तूफान में भी सीना तान के खड़ा रहेगा ये धान, हर हेक्टेयर में देगा 105 क्विंटल का दमदार मुनाफा

धान की खेती करने वाले किसानों के लिए बिहार से एक बड़ी खुशखबरी है। अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा कम है या आप बारिश पर निर्भर हैं, तो अब चिंता करने की जरूरत नहीं। बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश सिंह ने रोहतास जिले के बिक्रमगंज में धान की एक नई किस्म सबौर प्रताप विकसित की है। ये किस्म कम पानी और कम बारिश वाले इलाकों में बंपर पैदावार देती है। पिछले साल बिक्रमगंज के किसान विजय कुमार ने अपने खेत में इसकी खेती की, तो 97.4 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिली। ये नतीजा देखकर ना सिर्फ किसान, बल्कि वैज्ञानिक भी उत्साहित हैं। आइए जानें कैसे ये किस्म आपकी खेती को बदल सकती है।

सबौर प्रताप की खासियत

सबौर प्रताप को इस तरह तैयार किया गया है कि ये जलवायु के हर बदलाव को झेल लेती है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि इसे नर्सरी और रोपाई की जरूरत नहीं। आप सीधे खेत में बीज बो सकते हैं, जिससे समय और मजदूरी का खर्च बचता है। ये किस्म 130 से 140 दिनों में तैयार हो जाती है। औसतन 60 से 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है, और सही देखभाल हो तो 105 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है।

इस किस्म से निकले चावल का दाना सुनहरा और भुरभुरा होता है, जो कतरनी और सांभा मंसूरी जैसे मशहूर चावलों की तरह दिखता और स्वाद देता है। इससे 67 प्रतिशत से ज्यादा चावल निकलता है, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाता है।

रोग और कीटों से सुरक्षा

खेती में रोग और कीट सबसे बड़ी चुनौती हैं, लेकिन सबौर प्रताप इस मामले में भी कमाल है। ये जीवाणु झुलसा, अंगमारी, झोंका, और कंडुआ जैसे रोगों के खिलाफ मजबूत है। साथ ही तना छेदक, भूरा रस चूसक, और पत्तीलपेटक जैसे कीटों को भी सहन कर लेती है। यानी फसल खराब होने का डर बहुत कम है। इसकी हर बाली 28 से 30 सेंटीमीटर लंबी होती है, जिसमें 280 से ज्यादा दाने होते हैं। प्रति पौधा 18 से 25 कल्ले निकलते हैं, और 1000 दानों का वजन 18 से 19 ग्राम होता है। ये गुण इसे बाकी किस्मों से अलग बनाते हैं।

कम खाद में ज्यादा मुनाफा

सबौर प्रताप की एक और खूबी है इसका कम उर्वरक में ज्यादा उत्पादन देना। जहां दूसरी किस्मों को भारी मात्रा में यूरिया और खाद चाहिए, वहीं ये किस्म कम खाद में भी शानदार उपज देती है। इससे किसानों का खर्च कम होता है और मुनाफा बढ़ता है। बिक्रमगंज में हुए परीक्षणों में ये किस्म हर बार सफल रही। पिछले तीन-चार सालों से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, और अन्य राज्यों में इसके बीज का परीक्षण किया गया। हर जगह इसने वैज्ञानिकों और किसानों का भरोसा जीता। बिहार के 200 से ज्यादा प्रगतिशील किसानों को मिनी किट के जरिए बीज दिए गए, और नतीजे शानदार रहे।

11 राज्यों में खेती

केंद्र सरकार की केंद्रीय प्रभेद विमोचन समिति ने सबौर प्रताप को बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तेलंगाना, और तमिलनाडु के लिए अधिसूचित किया है। ये 11 राज्य अब इस किस्म की खेती कर सकते हैं। इसका जनक बीज बिक्रमगंज के धनगाई स्थित वनस्पति अनुसंधान इकाई में उपलब्ध है। अगर आप इस किस्म को आजमाना चाहते हैं, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें। वहाँ से आपको बीज और खेती की पूरी जानकारी मिलेगी।

फसल चक्र में आसानी

सबौर प्रताप समय पर तैयार होने की वजह से फसल चक्र में भी बड़ा फायदेमंद है। इसे बोने के बाद आप आसानी से गेहूं, मक्का, मूंग, उड़द, आलू, या प्याज जैसी रबी फसलों की खेती कर सकते हैं। इससे आपके खेत साल भर खाली नहीं रहेंगे, और आमदनी बनी रहेगी। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, जहाँ धान और गेहूं का चक्र आम है, ये किस्म किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसकी खेती से ना सिर्फ उत्पादन बढ़ेगा, बल्कि मिट्टी की सेहत भी बनी रहेगी।

किसानों के लिए सुझाव

सबौर प्रताप की खेती शुरू करने से पहले खेत की अच्छी जुताई करें। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी है। प्रति हेक्टेयर 30 से 40 किलो बीज पर्याप्त हैं। बीज को बोने से पहले बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो बीज) से उपचार करें, ताकि फफूंद का खतरा न रहे। हल्की सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथिलिन (700 मिली प्रति एकड़) का छिड़काव करें। अगर पत्तियाँ पीली दिखें, तो यूरिया का हल्का छिड़काव करें। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करके इस किस्म की पूरी जानकारी और बीज लें।

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  • Shashikant

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