पराली न जलाएँ! मिट्टी की उर्वरता बढ़ाएँ और कमाएँ दुगनी आमदनी — जानिए आसान तरीका

Parali Burning: साथियों एक कहावत है, “पराली में आग लगाओगे, तो बंजर भूमि पाओगे, फिर अनाज कहाँ से खाओगे?” यह पंक्तियाँ किसानों के लिए एक गंभीर चेतावनी हैं। धान की फसल के बाद बचे अवशेष (पराली) को जलाना मिट्टी की उर्वरता, पर्यावरण और किसानों की सेहत को नुकसान पहुँचाता है। उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाना प्रदूषण और स्मॉग का बड़ा कारण है। इससे मिट्टी के मित्र कीट और सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं, जिससे उपज 20-30% तक कम हो सकती है।

लेकिन इसका समाधान सरल और वैज्ञानिक है—पराली को जलाने के बजाय खाद, पशु चारा या बायोमास में बदलें। यह न केवल खेत को समृद्ध बनाता है, बल्कि अतिरिक्त आय भी देता है। आइए, जानें कि पराली प्रबंधन से मिट्टी, पर्यावरण और किसानों की आय कैसे बढ़ाई जा सकती है।

पराली जलाने के नुकसान

पराली जलाने से मिट्टी और पर्यावरण को भारी नुकसान होता है। मिट्टी में मौजूद मित्र कीट जैसे केंचुआ और लेडीबर्ड बीटल, जो फसलों को कीटों से बचाते हैं, जलकर मर जाते हैं। मिट्टी की कार्बनिक सामग्री 50-60% तक कम हो जाती है, जिससे उर्वरता घटती है और अगली फसल की उपज प्रभावित होती है। धुएँ से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर जैसी जहरीली गैसें निकलती हैं, जो दिल्ली-NCR जैसे क्षेत्रों में स्मॉग का कारण बनती हैं। इससे श्वसन रोग और आँखों में जलन जैसी स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ती हैं। इसके अलावा, पराली जलाने पर ₹2,500-15,000 प्रति एकड़ का जुर्माना और कानूनी कार्रवाई का खतरा रहता है। पर्यावरण और मिट्टी की दीर्घकालिक हानि से बचने के लिए पराली प्रबंधन जरूरी है।

ये भी पढ़ें – रबी सीजन 2025 के लिए बीकानेर कृषि विश्वविद्यालय की 7 अहम सलाहें, मूंगफली से सरसों तक किसानों के लिए सुनहरा मौका

पराली प्रबंधन के वैज्ञानिक तरीके

पराली जलाने के बजाय इसके प्रबंधन के कई वैज्ञानिक और व्यावहारिक तरीके हैं।

  • खाद निर्माण: पराली को खेत में बिखेरकर PUSA डीकंपोजर (4 कैप्सूल/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। यह 20-25 दिन में पराली को जैविक खाद में बदल देता है।

  • पशु चारा: पराली को चॉपर मशीन से काटकर साइलेज बनाएँ, जो पशुओं के लिए पौष्टिक है।

  • मल्चिंग: पराली को खेत में बिछाकर मिट्टी की नमी और खरपतवार नियंत्रण करें।

  • कम्पोस्टिंग: पराली को गोबर और यूरिया के साथ मिलाकर कम्पोस्ट बनाएँ।

  • बायोमास उपयोग: पराली को बायोमास संयंत्रों में भेजकर बिजली या बायो-गैस बनाएँ।
    ये तरीके मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं और अतिरिक्त आय देते हैं। सरकारी योजनाएँ इनके लिए सब्सिडी प्रदान करती हैं।

खेत में पराली सड़ाने की प्रक्रिया

खेत में पराली को खाद में बदलना सबसे आसान और प्रभावी तरीका है। धान की कटाई के बाद पराली को समान रूप से खेत में बिखेरें। PUSA डीकंपोजर (₹20-30/पैक) या अन्य जैविक डीकंपोजर (5 लीटर/हेक्टेयर) को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। हल्की सिंचाई करें, ताकि नमी बनी रहे। 20-25 दिन में पराली विघटित होकर खाद बन जाती है, जो मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश बढ़ाती है। गोमूत्र (10 लीटर/हेक्टेयर) मिलाने से प्रक्रिया तेज होती है। यह तरीका रासायनिक खाद की जरूरत को 20% कम करता है और मिट्टी की उर्वरता को 30% तक बढ़ाता है। छोटे किसान इसे आसानी से अपना सकते हैं।

