Perennial Paddy Cultivation: पेरिनियल धान एक ऐसी नई और क्रांतिकारी किस्म है, जो किसानों की मेहनत और खर्च को काफी हद तक कम कर सकती है। ये धान एक बार खेत में बोने के बाद कई सालों तक बिना दोबारा बुआई के फसल देता रहता है। इसे स्थायी धान भी कहा जाता है, क्योंकि इसके पौधे हर साल अपने आप उगते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे खास तौर पर इस तरह तैयार किया है कि किसानों को बार-बार खेत जोतने और बीज बोने की जरूरत न पड़े। इस लेख में पेरिनियल धान की खासियत, इसके फायदे, और भारत में इसकी संभावनाओं के बारे में बताया गया है, ताकि किसान इस नई तकनीक को समझ सकें।
पेरिनियल धान कैसे काम करता है
पेरिनियल धान की सबसे बड़ी खासियत इसकी जड़ों में है। ये जड़ें जमीन में बनी रहती हैं और जैसे ही मौसम अनुकूल होता है, पौधे फिर से उगने लगते हैं। ये किस्म पारंपरिक धान और अफ्रीका में पाई जाने वाली एक जंगली धान प्रजाति (Oryza longistaminata) के संकरण से बनाई गई है। इसका वैज्ञानिक नाम PR23 या PR107 है, और इसे चीन की Yunnan Academy of Agricultural Sciences ने विकसित किया है। ये धान हर साल नई फसल देने की क्षमता रखता है, जिससे खेती का समय और लागत दोनों कम हो जाते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।
भारत में इसकी संभावनाएं
भारत में पेरिनियल धान पर अभी शुरुआती परीक्षण हो रहे हैं, लेकिन कुछ इलाकों में इसकी अच्छी संभावनाएं दिख रही हैं। खासकर उत्तर पूर्वी राज्य, पश्चिम बंगाल, झारखंड, ओडिशा, और छत्तीसगढ़ जैसे क्षेत्रों की जलवायु और मिट्टी इस किस्म के लिए अनुकूल हो सकती है। इन इलाकों में बारिश और नमी की उपलब्धता पेरिनियल धान की खेती को आसान बना सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) इस तकनीक पर काम कर रही है और जल्द ही बड़े पैमाने पर इसके ट्रायल शुरू करने की योजना है। अगर ये परीक्षण सफल रहे, तो ये किस्म भारतीय किसानों के लिए खेती का एक नया और आसान तरीका बन सकती है।
किसानों के लिए फायदे
पेरिनियल धान की खेती से किसानों को कई तरह के फायदे मिल सकते हैं। सबसे बड़ा फायदा ये है कि हर साल बुआई का खर्च खत्म हो जाएगा। न तो बीज खरीदने की जरूरत होगी और न ही खेत में बार-बार जुताई करनी पड़ेगी। इससे मजदूरी और ट्रैक्टर के ईंधन का खर्च भी बचेगा। मिट्टी की बार-बार जुताई न होने से उसमें जैविक तत्व बने रहेंगे, जो जैविक खेती को बढ़ावा देगा। साथ ही, इसकी जड़ें मिट्टी में कार्बन को जमा करती हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग से निपटने में मदद मिलेगी। ये किस्म पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि ये मिट्टी के कटाव को रोकती है और पानी की खपत को कम करती है।
कुछ चुनौतियां भी हैं
पेरिनियल धान के कई फायदों के बावजूद कुछ चुनौतियां भी हैं, जिनका ध्यान रखना जरूरी है। शुरुआती सालों में इसकी पैदावार सामान्य धान जैसी ही होती है, लेकिन कुछ साल बाद उपज में थोड़ी कमी आ सकती है। चूंकि खेत में बार-बार एक ही फसल उगती है, मिट्टी की उर्वरता पर असर पड़ सकता है। इसके लिए समय-समय पर मिट्टी की जांच और जैविक खाद का इस्तेमाल जरूरी होगा। साथ ही, खेत को खाली न करने की वजह से खरपतवार और कीटों का खतरा बढ़ सकता है। इन समस्याओं से बचने के लिए सही प्रबंधन और कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेनी होगी।
कब शुरू होगी इसकी खेती
भारत में पेरिनियल धान की किस्में अभी परीक्षण के दौर से गुजर रही हैं। उम्मीद है कि 2026-27 तक कुछ किस्में व्यावसायिक स्तर पर किसानों के लिए उपलब्ध हो जाएंगी। जो किसान इस नई तकनीक को जल्दी आजमाना चाहते हैं, वे अपने नजदीकी कृषि विश्वविद्यालय या ICAR के केंद्रों से संपर्क कर सकते हैं। कई जगहों पर ट्रायल प्रोजेक्ट चल रहे हैं, जिनमें हिस्सा लेकर इसकी खेती की बारीकियां समझी जा सकती हैं। भविष्य में ये तकनीक बड़े पैमाने पर अपनाई जा सकती है, जिससे खेती आसान और किफायती हो जाएगी।
स्मार्ट खेती की ओर कदम
पेरिनियल धान की खेती भारतीय किसानों के लिए एक नया और फायदेमंद रास्ता खोल सकती है। ये तकनीक न सिर्फ मेहनत और लागत को कम करती है, बल्कि पर्यावरण को भी फायदा पहुंचाती है। हालांकि, भारत में इसे पूरी तरह लागू होने में अभी कुछ समय लगेगा, लेकिन इसके शुरुआती नतीजे उत्साहजनक हैं। जो किसान नई तकनीकों को अपनाने में रुचि रखते हैं, उनके लिए ये एक सुनहरा मौका है। इस किस्म की खेती को सफल बनाने के लिए मिट्टी की देखभाल, सही प्रबंधन, और समय-समय पर विशेषज्ञों की सलाह जरूरी होगी।
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