इस तरह करें बैंगन की खेती, चार साल तक जबरदस्त पैदावार! जानिए कृषि वैज्ञानिक का सीक्रेट

भारत में खेती अब सिर्फ परंपरागत तरीका नहीं रही, बल्कि वैज्ञानिक तकनीकों ने इसे और भी लाभकारी बना दिया है। बैंगन, जिसे हर घर की रसोई में कभी सब्जी, कभी भर्ते और कभी पकौड़ी में इस्तेमाल किया जाता है, अब किसानों के लिए और भी कमाई का जरिया बन गया है। के.एन.आई.पी.एस.एस. सुल्तानपुर के डॉ. सुशील कुमार श्रीवास्तव ने बैंगन की एक विशेष विधि विकसित की है, जिसे पेरेनियल खेती कहा जाता है। इस तकनीक से बैंगन का पौधा तीन से चार साल तक लगातार फल देता है और किसानों की आय दोगुनी हो सकती है।

पेरेनियल विधि क्या है

डॉ. सुशील कुमार के अनुसार, बैंगन का पौधा अगर पेरेनियल तरीके से लगाया जाए, तो यह एक बारहमासी पौधे की तरह कई सालों तक उत्पादन देता है। इसके लिए नर्सरी में बैंगन का स्वस्थ पौधा तैयार किया जाता है और फिर इसे जंगली बैंगन या किसी मजबूत किस्म के पौधे पर कलम किया जाता है। इस ग्राफ्टिंग से पौधे की जड़ें और तना मजबूत हो जाते हैं, जिससे यह लंबे समय तक टिक पाता है। खेत में रोपाई के समय पौधों के बीच 60-60 सेंटीमीटर की दूरी रखी जाती है और मिट्टी में गोबर की खाद मिलाकर उपजाऊ बनाया जाता है।

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कम पानी और कम बीमारी

पेरेनियल विधि की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें पौधे को बार-बार बदलने की जरूरत नहीं होती। एक बार रोपाई करने पर यह तीन से चार साल तक लगातार फल देता रहता है। गर्मियों में चार-पांच दिन और सर्दियों में दस-बारह दिन के अंतराल पर सिंचाई पर्याप्त होती है। पौधा सूखा और ज्यादा गर्मी भी सह लेता है। इस तकनीक से तैयार पौधों में फल छेदक और तना छेदक जैसे कीटों का प्रकोप भी बहुत कम होता है। रोग दिखने पर इमिडाक्लोप्रिड जैसी दवा का हल्का छिड़काव असरदार साबित होता है।

खेती की वैज्ञानिक तैयारी

बैंगन की इस विधि के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। खेत की जुताई दो से तीन बार करके मिट्टी को भुरभुरा बनाना चाहिए। रोपाई से पहले पौधों को बाविस्टिन के घोल में डुबोकर लगाना जरूरी है। खाद के रूप में रोपाई के समय नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश की संतुलित मात्रा दें और बाकी नाइट्रोजन दो किस्तों में 30 और 60 दिन बाद डालें। खेत में निराई-गुड़ाई हर पंद्रह दिन के अंतराल पर करनी चाहिए, ताकि खरपतवार पौधों की ग्रोथ को प्रभावित न कर पाए। रोपाई के करीब पचास से सत्तर दिन बाद फल पकने लगते हैं और तुड़ाई शुरू की जा सकती है।

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लागत और मुनाफा

इस विधि में लागत बेहद कम आती है और मुनाफा कई गुना ज्यादा होता है। एक एकड़ खेत में ढाई से तीन हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। नर्सरी का खर्च प्रति पौधा सिर्फ दो से तीन रुपये पड़ता है। कुल मिलाकर बीज, खाद और दवा समेत एक एकड़ पर पच्चीस से तीस हजार रुपये खर्च आता है। एक पौधा तीन से चार साल में औसतन पचास से सौ किलो तक बैंगन देता है। यानी एक एकड़ में सात सौ से साढ़े सात सौ क्विंटल तक उत्पादन संभव है। अगर बैंगन का भाव बीस से तीस रुपये किलो भी मिले, तो किसान दो से तीन लाख रुपये तक कमा सकते हैं। खर्च निकालने के बाद भी डेढ़ से दो लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा मिल सकता है।

किसानों के अनुभव

पारंपरिक खेती में बैंगन का पौधा छह से आठ महीने में ही खत्म हो जाता है, लेकिन पेरेनियल विधि ने किसानों को नया रास्ता दिखाया है। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में भी इजराइली पद्धति से ऊंचे बैंगन पौधे उगाए गए हैं, जिनसे एक साल में एक क्विंटल तक फल मिला। किसान बताते हैं कि पहले हर साल नई रोपाई करनी पड़ती थी, लेकिन इस तकनीक ने मेहनत और लागत दोनों घटा दी है।

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  • Shashikant

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