Nematode Infestation In Crops : फसलों में सूत्रकृमि (नेमाटोड्स) का प्रकोप आज एक वैश्विक संकट बन चुका है। संयुक्त राज्य कृषि विभाग (यूएसडीए) के अनुसार, सूत्रकृमि हर साल दुनिया भर में 80 अरब डॉलर से अधिक मूल्य की फसल हानि का कारण बनते हैं। भारत में भी हालात चिंताजनक हैं। यहाँ हर साल लगभग 30 से 35 फीसदी फसल कीटों के प्रकोप से नष्ट हो जाती है। इसमें सूत्रकृमि यानी नेमाटोड्स फसलों के लिए बड़े खतरे के रूप में उभरे हैं, जो हर साल 600 लाख टन फसल उपज का नुकसान करते हैं।
हाल ही में आयोजित ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन नेमाटोड्स इन क्रॉपिंग सिस्टम की वार्षिक समूह बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने ये चौंकाने वाला तथ्य साझा किया है। ये आँकड़े बताते हैं कि सूत्रकृमि से निपटना अब कितना जरूरी हो गया है।
कृषि और बागवानी फसलों पर कहर
सूत्रकृमि का असर पूरे देश में कृषि और बागवानी फसलों पर समय के साथ बढ़ता जा रहा है। खासकर उन इलाकों में जहाँ बागवानी फसलों का विस्तार हुआ है, वहाँ ये परजीवी ज्यादा नुकसान कर रहे हैं। सूक्ष्म सिंचाई तंत्र (ड्रिप इरिगेशन) की ओर बढ़ते रुझान ने सूत्रकृमि के लिए अनुकूल माहौल बना दिया है।
ये सूक्ष्म कीट मिट्टी में रहते हैं और पौधों की जड़ों को नुकसान पहुँचाते हैं। इससे फसलों की पैदावार में भारी गिरावट आती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर) के सूत्रकृमि विज्ञान (निमेटोलॉजी) विभाग का कहना है कि बहुफसली प्रणाली और गहन खेती के चलते ये समस्या और गंभीर हो रही है। किसान कई फसलें एक साथ उगा रहे हैं, जिससे सूत्रकृमि को फैलने का मौका मिल रहा है।
छिपा खतरा, जागरूकता की कमी
बड़ी समस्या ये है कि सूत्रकृमि के कारण होने वाले नुकसान को किसान अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं। ये कीट मिट्टी के अंदर छिपे रहते हैं, और इनका पता समय पर नहीं चल पाता। आईसीएआर के अनुसार, दुनिया भर में कम से कम 10 प्रकार के सूत्रकृमि फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं। भारत में 24 विभिन्न फसलों में सूत्रकृमि से होने वाली राष्ट्रीय क्षति का अनुमान लगभग 2100 करोड़ रुपये है।
हालिया शोध बताते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर फसल नुकसान का असर कृषि जैव सुरक्षा पर पड़ रहा है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए भी चुनौती बन रहा है। किसानों में जागरूकता की कमी इस समस्या को और बढ़ा रही है। अगर समय रहते इसे समझा न गया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं।
सूत्रकृमि क्या हैं और कैसे नुकसान करते हैं?- What is Nematode
सूत्रकृमि धागेनुमा कीट होते हैं, जो मिट्टी में पाए जाते हैं और सालों तक वहाँ जीवित रह सकते हैं। ये परजीवी होते हैं और पौधों की जड़ों में घुसकर उनके पोषक तत्व और पानी चूस लेते हैं। इससे पौधों में पानी और पोषण की कमी हो जाती है, उनकी बढ़त रुक जाती है, और वे कमजोर पड़ जाते हैं।
ये कई फसलों पर हमला करते हैं, जैसे गेहूँ, टमाटर, मिर्च, बैंगन, भिंडी, परवल, धान, और फल जैसे अनार, नींबू, संतरा, अमरूद, अंजीर, किन्नू, अंगूर वगैरह। सूत्रकृमि जड़ों पर गाँठें बना देते हैं, जिससे पौधा मुरझाने लगता है और धीरे-धीरे सूख जाता है। फूल और फल कम लगते हैं, पैदावार घटती है, और फसल की क्वालिटी भी खराब हो जाती है। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
अप्रत्यक्ष नुकसान भी खतरनाक
सूत्रकृमि सिर्फ जड़ों को ही नुकसान नहीं पहुँचाते, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से भी फसलों को कमजोर करते हैं। ये पौधों को रोगजनक बैक्टीरिया, फफूंदी और दूसरी बीमारियों के प्रति संवेदनशील बना देते हैं। जड़ों में घाव बनने से संक्रमण फैलता है, और पौधा बीमारियों का शिकार हो जाता है। ये फसलों की सफल खेती के लिए एक बड़ा जैविक तनाव बनते हैं। पौधे की जड़ें कमजोर होने से पूरा पौधा प्रभावित होता है, और किसानों की मेहनत बेकार चली जाती है।
फसलों के नुकसान का आकलन
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के शोधकर्ता डॉ. रमन कुमार वालिया ने 2024 में प्रकाशित अपने अध्ययन में बताया कि सूत्रकृमि से होने वाले नुकसान का आकलन बहुत जरूरी है। इससे इनके प्रभाव को समझने में मदद मिलती है। 2020 के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत की 30 प्रमुख फसलों में औसतन 21.3 प्रतिशत नुकसान हुआ। इस नुकसान का आर्थिक प्रभाव करीब 10,203 करोड़ रुपये रहा। धान, केला, नींबू और टमाटर जैसी बागवानी फसलों में सबसे ज्यादा नुकसान देखा गया। धान में राइस रूट-नॉट नेमाटोड खासतौर से खतरनाक है।
ये सूत्रकृमि चावल के उत्पादन वाले इलाकों में गंभीर समस्या बन गया है। ये निचले और ऊपरी दोनों क्षेत्रों में धान की खेती को प्रभावित कर रहा है। मसालों जैसे काली मिर्च, इलायची और हल्दी में नुकसान 29.5 प्रतिशत तक हो सकता है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और हरियाणा में गेहूँ और जौ में मोल्या रोग, ईयर-कॉकल और टंडू रोग आम हैं। दक्षिण भारत में केला और सिट्रस फल जैसे संतरा, नींबू, अमरूद, अंगूर, लाइम, किन्नू के लिए भी सूत्रकृमि मुसीबत बन चुके हैं।
सूत्रकृमि फैलने का कारण
भारत में सूत्रकृमि के प्रसार का एक बड़ा कारण संक्रमित पौधों की नर्सरी से उनका फैलाव है। खासकर अमरूद और अनार जैसी बागवानी फसलों में ये ज्यादा देखा गया है। नर्सरी से लिए गए पौधों के जरिए सूत्रकृमि खेतों में पहुँचते हैं, और फिर बागों में बड़े पैमाने पर पौधे खराब हो जाते हैं। इसके अलावा, लगातार एक ही फसल उगाने और मिट्टी की सही देखभाल न करने से भी ये फैलते हैं।
क्या है समाधान?
