अरहर की नई किस्म 45°C में भी देगी बंपर पैदावार, वैज्ञानिकों ने बनाई जादुई किस्म

New variety of pigeon pea ICPV 25444: अरहर की खेती किसानों की कमाई का बड़ा सहारा है। दाल के रूप में ये हर घर की थाली का हिस्सा है, लेकिन गर्मी की तपिश और पानी की कमी ने इसकी खेती को मुश्किल बना दिया था। अब इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) ने एक ऐसी अरहर की किस्म विकसित की है, जो 45 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी और सूखे को झेल सकती है।

इस नई किस्म, ICPV 25444, को स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से तैयार किया गया है, जो सिर्फ 4 महीने में तैयार हो जाती है। ये न सिर्फ भारत, बल्कि अफ्रीका और सूखे वाले इलाकों के किसानों के लिए वरदान है। आइए, जानते हैं कि ये नई किस्म कैसे किसानों की जिंदगी बदलेगी।

अरहर की कमी को दूर करने की उम्मीद

भारत में हर साल करीब 35 लाख टन अरहर का उत्पादन होता है, लेकिन हमारी जरूरत 50 लाख टन की है। इस कमी को पूरा करने के लिए हर साल 800 मिलियन डॉलर की दालें आयात करनी पड़ती हैं। गर्मी और पानी की कमी के कारण खरीफ में धान की खेती के बाद रबी में 1.2 करोड़ हेक्टेयर खेत खाली रह जाते हैं। लेकिन अब ICRISAT की नई किस्म ICPV 25444 इन खेतों को हरा-भरा कर सकती है। ये किस्म गर्मी और सूखे में भी फलती-फूलती है, जिससे किसान सालभर अरहर उगा सकेंगे। ये न सिर्फ दालों की कमी दूर करेगी, बल्कि गाँवों में कमाई और पोषण का नया रास्ता खोलेगी।

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अरहर की नई किस्म 45°C में भी देगी बंपर पैदावार, वैज्ञानिकों ने बनाई जादुई किस्म
गर्मी और सूखा झेलने वाली खासियत

ICRISAT की नई किस्म ICPV 25444 की सबसे बड़ी खासियत है कि ये 45 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी को आसानी से झेल लेती है। पारंपरिक अरहर की किस्में फूलने के समय गर्मी से रुक जाती थीं, लेकिन ये नई किस्म 40 दिन तक तपती गर्मी में भी बढ़िया पैदावार देती है। इसका उत्पादन 1.1-1.2 टन प्रति हेक्टेयर से बढ़कर 2 टन तक हो सकता है। इतना ही नहीं, इसे बहुत कम पानी चाहिए, जो सूखे वाले इलाकों के लिए बड़ी राहत है। कटाई का समय भी 6-7 महीने से घटकर सिर्फ 4 महीने हो गया है। ये किस्म एकसमान ऊँचाई की होती है, जिससे मशीन से कटाई भी आसान है।

स्पीड ब्रीडिंग तकनीक

पहले अरहर की नई किस्म बनाने में 13-15 साल लग जाते थे, लेकिन ICRISAT ने स्पीड ब्रीडिंग तकनीक का इस्तेमाल करके इसे सिर्फ 5 साल में कर दिखाया। इस तकनीक से वैज्ञानिक एक साल में चार पीढ़ियाँ उगा सकते हैं। इसका मतलब है कि गर्मी और सूखा सहन करने वाली, ज्यादा पैदावार देने वाली, और जल्दी तैयार होने वाली किस्में अब जल्दी बनेंगी। कर्नाटक, ओडिशा, और तेलंगाना में इस किस्म का सफल परीक्षण हो चुका है। ICRISAT के वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रकाश गंगाशेट्टी के मुताबिक, इस तकनीक ने नई किस्मों को पंजीकरण तक पहुँचाने का समय 3-4 साल कर दिया है। ये किसानों के लिए कम समय में ज्यादा फायदा लाएगी।

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किसानों के लिए बड़ा फायदा

ICRISAT के महानिदेशक हिमांशु पाठक का कहना है कि ये किस्म गर्मी और पानी की कमी की सबसे बड़ी मुश्किल को हल करती है। गाँवों में जहाँ पानी की किल्लत रहती है, वहाँ ये किस्म कम संसाधनों में ज्यादा पैदावार देगी। इसकी एकसमान ऊँचाई मशीन से कटाई को आसान बनाती है, जिससे मेहनत और समय की बचत होगी। खरीफ के बाद रबी में खाली पड़े खेतों में इसकी खेती करके किसान दोगुना मुनाफा कमा सकते हैं। ये किस्म न सिर्फ भारत, बल्कि अफ्रीका, म्यांमार, केन्या जैसे देशों में भी दालों की कमी को कम करेगी। किसान अब कम पानी और कम समय में ज्यादा अरहर उगा सकेंगे।

ICPV 25444 किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है। ये न सिर्फ गर्मी और सूखे में फलती-फूलती है, बल्कि कम समय में ज्यादा पैदावार देती है। भारत में दालों की कमी को कम करने और आयात पर निर्भरता घटाने में ये किस्म बड़ा रोल अदा करेगी। कर्नाटक, ओडिशा, और तेलंगाना में इसका परीक्षण सफल रहा है, और जल्द ही ये पूरे देश में फैलेगी। अगर आप अरहर की खेती करते हैं, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और इस नई किस्म के बीज के बारे में जानकारी लें। ICRISAT की ये खोज आपके खेत को हरा-भरा और जेब को भरा रखेगी।

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  • Shashikant

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