्म अब उत्तराखंड और अन्य राज्यों में किसानों के लिए उपलब्ध है। यह नवाचार भारतीय कृषि में स्वदेशी अनुसंधान और किसान-केंद्रित दृष्टिकोण का उदाहरण है।

PPV&FRA पंजीकरण का महत्व

पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार संरक्षण प्राधिकरण (PPV&FRA) भारत में नई पादप किस्मों के संरक्षण और किसानों के अधिकारों की रक्षा के लिए स्थापित किया गया है। नरेंद्र 09 का PPV&FRA के तहत पंजीकरण एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि यह किसानों द्वारा विकसित किस्मों को मान्यता और संरक्षण प्रदान करता है। यह पंजीकरण सुनिश्चित करता है कि इस किस्म के बीजों का व्यावसायिक उपयोग नियंत्रित हो और इसके मूल नवाचार को संरक्षित किया जाए।

PPV&FRA पंजीकरण से किसानों को अपनी किस्मों के लिए रॉयल्टी प्राप्त करने का अवसर मिलता है। यह छोटे और सीमांत किसानों को प्रोत्साहित करता है कि वे स्वदेशी बीजों को संरक्षित करें और नवाचार करें। नरेंद्र 09 का पंजीकरण उत्तराखंड के किसानों के लिए एक प्रेरणा है, जो स्थानीय स्तर पर अनुसंधान और जैव विविधता संरक्षण को बढ़ावा देता है।

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खेती की प्रक्रिया और तकनीक

नरेंद्र 09 की खेती के लिए दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी, जिसका pH 6.0-7.5 हो, उपयुक्त है। खेत की गहरी जुताई (20-25 सेमी) करें और प्रति एकड़ 5-6 टन गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। बुवाई के लिए नवंबर का पहला पखवाड़ा सबसे अच्छा समय है, खासकर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और बिहार में। बीज को 4-5 सेमी गहराई पर 20-22 सेमी की दूरी पर बोएँ।

सिंचाई के लिए ड्रिप सिस्टम या हल्की सिंचाई (4-5 बार) पर्याप्त है। पहली सिंचाई बुवाई के 20-25 दिन बाद करें। उर्वरक के लिए प्रति एकड़ 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस, और 15 किलो पोटाश डालें। जैविक खेती के लिए नीम खली (50 किलो/एकड़) और अज़ोटोबैक्टर (1 किलो/50 किलो FYM) का उपयोग करें। ICAR सलाह देता है कि मृदा परीक्षण के आधार पर उर्वरक डालें।

कीट और रोग नियंत्रण के लिए नीम तेल (5 मिली/लीटर) या प्रोपीकोनाज़ोल (1 मिली/लीटर) का छिड़काव करें। यह किस्म पीला रतुआ और पर्ण झुलसा रोग के प्रति सहनशील है। नियमित खरपतवार नियंत्रण और पौधों की निगरानी करें।

लागत और लाभ विश्लेषण

नरेंद्र 09 की खेती की लागत प्रति एकड़ 15,000-20,000 रुपये है, जिसमें बीज (3,000-4,000 रुपये), उर्वरक और खाद (5,000-6,000 रुपये), सिंचाई (2,000-3,000 रुपये), और मजदूरी (5,000-7,000 रुपये) शामिल हैं। इस किस्म से प्रति एकड़ 25-30 क्विंटल उपज मिलती है, जो सामान्य किस्मों (18-22 क्विंटल) से अधिक है। बाजार में गेहूं की कीमत 2,500-3,000 रुपये/क्विंटल है, जिससे प्रति एकड़ 62,500-90,000 रुपये की आय हो सकती है। लागत निकालने के बाद 42,500-70,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा संभव है।

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY) और PMKSY के तहत बीज, उर्वरक, और ड्रिप सिस्टम पर 25-50% सब्सिडी उपलब्ध है। e-NAM या स्थानीय मंडियों (हल्द्वानी, लखनऊ, पटना) में बिक्री से बिचौलियों का खर्च बचाया जा सकता है।

जैविक खेती में योगदान

नरेंद्र 09 जैविक खेती के लिए आदर्श है, क्योंकि यह रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर कम निर्भर करती है। यह कम पानी की खपत और मृदा स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है। उत्तराखंड में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत प्रशिक्षण और अनुदान उपलब्ध हैं। यह किस्म स्थानीय बीज संरक्षण और जैव विविधता को बढ़ावा देती है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है।

नरेंद्र 09 गेहूं की किस्म भारतीय कृषि में किसान नवाचार और स्वदेशी अनुसंधान का प्रतीक है। इसकी उच्च उपज, कम लागत, और जैविक खेती के लिए उपयुक्तता इसे उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, और बिहार के किसानों के लिए वरदान बनाती है। PPV&FRA पंजीकरण इसे विश्वसनीयता और संरक्षण प्रदान करता है। ICAR, KVK, और सरकारी योजनाओं का समर्थन लेकर किसान इस किस्म को अपनाकर अपनी आय बढ़ा सकते हैं। यह किस्म न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि मृदा स्वास्थ्य, जल संरक्षण, और जैव विविधता को भी बढ़ावा देती है।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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