Peanut G-20 Variety: मानसून ने देश में दस्तक दे दी है, और खेतों में बुवाई का काम जोरों पर है। इस मौसम में मूंगफली की खेती की योजना बना रहे लोगों के लिए G20 मूंगफली की किस्म वरदान साबित हो सकती है। भारतीय मूंगफली अनुसंधान निदेशालय (DGR), जूनागढ़ द्वारा विकसित यह किस्म पारंपरिक किस्मों से कहीं बेहतर है। यह 90-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, कम पानी में भी शानदार उपज देती है, और इसमें 48-50% तेल की मात्रा होती है। उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में इसकी बढ़ती माँग इसे लाभकारी बना रही है। आइए जानते हैं G20 मूंगफली की खासियत और बुवाई के फायदे।
G20 मूंगफली की खासियत (Peanut G-20 Variety)
G20 मूंगफली की किस्म अपनी उच्च उपज और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है। यह किस्म प्रति हेक्टेयर 25-30 क्विंटल उपज देती है, जबकि पुरानी किस्में जैसे TMV-2 और JL-24 केवल 15-20 क्विंटल तक दे पाती हैं। इसके दाने बड़े, एकसमान, और चमकदार होते हैं, जो मंडियों में 4500-6000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव दिलाते हैं।
G20 में टिक्का रोग, जड़ सड़न, और लीफ स्पॉट जैसे रोगों के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधकता है, जिससे कीटनाशकों का खर्च 20-30% कम हो जाता है। इसकी तेल मात्रा 48-50% होने से तेल मिलों में इसकी माँग बढ़ रही है। साथ ही, यह सूखा सहन करने में सक्षम है और पारंपरिक किस्मों की तुलना में 15-20% कम पानी की जरूरत पड़ती है, जो मानसून के अनिश्चित पैटर्न में फायदेमंद है।
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मानसून में बुवाई का सही समय
मानसून का शुरुआती दौर G20 मूंगफली की बुवाई के लिए आदर्श है। उत्तर प्रदेश और गुजरात में जून के अंत से जुलाई के पहले हफ्ते तक बुवाई शुरू कर देनी चाहिए। दोमट और बलुई मिट्टी इस फसल के लिए बेस्ट है, जिसमें pH 6.0-7.0 हो। प्रति हेक्टेयर 80-100 किलो बीज की जरूरत होती है, जिसे 30-45 सेमी की दूरी पर बोना चाहिए।
DGR के विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बुवाई से पहले बीजों को राइजोबियम और PSB (फॉस्फेट सॉल्यूबिलाइजिंग बैक्टीरिया) से उपचारित करें, ताकि जड़ों की वृद्धि बेहतर हो। मानसून की हल्की बारिश इस फसल को शुरूआती नमी देती है, लेकिन जलभराव से बचाने के लिए खेत में नालियाँ बनाएँ। यह किस्म 90-100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे अक्टूबर तक कटाई शुरू हो सकती है।
कम लागत में ज्यादा मुनाफा
G20 मूंगफली (Peanut G-20 Variety) की खेती में लागत कम और मुनाफा ज्यादा है। प्रति हेक्टेयर खेती की लागत 30,000-40,000 रुपये आती है, जिसमें बीज, उर्वरक, और श्रम शामिल हैं। कम रोग होने से कीटनाशकों पर खर्च 5000-7000 रुपये तक बचता है। मंडियों में 4500-6000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 25-30 क्विंटल उपज से 1.12-1.80 लाख रुपये की आय हो सकती है। इससे प्रति हेक्टेयर 50,000-70,000 रुपये का शुद्ध मुनाफा मिलता है। तेल मिलों में इसकी ऊँची तेल मात्रा के कारण 10-15% अतिरिक्त दाम मिलता है। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, और गुजरात के राजकोट, जूनागढ़ जैसे मंडी केंद्रों में G20 की माँग बढ़ रही है। इसकी खेती छोटे और मझोले खेतों के लिए भी उपयुक्त है।
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रोग प्रतिरोधक और कम पानी की जरूरत
G20 मूंगफली की सबसे बड़ी खूबी है इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता। टिक्का रोग और जड़ सड़न, जो पारंपरिक किस्मों में 20-25% नुकसान करते हैं, G20 में लगभग नगण्य हैं। यह किस्म सूखे में भी 15-20 क्विंटल उपज दे सकती है, जो इसे गुजरात जैसे कम बारिश वाले क्षेत्रों के लिए आदर्श बनाता है। उत्तर प्रदेश के बरेली, मुरादाबाद, और आगरा जैसे इलाकों में भी इसे मानसून की कम बारिश में उगाया जा सकता है। DGR के अनुसार, ड्रिप इरिगेशन और मल्चिंग से पानी की और बचत हो सकती है। उर्वरकों में नाइट्रोजन (20-25 किलो/हेक्टेयर) और फॉस्फोरस (40-50 किलो/हेक्टेयर) का संतुलित उपयोग उपज बढ़ाता है।
सरकारी सहायता और बुवाई टिप्स
G20 मूंगफली (Peanut G-20 Variety) की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार कई योजनाएँ चला रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) और तिलहन विकास योजना के तहत बीज और ड्रिप इरिगेशन पर 50% तक सब्सिडी मिलती है। उत्तर प्रदेश और गुजरात के कृषि विज्ञान केंद्रों से G20 के प्रमाणित बीज 80-100 रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध हैं। बुवाई से पहले मिट्टी की जाँच कराएँ और जैविक खाद (5-10 टन/हेक्टेयर) का उपयोग करें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडिमेथालिन (1 लीटर/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। मानसून में जलभराव से बचने के लिए ऊँची मेड़ों पर बुवाई करें। ICAR और DGR की हेल्पलाइन (1800-180-1717) से बुवाई और रखरखाव की जानकारी ली जा सकती है। G20 मूंगफली की खेती कम मेहनत और लागत में बंपर मुनाफा देती है, जो इसे मानसून 2025 के लिए शानदार विकल्प बनाती है।
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