Oats Varieties: पशुपालकों और किसानों के चेहरे पर खुशी की लहर है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के चारा अनुभाग ने जई (ओट्स) की तीन नई उन्नत किस्में विकसित की हैं, जो अधिक हरा चारा और बेहतर बीज उत्पादन देने में सक्षम हैं। ये किस्में देश के अलग-अलग जलवायु क्षेत्रों में उगाई जा सकती हैं, जिससे सालभर पशुओं को गुणवत्तापूर्ण चारा मिल सकेगा। इनकी सबसे बड़ी खासियत कम लागत में ज्यादा उत्पादन है, जो दूध उत्पादन बढ़ाने और पशु स्वास्थ्य सुधारने में मदद करेगा। जुलाई 2025 में खरीफ सीजन की शुरुआत के साथ ये किस्में किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती हैं। आइए, इन नई किस्मों और उनके फायदों को विस्तार से जानते हैं।
चारा संकट से निजात की उम्मीद
देश में आज हरे चारे की 11.24% और सूखे चारे की 23.4% कमी है, जो पशुपालकों के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बताया कि ये नई जई किस्में इस संकट को दूर करने में अहम भूमिका निभाएँगी। इन्हें भारत सरकार के राजपत्र में अधिसूचित किया गया है, ताकि किसान समय पर इनकी खेती शुरू कर सकें। ये किस्में न सिर्फ चारा उत्पादन बढ़ाएंगी, बल्कि पशुओं की सेहत को बेहतर कर दूध की गुणवत्ता में भी सुधार लाएंगी। इससे ग्रामीण इलाकों में पशुपालन को नई ऊँचाइयों तक ले जाया जा सकता है।
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जई की तीन नई किस्में
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने HFO 917, HFO 1014, और HFO 915 नाम की तीन जई किस्में विकसित की हैं, जिन्हें भारत सरकार की मंजूरी मिल चुकी है। इनमें से दो किस्में- HFO 917 और HFO 1014 बीज और चारा दोनों के लिए उपयुक्त हैं, जबकि HFO 915 बार-बार कटाई के लिए खास तौर पर बनाई गई है। इन किस्मों को वैज्ञानिकों की मेहनत से तैयार किया गया है, जो देश के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती हैं। नीचे दी गई सरणी इन किस्मों की खासियतों को दर्शाती है:
किस्म | हरा चारा (क्विंटल/हेक्टेयर) | सूखा चारा (क्विंटल/हेक्टेयर) | बीज उत्पादन (क्विंटल/हेक्टेयर) | प्रोटीन प्रतिशत |
---|---|---|---|---|
HFO 917 | 192 | 28 | 23.8 | उत्तर-पश्चिम: 14.4%, उत्तर-पूर्व: 9.38% |
HFO 1014 | 185 | 28 | उत्तर-पश्चिम: 24.3, उत्तर-पूर्व: 18 | उत्तर-पश्चिम: 15.5% |
HFO 915 | 234 | 50 | 15.7 | लगभग 10% |
ये आँकड़े बताते हैं कि ये किस्में पशुओं के लिए पोषक चारा और किसानों के लिए लाभकारी बीज दे सकती हैं।
HFO 917 और HFO 1014, दोहरे उपयोग की ताकत
HFO 917 और HFO 1014 को डॉ. योगेश जिंदल और उनकी टीम ने विकसित किया है। ये दोनों किस्में हरा चारा और बीज उत्पादन दोनों के लिए मुफीद हैं। HFO 917 से 192 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 23.8 क्विंटल बीज मिलता है, जिसमें प्रोटीन 14.4% तक पहुँचता है। वहीं, HFO 1014 185 क्विंटल हरा चारा और 24.3 क्विंटल बीज देती है, जिसमें प्रोटीन 15.5% तक है। ये किस्में पशुओं को मजबूती देती हैं और दूध उत्पादन बढ़ाने में मदद करती हैं। इनका कम लागत वाला उत्पादन किसानों की जेब पर बोझ नहीं डालता।
HFO 915, पहाड़ी क्षेत्रों का साथी
HFO 915 को हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे पहाड़ी क्षेत्रों के लिए तैयार किया गया है, जहाँ बार-बार कटाई की जरूरत होती है। ये किस्म 234 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हरा चारा और 50 क्विंटल सूखा चारा देती है। इसके बीज उत्पादन में 15.7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलता है, जिसमें प्रोटीन लगभग 10% होता है। RO-19 से 4% और UPO-212 से 9% अधिक उत्पादन देने वाली ये किस्म पहाड़ी किसानों के लिए वरदान साबित होगी। बार-बार कटाई से सालभर चारा उपलब्ध रहेगा।
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किन क्षेत्रों में उगाएँ?
