बासमती से भी आगे! जानिए नाटी मंसूरी की 5 देसी वैरायटी, हाइब्रिड से भी अधिक उत्पादन देतीं हैं

नाटी मंसूरी धान उत्तर भारत में एक ऐसा नाम है, जो हर किसान के दिल के करीब है। ये धान बासमती परिवार का हिस्सा है, लेकिन इसका देसी अंदाज इसे और खास बनाता है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और उत्तराखंड के खेतों में इसकी खेती सालों से होती आ रही है। चाहे सफेद नाटी हो, लाल नाटी हो, या देसी नाटी, हर किस्म अपनी सुगंध और स्वाद के लिए मशहूर है। ये धान न सिर्फ खाने में लाजवाब है, बल्कि बाजार में भी अच्छा दाम दिलाता है। आइए, जानते हैं कि नाटी मंसूरी की रोपाई कैसे करें और इसके क्या-क्या फायदे हैं, ताकि हर किसान इसकी खेती से मुनाफा कमा सके।

नाटी मंसूरी की प्रमुख किस्में(Nati Mansoori rice varieties):

  1. सफेद नाटी मंसूरी – लंबा पतला दाना, सुगंधित, सफेद छिलका।

  2. लाल नाटी मंसूरी – हल्के गुलाबी रंग का दाना, देसी सुगंध, पारंपरिक किस्म।

  3. पीली मंसूरी (Yellowish Nati) – पीले छिलके वाली मंसूरी, ज्यादातर पहाड़ी क्षेत्रों में।

  4. देसी नाटी मंसूरी – कम उपज लेकिन स्वाद और सुगंध में बेहतरीन।

  5. नरेंद्र मंसूरी – नाटी मंसूरी से प्रेरित वैज्ञानिक सुधारित किस्म।

देसी नाटी मंसूरी भले ही कम उपज दे, लेकिन इसका स्वाद और सुगंध बेमिसाल है। नरेंद्र मंसूरी जैसी वैज्ञानिक रूप से सुधारित किस्में ज्यादा उपज और रोगों से लड़ने की ताकत देती हैं। किसानों को अपने खेत और मौसम के हिसाब से सही किस्म चुननी चाहिए।

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खेत की तैयारी, नाटी मंसूरी का पहला कदम

नाटी मंसूरी की खेती के लिए खेत को अच्छे से तैयार करना जरूरी है। ये धान दोमट या चिकनी मिट्टी में सबसे अच्छा उगता है। मॉनसून शुरू होने से पहले, यानी जून के पहले हफ्ते में, खेत को जोत लें और उसमें गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। इससे मिट्टी में पोषक तत्व बढ़ते हैं और धान की जड़ें मजबूत होती हैं। खेत में पानी का ठहराव जरूरी है, इसलिए नालियाँ बनाएँ ताकि मॉनसून का पानी सही से खेत में रुके। अगर आपके गाँव में पानी की कमी है, तो ड्रिप इरिगेशन का इस्तेमाल करें। खेत को समतल करने के लिए हल या ट्रैक्टर से दो-तीन बार जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।

रोपाई का सही समय और तरीके

नाटी मंसूरी की रोपाई मॉनसून की शुरुआत में, यानी जून-जुलाई में, सबसे अच्छी होती है। सबसे पहले, अच्छी क्वालिटी के बीज चुनें। अगर आप देसी नाटी मंसूरी उगा रहे हैं, तो स्थानीय किसानों या कृषि केंद्र से बीज लें। बीज को 24 घंटे पानी में भिगोकर रखें, फिर उसे बोने से पहले छायादार जगह पर सुखाएँ। नर्सरी में पौध तैयार करने के लिए 25-30 दिन का समय लगता है। जब पौध 4-5 पत्तियों वाली हो जाए, तो उसे खेत में रोपें। रोपाई के दौरान पौधों के बीच 15-20 सेंटीमीटर की दूरी रखें, ताकि हर पौध को पर्याप्त जगह और पोषण मिले। मॉनसून की बारिश इस धान के लिए वरदान है, लेकिन ज्यादा पानी जमा न होने दें, वरना जड़ें सड़ सकती हैं।

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पानी और खाद का सही प्रबंधन

नाटी मंसूरी को पानी की जरूरत ज्यादा होती है, खासकर शुरुआती 30-40 दिनों में। खेत में 3-5 सेंटीमीटर पानी का स्तर बनाए रखें। मॉनसून में बारिश इस काम को आसान बनाती है, लेकिन अगर बारिश कम हो, तो नहर या बोरवेल से सिंचाई करें। पानी की बर्बादी रोकने के लिए चेक डैम या छोटे तालाब बनवाएँ। खाद के लिए, गोबर की खाद के साथ यूरिया और DAP का सीमित इस्तेमाल करें। ज्यादा रासायनिक खाद से बचें, क्योंकि ये नाटी मंसूरी की सुगंध और क्वालिटी को प्रभावित कर सकता है। जैविक खाद, जैसे नीम की खली या वर्मी कम्पोस्ट, फसल को रोगों से बचाने में भी मदद करता है।

कीट और रोग से बचाव का देसी नुस्खा

नाटी मंसूरी को कीटों और रोगों से बचाना जरूरी है, क्योंकि ये इसकी उपज और क्वालिटी को प्रभावित कर सकते हैं। मॉनसून में नमी की वजह से फफूंद और ब्लास्ट रोग का खतरा रहता है। इसके लिए नीम का तेल या लहसुन-अदरक का मिश्रण बनाकर छिड़काव करें। ये देसी नुस्खे सस्ते और असरदार हैं। अगर रोग ज्यादा फैले, तो कृषि केंद्र से सलाह लेकर जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल करें। खेत में खरपतवार को समय-समय पर हटाएँ, ताकि धान को पूरा पोषण मिले। अगर आपके गाँव में पक्षी धान को नुकसान पहुंचाते हैं, तो खेत में डरावने पुतले लगाएँ या जाल का इस्तेमाल करें।

नाटी मंसूरी के फायदे, मुनाफे का रास्ता

नाटी मंसूरी की खेती गाँव के किसानों के लिए मुनाफे का खजाना है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है इसकी सुगंध और स्वाद, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाता है। सफेद नाटी मंसूरी को होटल और शादी-ब्याह में खूब पसंद किया जाता है, जबकि देसी और लाल नाटी स्थानीय बाजारों में लोकप्रिय हैं। एक एकड़ में 15-20 क्विंटल की उपज आसानी से मिल सकती है, और प्रति क्विंटल 2000-3000 रुपये तक का दाम मिलता है। अगर आप जैविक खेती करते हैं, तो और ज्यादा मुनाफा हो सकता है। इसके अलावा, नाटी मंसूरी की खेती में लागत कम आती है, क्योंकि ये देसी किस्में रोगों और मौसम की मार को अच्छे से झेल लेती हैं।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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