मंसूरी धान की नई वैरायटी से किसानों की किस्मत चमकेगी, होगा जबरदस्त मुनाफा!

New Sabaur Mansuri Paddy Variety: खरीफ सीजन 2025-26 का इंतजार खत्म, क्योंकि धान की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए बड़ी खुशखबरी है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय ने सबौर मंसूरी नाम की धान की नई किस्म तैयार की है, जो कम पानी, कम उर्वरक, और कम खर्च में सामान्य धान से डेढ़ गुना ज्यादा पैदावार देती है। धान की बुआई का सही समय मई में नर्सरी लगाकर या जून मध्य से जुलाई के पहले हफ्ते में सीधी बुआई का है। सबौर मंसूरी के साथ-साथ पूसा संस्थान की बासमती किस्में भी इस साल किसानों को बंपर मुनाफा दिलाने के लिए तैयार हैं। आइए, देसी अंदाज में जानें सबौर मंसूरी और अन्य उन्नत किस्मों की खासियत और इनसे खेती का तरीका।

सबौर मंसूरी की खासियत

सबौर मंसूरी धान किसानों के लिए किसी तोहफे से कम नहीं। ये किस्म कम पानी और उर्वरक में भी शानदार पैदावार देती है। औसतन 65-70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, और सही देखभाल से 122 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी है कि इसे रोपाई के बिना सीधी बुआई से भी उगाया जा सकता है, जिससे मेहनत और खर्च दोनों बचते हैं। सीधी बुआई में ये 135-140 दिनों में पककर तैयार हो जाता है।

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 4 साल तक 19 राज्यों के 125 केंद्रों पर इसका परीक्षण किया। पौधे में 18-20 कल्ले और 300 से ज्यादा दाने होते हैं, जो पैदावार को बढ़ाते हैं। ये किस्म 9 राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, और पुडुचेरी के लिए मुफीद है।

रोग और कीट प्रतिरोधी ताकत

सबौर मंसूरी रोग और कीटों से लड़ने में माहिर है। ये झुलसा और झोंका रोग के खिलाफ मजबूत है, और तना छेदक व भूरा पत्ती लपेटक जैसे कीटों को भी सहन कर लेती है। इसका तना इतना मजबूत है कि आंधी-तूफान में भी नहीं गिरता। बदलते मौसम में ये किस्म किसानों का भरोसा बनाए रखती है। कम पानी की जरूरत होने से उन इलाकों में भी बढ़िया है, जहाँ बारिश कम होती है। ये खूबियाँ इसे छोटे और बड़े किसानों के लिए पसंदीदा बनाती हैं।

पूसा की बासमती किस्में

ICAR के निदेशक डॉ. अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पूसा संस्थान हर साल उन्नत बीज किसानों तक पहुँचाता है। इस साल खरीफ सीजन में पूसा बासमती 1121, पूसा बासमती 1509, पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1850, पूसा बासमती 1886, पूसा बासमती 1728, और पूसा बासमती 1692 जैसी किस्मों के बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होंगे। ये बासमती किस्में अपने सुगंधित दाने और ऊँचे बाजार दाम के लिए जानी जाती हैं। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, और पश्चिम बंगाल में इनकी माँग ज्यादा है। ये किस्में 110-130 दिनों में पकती हैं और 50-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती हैं।

खेती का सही तरीका

सबौर मंसूरी की बुआई के लिए खेत को अच्छे से तैयार करें। बलुई दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। सीधी बुआई के लिए 30-35 किलो बीज प्रति हेक्टेयर और नर्सरी के लिए 20-25 किलो बीज काफी है। खेत में 5-6 टन गोबर की खाद और 120:60:40 किलो NPK प्रति हेक्टेयर डालें। कतार से कतार 20 सेमी और पौधे से पौधे 10 सेमी की दूरी रखें। पानी का प्रबंधन जरूरी है, लेकिन इस किस्म को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं। बासमती किस्मों के लिए भी यही तकनीक अपनाएँ, लेकिन पानी का जलजमाव न होने दें। कीट और रोग प्रबंधन के लिए नीम आधारित कीटनाशक और जैविक खाद का इस्तेमाल करें।

किसान भाइयों के लिए सलाह

किसान भाई, सबौर मंसूरी और पूसा बासमती किस्मों को अपनाकर इस खरीफ सीजन में बंपर पैदावार लें। बीज प्रमाणित दुकानों या कृषि विश्वविद्यालयों से खरीदें। बिहार, यूपी, और अन्य राज्यों में नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लें। मई में नर्सरी तैयार करें या जून-जुलाई में सीधी बुआई करें। अपने गाँव के किसानों को भी ये जानकारी बाँटें, ताकि सबकी खेती चमके। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (06274-240239) से और जानकारी ले सकते हैं।

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  • Shashikant

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