बिहार के तालाबों में उगने वाला मखाना, जिसे फॉक्स नट या लोटस सीड्स भी कहते हैं, आज किसानों के लिए ‘सफेद सोना’ बन गया है। पहले मखाना खेती में मेहनत तो खूब थी, लेकिन कमाई उतनी नहीं। अब ऑर्गेनिक मखाना ने किसानों की तकदीर बदल दी है। नेशनल को-ऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड (NCEL) की पहल और वैश्विक बाजार में बढ़ती मांग ने इसे गेमचेंजर बना दिया। बिहार, जो विश्व के 90% मखाना उत्पादन का केंद्र है, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। मिथिला मखाना को जीआई टैग और हाल में घोषित मखाना बोर्ड ने इसकी राह और आसान कर दी है।
मखाना, बिहार से विश्व बाजार तक
बिहार के मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया, और सुपौल जैसे जिले मखाना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ के तालाबों में पारंपरिक तरीकों से उगाया जाने वाला मखाना अब ऑर्गेनिक रूप में तैयार हो रहा है। ऑर्गेनिक मखाना की मांग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और यूरोप में तेजी से बढ़ी है। 2023-24 में भारत ने 25,130 मीट्रिक टन मखाना निर्यात किया, जिसमें से अधिकांश बिहार से था। NCEL ने बताया कि मखाना अब केवल देसी स्नैक नहीं, बल्कि वैश्विक सुपरफूड है। इसकी मांग का कारण इसका पोषण मूल्य और प्राकृतिक खेती है। मखाना प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, और मैग्नीशियम से भरपूर है, जो इसे स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों की पहली पसंद बनाता है।
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NCEL की पहल, किसानों का सशक्तिकरण
नेशनल को-ऑपरेटिव एक्सपोर्ट्स लिमिटेड ने मखाना किसानों को सशक्त बनाने के लिए तीन प्रमुख कदम उठाए हैं। पहला, पारंपरिक किसानों को सहकारी समितियों के माध्यम से जोड़कर उनकी आय बढ़ाना। दूसरा, उत्पादकता बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीकों और नवाचार को प्रोत्साहन देना। तीसरा, भारत के मखाने को वैश्विक बाजार में ब्रांड के रूप में स्थापित करना। NCEL ने सहकारी समितियों के जरिए किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज, जैविक खेती की ट्रेनिंग, और निर्यात के लिए मार्केट लिंकेज प्रदान किए हैं। इसके अलावा, मखाना की वैक्यूम पैकिंग और स्वादयुक्त वेरिएंट्स (जैसे मसाला, चॉकलेट, और पेरी-पेरी) ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी लोकप्रियता बढ़ाई है।
मिथिला मखाना और मखाना बोर्ड का योगदान
2022 में मिथिला मखाना को जीआई टैग मिलने से इसकी वैश्विक पहचान बढ़ी। यह टैग न केवल मखाना की गुणवत्ता की गारंटी देता है, बल्कि किसानों को बेहतर दाम भी दिलाता है। हाल में केंद्रीय बजट 2025 में मखाना बोर्ड की घोषणा हुई, जिसका उद्देश्य मखाना खेती को बढ़ावा देना, अनुसंधान को प्रोत्साहित करना, और निर्यात बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है। यह बोर्ड बिहार के 5 लाख से अधिक किसानों को लाभ पहुँचाएगा, विशेष रूप से मल्लाह समुदाय को, जो मखाना खेती में पारंपरिक रूप से शामिल है। बोर्ड के माध्यम से किसानों को सब्सिडी, प्रशिक्षण, और भंडारण सुविधाएँ मिलेंगी, जिससे उत्पाद की बर्बादी कम होगी और निर्यात गुणवत्ता बढ़ेगी।
ऑर्गेनिक मखाना की खेती और चुनौतियाँ
ऑर्गेनिक मखाना की खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग नहीं होता। बिहार के तालाबों में प्राकृतिक रूप से उगने वाला मखाना जैविक खेती का उत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, इसकी खेती श्रमसाध्य है। बीज संग्रह से लेकर पॉपिंग तक की प्रक्रिया में कई दिन लगते हैं। NCEL और मखाना बोर्ड इस प्रक्रिया को मशीनीकरण और प्रशिक्षण के जरिए आसान बनाने की योजना बना रहे हैं। मौसमी उपलब्धता और कीमतों में उतार-चढ़ाव भी चुनौतियाँ हैं। फिर भी, ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन (जैसे FSSAI, EU Organic) ने मखाना निर्यात को बढ़ावा दिया है। बिहार के किसान रामदेव प्रसाद कहते हैं, “पहले मखाना 400 रुपये किलो बिकता था, अब ऑर्गेनिक मखाना 1400 रुपये किलो तक बिक रहा है। NCEL की मदद से हमारा माल विदेश जा रहा है।”
ऑर्गेनिक मखाना बिहार के किसानों के लिए आर्थिक समृद्धि का नया द्वार है। NCEL, मखाना बोर्ड, और मिथिला मखाना जीआई टैग की बदौलत यह सुपरफूड विश्व बाजार में छा रहा है। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें, ऑर्गेनिक मखाना खेती की जानकारी लें, और इस क्रांति का हिस्सा बनें।
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