अरहर को कीटों से बचाने का धांसू तरीका – अभी आजमाएँ और बंपर उपज पाएँ

Pigeon Pea Pest Control: गर्मियों में अरहर की फसल अच्छी पैदावार देती है, लेकिन कीट और बीमारियाँ कई बार मेहनत पर पानी फेर देती हैं। खासकर रस चूसक कीट (चूषक कीट) इसकी जड़ें कमजोर कर देते हैं।
पर अब चिंता ना करें, कृषि विज्ञान केंद्र ने इसके लिए आसान और कारगर उपाय बताए हैं। सही किस्म, सही समय और थोड़ी समझदारी से आप अपनी अरहर को बचा सकते हैं और मुनाफा कमा सकते हैं। ये फसल आपके खेत का गहना बन सकती है।

सही किस्म और सही समय का चयन

अरहर की अच्छी फसल के लिए सही किस्म चुनना जरूरी है। कृषि विज्ञान केंद्र के मुताबिक, गर्मियों में जून-जुलाई के महीने में गुजरात तुवर-1, गुजरात तुवर-101, गुजरात तुवर-103, बीडीएन-2 और जीजेपी-1 जैसी किस्मों की बुवाई करें। इनके लिए प्रति हेक्टेयर 12 से 15 किलो बीज काफी हैं। अगर रबी सीजन में खेती करनी हो, तो सितंबर-अक्टूबर में गुजरात तुवर-102 बो सकते हैं। पौधों के बीच 25-30 सेंटीमीटर और पंक्तियों में 90-120 सेंटीमीटर की दूरी रखें। इससे हवा और धूप सबको मिलेगी, और फसल लहलहाएगी। सही शुरूआत से आधा काम हो जाता है।

बीज उपचार से कीट-रोगों को दूर रखें

फसल को रोगों से बचाने और अच्छा अंकुरण पाने के लिए बीजों का उपचार जरूरी है। इसके लिए ‘बीजामृत’ का इस्तेमाल करें। बीजों को बीजामृत में डुबोकर छाया में सुखा लें। ये मिट्टी से आने वाली बीमारियों को रोकता है और पौधों को तेजी से बढ़ने में मदद करता है। बुवाई के वक्त प्रति एकड़ 100 किलो गोबर की खाद और 100 किलो ठोस बायोचार मिलाएँ। इससे मिट्टी की ताकत बनी रहेगी और अरहर को जरूरी खुराक मिलेगी। शुरू से मजबूत नींव डालें, तो फसल भी मजबूत होगी।

रस चूसक कीटों से जैविक रक्षा

रस चूसक कीट अरहर के सबसे बड़े दुश्मन हैं। इनसे बचने के लिए 3 लीटर ‘निमास्त्र’ को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। अगर निमास्त्र न हो, तो 20 मिली नीम तेल को 10 लीटर पानी में मिलाकर भी छिड़क सकते हैं। ये दोनों जैविक तरीके कीटों को भगाते हैं और फसल को नुकसान से बचाते हैं। गाँव में लोग कहते हैं कि प्रकृति से लड़ाई नहीं, दोस्ती करो, तो फायदा ज्यादा मिलता है। ये उपाय आसान भी हैं और जेब पर भारी भी नहीं पड़ते।

जैविक खाद से दें ताकत

अरहर को पोषण देने के लिए जैविक खाद का कोई जवाब नहीं। बुवाई के बाद तुरंत 200 लीटर ‘जीवामृत’ को एक एकड़ खेत में मिलाएँ। फिर हर महीने दो बार 200 लीटर जीवामृत मिट्टी में डालें या सिंचाई के साथ दें। एक महीने बाद 5 लीटर जीवामृत को 100 लीटर पानी में मिलाकर फसल पर छिड़कें। ये पौधों को ताकत देता है और कीटों से भी बचाता है। मिट्टी और फसल दोनों खुश रहते हैं, और पैदावार बढ़ती है। ये देसी नुस्खा आपके खेत का आधार मजबूत करेगा।

कृमि और फफूंद से बचाव के उपाय

अरहर को तना छेदक, फल छेदक और फफूंदी से बचाने के लिए भी आसान तरीके हैं। 2 लीटर ‘ब्रह्मास्त्र’ को 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़काव करें। या फिर 1 लीटर ‘अग्निस्त्र’ को 100 लीटर पानी में घोलकर इस्तेमाल करें। ये दोनों कीटों और फफूंदी का प्रकोप कम करते हैं। सही समय पर छिड़काव करें, तो फसल सुरक्षित रहेगी और फलियाँ भी बची रहेंगी। मेहनत का फल तभी मिलेगा, जब फसल को इन दुश्मनों से बचाएँगे।

अपना तजुर्बा: छोटे कदम, बड़ी सफलता

जैविक तरीकों से अरहर की खेती न सिर्फ सस्ती पड़ती है, बल्कि फसल भी सेहतमंद रहती है। एक बार सही किस्म और उपचार से शुरू करें, तो कीटों की चिंता कम हो जाती है। नीम तेल और जीवामृत का इस्तेमाल करने वाले किसानों ने बताया कि उनकी फसल पहले से ज्यादा लहलहाई। ये छोटे-छोटे कदम आपके खेत को बचा सकते हैं और मुनाफा बढ़ा सकते हैं।

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  • Shashikant

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