भारत में केले की खेती करने वाले किसानों के लिए बड़ी खुशखबरी है। राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी अनोखी तकनीक विकसित की है, जो केले के पौधे उगाने का तरीका पूरी तरह बदल सकती है। इस तकनीक में बायोरिएक्टर नाम की मशीन का उपयोग किया जाता है। इस मशीन में केले की खास कोशिकाओं वाला एक तरल डाला जाता है, जो कोशिकाओं को तेजी से बढ़ने में मदद करता है।
कैसे काम करती है यह तकनीक
यह दुनिया का पहला ऐसा बायोरिएक्टर सिस्टम है, जो केले के भ्रूण को विकसित करने के लिए बनाया गया है। इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि तरल की सिर्फ कुछ बूंदों से ही लाखों स्वस्थ और एक जैसे केले के पौधे तैयार किए जा सकते हैं। इससे पौधे तैयार करने की प्रक्रिया तेज और आसान हो जाती है।
परीक्षण में मिली बड़ी सफलता
वैज्ञानिकों ने इस तकनीक का परीक्षण किया है और यह बेहद सफल साबित हुई है। बहुत कम मात्रा में कोशिकाओं का उपयोग करके हजारों की संख्या में रोग मुक्त और एक समान आकार के पौधे तैयार किए गए हैं। यह तकनीक ग्रैंड नैन, रसथली, पूवन, नेन्द्रन और लाल केले जैसी कई लोकप्रिय किस्मों पर भी पूरी तरह सफल रही है। जांच में यह भी साफ हो गया है कि नए पौधे अनुवांशिक रूप से पूरी तरह स्थिर हैं। यानी उनकी वृद्धि और फल देने की क्षमता बिल्कुल मूल पौधों जैसी ही है।
ये भी पढ़ें- केले की खेती पर सरकार दे रही ₹45,000 की सब्सिडी, जानिए कैसे उठाएं फायदा
लागत में आएगी बड़ी कमी
इस नई तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि केले के पौधे तैयार करने की लागत काफी कम हो जाएगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा केला उत्पादक देश है और यहां हर साल करीब 3.8 करोड़ मीट्रिक टन केले का उत्पादन होता है। फिलहाल केवल 20 से 30 फीसदी किसान ही टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन इस नई और किफायती तकनीक से अधिक संख्या में किसान उच्च गुणवत्ता वाले पौधे खरीद पाएंगे। इससे पैदावार बढ़ेगी और भारत की स्थिति वैश्विक स्तर पर और भी मजबूत होगी।
अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी
यह तकनीक सिर्फ केले तक ही सीमित नहीं है। इसका उपयोग दूसरी महत्वपूर्ण फसलों, फूलों और जंगलों के पेड़ों को उगाने के लिए भी किया जा सकता है। वैज्ञानिकों की टीम अब बड़े आकार के बायोरिएक्टर बनाने और पौधों की कोशिकाओं को लंबे समय तक सुरक्षित रखने पर काम कर रही है। जैसे ही यह तकनीक व्यावसायिक स्तर पर उपलब्ध होगी, यह खेती के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है।
राष्ट्रीय केला अनुसंधान केंद्र का मानना है कि यह खोज भारत को आधुनिक खेती के समाधानों में सबसे आगे ले जाएगी और दुनिया में बढ़ती भोजन की मांग को पूरा करने का मजबूत जरिया बनेगी।
ये भी पढ़ें- केले में फैल रही है फ्यूजेरियम विल्ट की बीमारी, तुरंत करें इस जैविक कीटनाशक का प्रयोग