HFO 917 और HFO 1014 को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड (तराई क्षेत्र), पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, और असम जैसे मैदानी और उपजाऊ इलाकों में उगाने की सलाह दी गई है। ये क्षेत्र जई की खेती के लिए अनुकूल हैं और इन किस्मों से अधिक लाभ मिलेगा। वहीं, HFO 915 हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के ऊँचाई वाले क्षेत्रों में सफल होगी, जहाँ कठोर मौसम में भी ये मजबूती दिखाएगी। सही क्षेत्र चयन से किसान अधिक उत्पादन और कम जोखिम पा सकते हैं।
पशुपालन को नई ऊँचाइयाँ
ये नई जई किस्में (Oats Varieties) पशुपालकों के लिए खुशखबरी लेकर आई हैं। गुणवत्तापूर्ण चारा से पशुओं की सेहत बेहतर होगी, जिससे दूध उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। कम लागत में ज्यादा चारा मिलने से पशुपालन की लागत घटेगी और मुनाफा बढ़ेगा। प्रोटीन से भरपूर चारा पशुओं की ग्रोथ और प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करेगा। गांवों में ये बदलाव पशुपालकों की आजीविका को नई दिशा दे सकता है।
देश में चारा की कमी लंबे समय से पशुपालकों की चिंता रही है। हरे चारे की 11.24% और सूखे चारे की 23.4% कमी ने दूध उत्पादन को प्रभावित किया है। लेकिन इन नई किस्मों के साथ ये संकट कम हो सकता है। सालभर चारा उपलब्धता से पशुओं को नियमित पोषण मिलेगा, और दूध की गुणवत्ता में सुधार होगा। ये किस्में जलवायु परिवर्तन के दौर में भी टिकाऊ खेती को बढ़ावा देंगी।
खेती की आसान तकनीक
इन किस्मों को उगाना आसान है। HFO 917 और HFO 1014 को मैदानी क्षेत्रों में बुआई के लिए अक्टूबर-नवंबर और फरवरी-मार्च के बीच उपयुक्त समय है। HFO 915 को पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल-मई में बोया जा सकता है। सही सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन से उत्पादन दोगुना हो सकता है। विश्वविद्यालय ने किसानों के लिए ट्रेनिंग और गाइडलाइंस भी जारी की हैं, ताकि वे इनका पूरा लाभ उठा सकें।
ये जई किस्में मिट्टी की सेहत को भी बेहतर करती हैं। इनके जड़ तंत्र से मिट्टी में जैविक पदार्थ बढ़ते हैं, जो उसकी उर्वरता बनाए रखते हैं। कम रासायनिक उर्वरक की जरूरत से पर्यावरण पर बोझ भी कम होगा। इससे खेती टिकाऊ बनेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए मिट्टी सुरक्षित रहेगी।
सरकार भी दे रही है सब्सिडी
भारत सरकार ने इन किस्मों को राजपत्र में अधिसूचित कर किसानों को प्रोत्साहन दिया है। सब्सिडी और बीज वितरण की योजना से इनकी खेती को बढ़ावा मिलेगा। जुलाई 2025 से शुरू होने वाले खरीफ सीजन में किसान इनका इस्तेमाल शुरू कर सकते हैं। सरकार का ये कदम पशुपालन और खेती को जोड़ने में मदद करेगा।
ये नई जई किस्में पशुपालकों और किसानों के लिए एक नई शुरुआत हैं। कम लागत, अधिक उत्पादन, और बेहतर पोषण से गांवों की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। आइए, मिलकर इस तकनीक को अपनाएँ और अपने पशुओं को स्वस्थ रखें। ये कदम न सिर्फ आज की जरूरत है, बल्कि कल के लिए भी उम्मीद की किरण है।
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