Organic Banana Farming: अगर आप किसान हैं और अच्छी आमदनी चाहते हैं, तो ऑर्गेनिक केले की खेती एक बेहतरीन विकल्प हो सकता है। वर्तमान में ऑर्गेनिक फसलों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिल सकता है। भारत के अधिकांश राज्यों में केले की खेती की जाती है, और ऑर्गेनिक खेती से उत्पादों की गुणवत्ता और कीमत दोनों में सुधार होता है।
केलों की प्रमुख किस्में
भारत में कुल फल उत्पादन में केले की हिस्सेदारी लगभग 31% है। इसे विभिन्न प्रकारों में खाया जाता है। नीचे केले की कुछ प्रमुख किस्में दी गई हैं:
1. लम्बे किस्में (लम्बा प्रभेद)
इस प्रकार की किस्मों में लंबे पौधे होते हैं:
- अल्पान
- मालभोग
- नेपाली
- चीनी चंपा
- कैथाली
2. बौनी किस्में (बौना प्रभेद)
छोटे और मध्यम आकार के पौधों के लिए उपयुक्त:
- बरसाई
- हरिछाल
- कस्तूरी 63-9
- मौरिस रोबस्टा
3. सब्जी वाला प्रभेद
इनके फल सब्जी बनाने के लिए उपयुक्त होते हैं:
- कचकेला
- बनकेला
- वियुसा
- बतिसा
इसके अलावा कोठिया, मुठिया और भोंस जैसी किस्में भी सब्जी और पके रूप में खाई जाती हैं।
केले की खेती के लिए जलवायु
ऑर्गेनिक केले की खेती (Organic Banana Farming) के लिए 10°C से 40°C के बीच तापमान सबसे उपयुक्त होता है। 40°C से अधिक तापमान होने पर पौधों की पत्तियां जलने लगती हैं, जबकि सम जलवायु होने से गुणवत्ता और उत्पादन में वृद्धि होती है।
केले लगाने का सही समय और दूरी
केले की रोपाई के लिए 25 जून से 15 जुलाई का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इस समय पौधे बेहतर ढंग से विकसित होते हैं और अच्छी उपज देते हैं। केले के पौधों की उचित दूरी तय करना भी अत्यंत आवश्यक होता है, ताकि सूर्य का प्रकाश और हवा सभी पौधों तक समान रूप से पहुंचे। इससे पौधों का विकास बेहतर होता है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
यदि आप लंबी किस्मों के केले लगा रहे हैं, तो 2×2 मीटर की दूरी रखना सही होगा, ताकि पौधों को पर्याप्त जगह मिल सके। वहीं, बौनी किस्मों के लिए 1.5×1.5 मीटर की दूरी आदर्श मानी जाती है। पौधों के बीच सही दूरी बनाए रखने से पौधों को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और रोगों का खतरा कम हो जाता है।
खाद
ऑर्गेनिक खेती में प्राकृतिक खाद का उपयोग महत्वपूर्ण होता है। इसके लिए कम्पोस्ट खाद, केचुआ खाद और सब्जियों के छिलकों से बनी खाद का उपयोग किया जा सकता है। खाद डालने का सही समय जून और नवंबर-दिसंबर माना जाता है।
सिंचाई प्
केला एक जल-प्रिय पौधा है, इसलिए इसकी सिंचाई का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
- रोपाई के समय: कम सिंचाई करें।
- नवंबर से फरवरी: 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।
- मार्च से जून: 7 दिन के अंतराल पर पानी दें।
खरपतवार और सकर नियंत्रण
खरपतवारों के कारण पौधों में बीमारियां फैल सकती हैं, इसलिए समय-समय पर इन्हें हटाना जरूरी होता है। साथ ही, सकर (छोटी पत्तियां) को समय पर हटाने से मुख्य केले का गुच्छा अच्छी गुणवत्ता का विकसित होता है।
पौधों को सहारा देना और घार की कटाई
बड़े पौधों को गिरने से बचाने के लिए रस्सी से बांधना या बांस का सहारा देना जरूरी होता है। जून में लगाए गए पौधे अप्रैल-मई में फल देने लगते हैं, और जब केले का घार पूरी तरह तैयार हो जाए, तो उसे सही समय पर काट लेना चाहिए।
ऑर्गेनिक केले की खेती से लाभ
जैविक खेती (Organic Banana Farming) में प्रारंभ में उत्पादन कम होता है, लेकिन बाद में 10-15 टन प्रति एकड़ तक उत्पादन संभव होता है। सही तकनीकों का उपयोग करने से किसानों को बेहतर मुनाफा मिल सकता है। एक एकड़ भूमि में ऑर्गेनिक केले की खेती करने पर औसतन 2.5 से 3 लाख रुपये की आय प्राप्त की जा सकती है। यदि किसान अपने उत्पाद को सीधे बाजार में बेचते हैं या प्रोसेसिंग के माध्यम से मूल्यवर्धन करते हैं, तो मुनाफा और भी अधिक हो सकता है।
केले में लगने वाले रोग और रोकथाम
पनामा बेल्ट रोग
यह एक फंगल बीमारी है जो पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचाती है। जैविक कीटनाशक के उपयोग से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।
केले का पत्रगुच्छन रोग
इस बीमारी से पत्तियां सिकुड़ने लगती हैं और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। प्रभावित पत्तियों को तुरंत हटाकर जैविक कीटनाशक का छिड़काव करना इसका समाधान है।
आजकल ऑर्गेनिक खेती की मांग तेजी से बढ़ रही है। सरकार और उपभोक्ता रासायनिक खेती से जैविक खेती की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में केले की ऑर्गेनिक खेती (Organic Banana Farming) एक लाभदायक व्यवसाय साबित हो सकती है। यदि सही तकनीक और समय का ध्यान रखा जाए, तो किसान साथी अच्छी उपज प्राप्त कर सकते हैं और अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं।
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