बिहार में हर साल गर्मी और मॉनसून के दौरान आकाशीय बिजली की मार से सैकड़ों जिंदगियाँ चली जाती हैं। यह संख्या पिछले कुछ सालों में चिंता का विषय बन गई है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खतरे को कम करने का एक आसान और प्राकृतिक तरीका हमारे सामने है? प्रोफेसर (डॉ.) एसके सिंह, जो डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर, बिहार से जुड़े हैं, ने हाल ही में एक साक्षात्कार में एक सुझाव दिया है “आकाशीय बिजली गिरेगी पहले ताड़ पर, बचेगा इंसान अपनाइए प्राकृतिक सुरक्षा।” आइए, जानते हैं कि ये पेड़ कैसे जिंदगियाँ बचा सकते हैं।
आकाशीय बिजली का खतरा, बिहार की सच्चाई
भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में आकाशीय बिजली से होने वाली मौतें साल दर साल बढ़ रही हैं, खासकर उत्तर और दक्षिण बिहार के समतल क्षेत्रों में। गर्मी और बारिश के मौसम में खेतों में काम करने वाले किसान, चरवाहे, या खुले में रहने वाले लोग इसके शिकार हो रहे हैं। इसका कारण सिर्फ मौसम की अस्थिरता नहीं, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन भी है। पहले इन क्षेत्रों में ताड़, खजूर, और ताड़ी जैसे पेड़ खूब थे, जो बिजली को अपनी ओर खींचकर इंसानों को बचाते थे। लेकिन शहरीकरण, वृक्ष कटाई, और खेती के विस्तार ने इन पेड़ों को गायब कर दिया।
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ताड़ के पेड़, प्रकृति का रक्षक
(Palm Tree Lightning Protection) ताड़ के पेड़ आकाशीय बिजली से बचाव का प्राकृतिक कवच हैं। इनकी ऊँचाई, गीले ऊतक, और विद्युत चालकता उन्हें बिजली का पहला निशाना बनाती है। जब बिजली इन पेड़ों पर गिरती है, वे इसे अवशोषित कर लेते हैं और आसपास के क्षेत्र को सुरक्षित रखते हैं। अमेरिका और भारत में हुए वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि ताड़ जैसे ऊँचे और नम पेड़ बिजली को जमीन तक पहुँचाने में मदद करते हैं, जिससे इंसानों और संरचनाओं को नुकसान नहीं होता। पहले ग्रामीण क्षेत्रों में ये पेड़ ताड़ी, फल, और लकड़ी का स्रोत थे, साथ ही एक पारिस्थितिक ढाल भी।
समाधान, ताड़ लगाओ, जिंदगी बचाओ
इस समस्या का हल साफ है अधिक से अधिक ताड़ के पेड़ लगाएँ। मॉनसून के इस मौसम में, जब 22 जून 2025 को बारिश शुरू हो गई है, खेतों के किनारे, खाली जमीन पर, या घरों के आसपास ताड़ के पौधे रोपें। इन्हें 5-6 मीटर की दूरी पर लगाएँ, ताकि वे फैल सकें और मजबूत जड़ें पकड़ सकें। पौधों को गोबर की खाद और पानी से सींचें, ताकि वे जल्दी बढ़ें। बुजुर्गों का मानना है कि ताड़ के पेड़ बिजली को अपनी ओर खींचते हैं, और यह ज्ञान अब वैज्ञानिकों ने भी माना है। साथ ही, बिजली गिरने के दौरान खुले में न रहें घरों या सुरक्षित जगहों पर जाएँ।
पर्यावरण का दोहरा लाभ
ताड़ के पेड़ लगाना सिर्फ बिजली से सुरक्षा ही नहीं, बल्कि पर्यावरण के लिए भी वरदान है। ये पेड़ कार्बन डाइऑक्साइड सोखते हैं, ऑक्सीजन देते हैं, और मिट्टी के कटाव को रोकते हैं। मॉनसून में इनकी जड़ें बारिश का पानी रोकती हैं, जो खेतों के लिए नमी बनाए रखती है। साथ ही, ताड़ी और फल जैसे उत्पादों से किसानों की आय भी बढ़ सकती है। यह कदम ग्रामीण क्षेत्रों में टिकाऊ जीवनशैली को बढ़ावा देगा और आने वाली पीढ़ियों के लिए हरा-भरा भविष्य सुनिश्चित करेगा। प्रोफेसर सिंह का कहना है कि यह प्रकृति के साथ संतुलन का रास्ता है, जो विकास के साथ सुरक्षा देता है।
ताड़ के पेड़ लगाना एक छोटा कदम है, लेकिन इसके परिणाम बड़े होंगे। प्रोफेसर (डॉ.) एसके सिंह की सलाह को अपनाएँ और इस जून-जुलाई 2025 में ताड़ रोपण शुरू करें। इससे न सिर्फ बिजली की मार से बचा जा सकेगा, बल्कि प्रकृति को भी नया जीवन मिलेगा। यह मेहनत जिंदगियों को बचाने वाली मुहिम बन सकती है आज से शुरू करें!
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