पशु चारे के रूप में उपयोग

पराली को पशु चारे के रूप में उपयोग करना पशुपालक किसानों के लिए लाभकारी है। धान की पराली को चॉपर मशीन (किराया ₹500-1000/दिन) से काटकर साइलेज बनाएँ। 100 किलो पराली में 1 किलो गुड़ और 500 ग्राम यूरिया मिलाएँ, फिर हवादार ड्रम में 30-40 दिन रखें। यह साइलेज गायों और भैंसों के लिए पौष्टिक है और दूध उत्पादन में 10-15% वृद्धि करता है। इससे चारा खरीद की लागत (₹5,000-7,000/माह) बचती है। गाँवों में कस्टम हायरिंग सेंटर से चॉपर मशीनें आसानी से उपलब्ध हैं। यह तरीका पर्यावरण के साथ-साथ किसानों की जेब भी बचाता है।

ये भी पढ़ें – आधुनिक खेती से 2 गुना मुनाफा, शामली में गन्ना-सरसों की संयुक्त खेती का कमाल

पर्यावरण और स्वास्थ्य लाभ

पराली प्रबंधन से पर्यावरण और स्वास्थ्य को कई लाभ मिलते हैं। वायु प्रदूषण में कमी से स्मॉग और श्वसन रोग कम होते हैं। मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ने से दीर्घकालिक उर्वरता बनी रहती है। मित्र कीट और सूक्ष्मजीव संरक्षित रहते हैं, जो फसलों को प्राकृतिक रूप से कीटों से बचाते हैं। यह जैव विविधता को बढ़ावा देता है। पराली से बनी खाद रासायनिक खाद की निर्भरता कम करती है, जिससे मिट्टी और पानी का प्रदूषण घटता है। स्वच्छ पर्यावरण से गाँवों में जीवन स्तर बेहतर होता है।

आर्थिक लाभ और सरकारी सहायता

पराली प्रबंधन से किसानों को आर्थिक लाभ मिलता है। खेत में बनी खाद से रासायनिक खाद की लागत (₹10,000-15,000/हेक्टेयर) बचती है। साइलेज से चारा खर्च कम होता है। बायोमास संयंत्रों को पराली बेचकर ₹2,000-3,000/टन आय हो सकती है। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और पराली प्रबंधन योजना के तहत हैप्पी सीडर, चॉपर और रोटावेटर पर 50-80% सब्सिडी मिलती है। PUSA डीकंपोजर मुफ्त या कम कीमत पर उपलब्ध है। कस्टम हायरिंग सेंटर से मशीनें किराए पर लेना सस्ता विकल्प है। स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क कर सब्सिडी और प्रशिक्षण लें।

किसानों के लिए खास सलाह

पराली प्रबंधन को सफल बनाने के लिए कुछ सरल सुझाव हैं।

  • पराली जलाने के नुकसान और प्रबंधन के लाभों को समझें।

  • हैप्पी सीडर या चॉपर मशीन किराए पर लें।

  • गाँव के किसानों के साथ मिलकर डीकंपोजर और मशीनें साझा करें।

  • जैविक खेती को बढ़ावा दें, पराली खाद से उपज की मांग बढ़ाएँ।

  • कृषि विभाग से सब्सिडी और प्रशिक्षण की जानकारी लें।

पराली जलाना मिट्टी, पर्यावरण और किसानों की सेहत का दुश्मन है। PUSA डीकंपोजर, साइलेज और मल्चिंग जैसे वैज्ञानिक तरीकों से पराली को खाद और चारे में बदलें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है, पर्यावरण बचाता है और अतिरिक्त आय देता है। सरकारी सब्सिडी और सामुदायिक सहयोग से यह प्रक्रिया आसान है। किसान भाइयों, इस सर्दी पराली न जलाएँ।

ये भी पढ़ें – FPO का कमाल! किसानों ने ऑनलाइन बाजार में बेची उपज, 6 महीने में ₹377 करोड़ की कमाई

Author

  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

    View all posts

Leave a Comment