सूत्रकृमि से बचाव के लिए कई उपाय हैं। सबसे पहले, नर्सरी में सूत्रकृमि से मुक्त पौधों का इस्तेमाल करना चाहिए। मिट्टी को सूर्य की रोशनी से स्टरलाइज़ करना भी एक अच्छा तरीका है। बीजों का उपचार, मिट्टी की सफाई और जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का सही इस्तेमाल इनकी संख्या को काबू में कर सकता है। प्राकृतिक शिकारियों का उपयोग भी कारगर है।
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, नीम का तेल और खली सूत्रकृमि को नियंत्रित करने में बहुत असरदार हैं। नीम के इस्तेमाल से फसल की पैदावार में 40% तक बढ़ोतरी हो सकती है।
रासायनिक और जैविक उपाय
हाल ही में फ्लुओपायरम और फ्लुएन्सल्फोन जैसे नए रासायनिक सूत्रकृमि नाशकों को मंजूरी मिली है। ये प्रभावी ढंग से सूत्रकृमि को कंट्रोल करते हैं। इसके अलावा, जैविक उपाय भी लोकप्रिय हो रहे हैं। पर्प्यूरोसीलियम लाइलासिनम एक कवक है, जो सूत्रकृमि पर हमला करके उन्हें खत्म करता है। ट्राइकोडर्मा भी एक कवक है, जो सूत्रकृमि और अन्य पैथोजन से फसलों को बचाता है। बैसिलस बैक्टीरिया मिट्टी में रहकर सूत्रकृमि पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ये जैविक तरीके सुरक्षित और पर्यावरण के लिए फायदेमंद हैं।
एकीकृत सूत्रकृमि प्रबंधन
सूत्रकृमि, खासकर रूट नॉट नेमाटोड्स, एक बार खेत में बस जाएँ, तो उन्हें पूरी तरह खत्म करना मुश्किल है। इसलिए इनका प्रबंधन जरूरी हो जाता है। एकीकृत सूत्रकृमि प्रबंधन (Integrated Nematode Management) इस समस्या का सबसे अच्छा हल है। इसमें कई तकनीकों का मिश्रण होता है, जो पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना सूत्रकृमि को काबू करते हैं। गर्मियों में हल चलाना, फसल चक्र अपनाना, और प्रतिरोधी किस्मों का इस्तेमाल जैसे तरीके शामिल हैं। जैविक नियंत्रण में सूत्रकृमि विरोधी एजेंट और भौतिक विधियों में मिट्टी का स्टरलाइज़ेशन या भाप से सफाई की जाती है। ये तरीके न सिर्फ सूत्रकृमि को कम करते हैं, बल्कि मिट्टी को भी स्वस्थ रखते हैं।
फायदेमंद सूत्रकृमि भी हैं
सभी सूत्रकृमि हानिकारक नहीं होते। कुछ लाभकारी सूत्रकृमि जैविक नियंत्रण एजेंट के तौर पर काम करते हैं। एंटोमोपैथोजेनिक सूत्रकृमि अपने बैक्टीरिया सहजीवियों के साथ मिलकर कीटों को 24-48 घंटों में मार डालते हैं। सैप्रोजोइक सूत्रकृमि, जो रोगजनक नहीं होते और स्वतंत्र रूप से रहते हैं, मिट्टी की सेहत को बेहतर करते हैं। ये दूसरों सूक्ष्मजीवों को नियंत्रित करते हैं, पोषक तत्वों का खनिजकरण करते हैं, और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं।
जागरूकता की जरूरत
कृषि मंत्रालय और राज्य सरकारें बागवानी के क्षेत्र में सक्रिय हैं, जिससे सूत्रकृमि की समस्याएँ भी सामने आ रही हैं। किसानों, कृषि अधिकारियों और क्वारंटाइन अधिकारियों के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान चल रहे हैं। निजी और सरकारी क्षेत्र मिलकर सूत्रकृमि से निपटने की नीतियाँ बना रहे हैं। भारत में सूत्रकृमि से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए एक समन्वित प्रयास की जरूरत है। किसानों को सही ट्रेनिंग, नए जैविक और रासायनिक समाधान, और नर्सरी स्तर पर प्रबंधन से इस समस्या को काबू किया जा सकता है। समय रहते कदम उठाएँ, तो फसलों को बचाकर खाद्य सुरक्षा और किसानों की आय को बढ़ाया जा सकता है।
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