PBW 872 रतुआ रोग से लड़ने वाली गेहूं की नई किस्म, किसानों की आय को देगी नई ऊंचाई

सर्दी की पहली ठंडक में खेतों को हरा-भरा करने का मौका है, जब पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU), लुधियाना ने PBW 872 नाम की एक ऐसी गेहूं किस्म पेश की है जो रतुआ रोग से पूरी तरह लड़ लेती है। 6 मार्च 2023 को अधिसूचित (नोटिफिकेशन नंबर 1056(E)) यह किस्म उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र (NWPZ) के लिए समय पर बुवाई और सिंचित खेतों के लिए तैयार की गई है।

औसतन 152 दिनों (146-156 दिन) में तैयार होने वाली यह किस्म प्रति हेक्टेयर 75.2 क्विंटल औसत उपज देती है, जबकि अच्छे हालातों में 93.4 क्विंटल तक पहुंच सकती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी चपाती बनाने की क्वालिटी 8.2/10 है, जो बाजार में ऊंचे दाम दिला सकती है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के मैदानी इलाकों के किसान भाई इसे अपनाकर अपनी फसल को मजबूत बना सकते हैं।

PBW 872 की ताकत

यह किस्म भूरे रतुआ रोग (brown rust) के खिलाफ मजबूत दीवार है, जो गेहूं की फसल को 20-30 प्रतिशत बर्बाद कर देता है। PAU के वैज्ञानिकों ने इसे विशेष रूप से विकसित किया है, ताकि किसान दवाइयों का खर्च बचाएं। पौधे की औसत ऊंचाई 100 सेंटीमीटर (98-102 सेमी) रहती है, जो हवा या बारिश में गिरने से बचाती है। दाने पौष्टिक हैं – आयरन (Fe) 42.3 पीपीएम और जिंक (Zn) 40.7 पीपीएम से भरपूर, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं। चपाती क्वालिटी ऊंची होने से आटा नरम और स्वादिष्ट बनता है, बाजार में प्रीमियम दाम मिलते हैं। ICAR की सिफारिशों के मुताबिक, यह किस्म बदलते मौसम में भी डटी रहती है।

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नवंबर के पहले पखवाड़े में बोएं

समय पर बुवाई ही PBW 872 की असली ताकत है। उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों में 1-15 नवंबर के बीच बोएं, ताकि सर्दी का पूरा फायदा मिले। सिंचित खेतों के लिए यह आदर्श है, जहां पानी की उपलब्धता अच्छी हो। खेत को अच्छी तरह जोतकर भुरभुरा बनाएं, दोमट या उपजाऊ मिट्टी चुनें। बीज दर 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें, ताकि पौधे घने न हों। बुवाई से पहले बीज उपचार करें, ताकि शुरुआती रोग न लगें। PAU की सलाह है कि देरी से बुवाई से उपज 10-15 प्रतिशत घट सकती है।

संतुलित डोज से दाने मोटे होंगे

उर्वरकों का सही इस्तेमाल उपज को दोगुना कर देगा। प्रति हेक्टेयर नाइट्रोजन 150 किलोग्राम (यूरिया 255 किलो), फॉस्फोरस 80 किलोग्राम (डीएपी 175 किलो) और पोटाश 60 किलोग्राम (एमओपी 100 किलो) डालें। बुवाई पर फॉस्फोरस-पोटाश की पूरी डोज के साथ नाइट्रोजन का एक तिहाई, बाकी दो हिस्से पहली और दूसरी सिंचाई के बाद बराबर दें। सिंचाई बुवाई के 21 दिन बाद पहली करें, फिर जरूरत के मुताबिक – कुल 4-5 बार। ज्यादा पानी से जड़ें कमजोर हो सकती हैं, इसलिए मिट्टी की नमी चेक करें। जिंक और आयरन युक्त खाद मिलाने से दाने पौष्टिक बनेंगे।

फसल प्रबंधन

रतुआ रोग मुक्त होने से दवाइयों का झंझट कम है, लेकिन खरपतवार पर नजर रखें बुवाई के 30 दिन बाद स्प्रे करें। उपज बढ़ाने के लिए गांठ बनने पर क्लोरमेक्वाट क्लोराइड (0.2%) छिड़कें। कटाई समय पर करें, ताकि दाने सख्त न हो जाएं। PAU के अनुसार, प्रमित बीज ही लें उर्वरक-बीज दुकानों या ऑनलाइन स्टोर्स से आसानी से मिल जाएंगे। कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) से सलाह लें।

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  • Shashikant

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