धान की खेती तो हमारे गाँवों का गौरव है। ये न सिर्फ हमारा पेट भरता है, बल्कि बाजार में अच्छी कमाई भी देता है। अब रोहतास जिले के बिक्रमगंज से एक खुशखबरी आई है। यहाँ की वनस्पति अनुसंधान इकाई, धनगाई के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह और उनकी टीम ने धान की एक नई किस्म सबौर कुंवर तैयार की है।
भारत सरकार के कृषि मंत्रालय ने इसे बिहार समेत 9 राज्यों में बोने की मंजूरी दे दी है। इस किस्म का नाम हमारे शाहाबाद के महान स्वतंत्रता सेनानी वीर कुंवर सिंह के सम्मान में रखा गया है, ताकि नई पीढ़ी उनके बलिदान को याद रखे। आइए, जानें कि ये किस्म कैसे आपकी खेती को चमका सकती है।
सबौर कुंवर की खासियत
सबौर कुंवर धान की सबसे बड़ी खूबी है कि ये सिर्फ 120 दिन में पककर तैयार हो जाता है। इतने कम समय में फसल तैयार होने से आप दूसरी फसल, जैसे गेहूँ, मूँग या सरसों, आसानी से बो सकते हैं। ये किस्म कम पानी और कम खाद में भी लहलहाती है, यानी सूखे और कम बारिश वाले इलाकों के लिए ये वरदान है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसकी औसत पैदावार 55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है, लेकिन सही देखभाल से ये 88-89 क्विंटल तक फसल दे सकती है। पिछले साल रोहतास के करमैनी गाँव में किसान विजय कुमार के खेत में इसने 88 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार दी, जिसे बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और ओडिशा के वैज्ञानिकों ने देखा और तारीफ की।
कम खाद, मज़बूत बालियाँ
सबौर कुंवर की बालियाँ 27-28 सेंटीमीटर लंबी होती हैं, और हर बाली में करीब 300 छोटे-छोटे दाने लगते हैं। ये दाने कतरनी 5204 प्रजाति जैसे दिखते हैं और 98-99% तक भरे हुए होते हैं, यानी खाली दाने कम। खास बात ये है कि इस किस्म को दूसरी किस्मों जितनी खाद की ज़रूरत नहीं। जहाँ बाकी धान को 120 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर चाहिए, वहीं सबौर कुंवर सिर्फ 90 किलो नाइट्रोजन से ही बंपर फसल दे देता है। इससे आपका खर्च बचता है और मुनाफा बढ़ता है।
9 राज्यों में चमकेगी सबौर कुंवर
सबौर कुंवर को बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, और गुजरात में बोने की मंजूरी मिली है। 2015 से इस पर काम शुरू हुआ था, और 2021-2023 तक इन राज्यों में इसके फील्ड ट्रायल हुए। हर जगह इसने शानदार रिजल्ट दिए। इसे बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर और हैदराबाद के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) ने मिलकर तैयार किया है। भारत सरकार की 93वीं केंद्रीय प्रभेद विमोचन समिति ने इसे मंजूरी दी, और जल्द ही ये राष्ट्रीय राजपत्र में छपेगी। इसके बाद आप धनगाई अनुसंधान केंद्र से इसका जनक बीज ले सकेंगे।
सबौर कुंवर की खेती के टिप्स
सबौर कुंवर की बंपर पैदावार के लिए कुछ बातों का ध्यान रखें। बोवनी जून के पहले हफ्ते में शुरू करें, ताकि मानसून का पूरा फायदा मिले। प्रति हेक्टेयर 40-50 किलो बीज इस्तेमाल करें और कतारों के बीच 20 सेंटीमीटर की दूरी रखें। मिट्टी में गोबर की खाद और जैविक खुराक डालें। पहली सिंचाई बोवनी के 3-4 दिन बाद करें, और फिर हर 7-10 दिन में पानी दें। अगर कीट या रोग का हल्का असर दिखे, तो नीम का तेल (500 मिलीलीटर प्रति 200 लीटर पानी) छिड़कें। खेत की नियमित निगरानी करें, ताकि तना छेदक जैसे कीट पकड़ में आ जाएँ।
सबौर कुंवर से मुनाफा
सबौर कुंवर की खेती कम लागत में ज्यादा मुनाफा देगी। इसकी कम समय में पकने और कम खाद की ज़रूरत के कारण खर्च कम होगा। इसकी ऊँची पैदावार और अच्छी गुणवत्ता बाजार में मोटा दाम लाएगी। इससे चावल, भूसी, या पशु चारा बेचकर कमाई की जा सकती है। बिहार के बाद अब 9 राज्यों में इसकी खेती से किसानों की नई पहचान बनेगी, जैसे वीर कुंवर सिंह की वीरता की।
तो देर न करें, इस खरीफ सीजन में सबौर कुंवर को अपनाएँ। सही बीज, मेहनत, और देखभाल से आपका खेत सोने की तरह लहलहाएगा। बिक्रमगंज का ये अनुसंधान केंद्र और डॉ. प्रकाश सिंह की मेहनत आपके लिए वरदान बनेगी।
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