PMFME Yojana: किसान भाईयों, हमारे देश में जहां लाखों किसान अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। लेकिन कच्ची उपज की बिक्री से अक्सर उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलता। इस समस्या को हल करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना (PMFME) शुरू की है। यह योजना हर जिले में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देती है, जिससे किसान, ग्रामीण युवा, और महिला समूह आत्मनिर्भर बन सकें। यह लेख योजना के उद्देश्य, लाभ, आवेदन प्रक्रिया, और ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव की विस्तृत जानकारी देगा।
योजना का अवलोकन और लक्ष्य
PMFME योजना आत्मनिर्भर भारत अभियान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को समर्थन देती है। इसका मुख्य लक्ष्य किसानों को उनकी फसलों का मूल्यवर्धन करने में सक्षम बनाना है। कच्चे उत्पादों को प्रोसेस कर जूस, अचार, स्नैक्स, या अन्य खाद्य पदार्थों में बदलने से किसान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। यह योजना बिचौलियों की भूमिका को कम करती है और ग्रामीण स्तर पर उद्यमिता को प्रोत्साहित करती है। साथ ही, यह गांवों में रोजगार सृजन और महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण पर केंद्रित है। योजना के तहत 2 लाख सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को सहायता देने का लक्ष्य है।
वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) का महत्व
योजना का एक अनूठा पहलू वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट (ODOP) अवधारणा है। इसके तहत प्रत्येक जिले में वहां की विशेष कृषि उपज के आधार पर खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों का क्लस्टर विकसित किया जाता है। उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी में केला आधारित चिप्स, मध्य प्रदेश के इंदौर में सोयाबीन आधारित उत्पाद, या गुजरात के कच्छ में खजूर आधारित मिठाइयां। ODOP स्थानीय संसाधनों का उपयोग करता है और उत्पादों को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान दिलाता है। यह दृष्टिकोण स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करता है और क्षेत्रीय ब्रांडिंग को बढ़ावा देता है।
खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना
PMFME Yojana के तहत हर जिले में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना पर जोर दिया गया है। ये इकाइयां छोटे पैमाने पर शुरू की जा सकती हैं, जिनमें अनाज, फल, सब्जियां, दूध, या मसालों को प्रोसेस किया जाता है। जैसे, मक्के से कॉर्न फ्लेक्स, टमाटर से सॉस, या दूध से पनीर बनाया जा सकता है। ये इकाइयां स्थानीय स्तर पर कच्चा माल खरीदती हैं, जिससे किसानों को सीधा लाभ मिलता है। सरकार इन इकाइयों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करती है ताकि वे गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बना सकें। इसके लिए खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय (MoFPI) और राज्य सरकारें मिलकर काम कर रही हैं।
योजना के प्रमुख लाभ
PMFME योजना कई तरह की सहायता प्रदान करती है। खाद्य प्रसंस्करण इकाई शुरू करने के लिए 35% तक की सब्सिडी दी जाती है, जिसका अधिकतम मूल्य 10 लाख रुपये है। बैंकों से बिना गारंटी के ऋण और कम ब्याज दरों पर कर्ज उपलब्ध है। उद्यमियों को मुफ्त प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें उत्पाद विकास, पैकेजिंग, और विपणन की जानकारी शामिल है। FSSAI लाइसेंस, जीएमपी, और अन्य प्रमाणपत्रों के लिए तकनीकी सहायता भी प्रदान की जाती है। स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को प्रति सदस्य 40,000 रुपये की प्रारंभिक पूंजी मिलती है। ये सुविधाएं छोटे उद्यमियों के लिए व्यवसाय शुरू करना और उसे टिकाऊ बनाना आसान बनाती हैं।
पात्रता और लाभार्थी
PMFME योजना का लाभ कोई भी भारतीय नागरिक ले सकता है, जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो। इसमें विशेष रूप से किसान उत्पादक संगठन (FPOs), स्वयं सहायता समूह (SHGs), ग्रामीण युवा उद्यमी, और छोटे खाद्य प्रसंस्करण यूनिट संचालक शामिल हैं। स्टार्टअप और नए उद्यमी भी आवेदन कर सकते हैं। यह योजना ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लागू है, लेकिन इसका मुख्य फोकस ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर है। महिला उद्यमियों और अनुसूचित जाति/जनजाति समुदायों को प्राथमिकता दी जाती है ताकि सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिले।
आवेदन प्रक्रिया और प्रशिक्षण
योजना का लाभ लेने के लिए इच्छुक व्यक्ति आधिकारिक वेबसाइट https://mofpi.nic.in/pmfme पर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन प्रक्रिया को सरल बनाया गया है ताकि ग्रामीण क्षेत्रों के लोग आसानी से इसका उपयोग कर सकें। आवेदन के बाद, जिला स्तर पर गठित समितियां प्रस्तावों की जांच करती हैं और स्वीकृति देती हैं। इसके अलावा, जिला उद्योग केंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK), और नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर संपर्क कर जानकारी और प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है। प्रशिक्षण में उत्पाद विकास, गुणवत्ता नियंत्रण, और डिजिटल मार्केटिंग की जानकारी दी जाती है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
PMFME Yojana ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने की क्षमता रखती है। खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना से किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिलता है, जिससे उनकी आय बढ़ती है। यह बिचौलियों की भूमिका को कम करता है और किसानों को सीधे बाजार से जोड़ता है। ग्रामीण युवा अब शहरों की ओर पलायन करने के बजाय अपने गांव में उद्यम शुरू कर सकते हैं। स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं, जिससे परिवार और समुदाय का विकास हो रहा है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में खपत और निवेश को बढ़ावा देती है।
ODOP और वैश्विक बाजार
ODOP के तहत विकसित उत्पादों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में पहचान मिल रही है। ऑनलाइन मार्केटप्लेस जैसे Amazon, Flipkart, और BigHaat स्थानीय उत्पादों को उपभोक्ताओं तक पहुंचा रहे हैं। सरकार निर्यात को बढ़ावा देने के लिए APEDA और FSSAI के साथ मिलकर काम कर रही है। इससे भारतीय खाद्य उत्पादों को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने का अवसर मिलता है। जैसे, राजस्थान के मसाले और केरल के नारियल उत्पाद अब विदेशी बाजारों में लोकप्रिय हो रहे हैं। यह स्थानीय ब्रांडों को मजबूत करता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच प्रदान करता है।
सरकारी सहायता और भविष्य
PMFME योजना को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने 10,000 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है। नाबार्ड और बैंकों के माध्यम से कर्ज सुविधा को और आसान बनाया गया है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय (MoFPI) नियमित रूप से योजना की प्रगति की समीक्षा करता है और राज्यों के साथ समन्वय बनाए रखता है। भविष्य में, यह योजना खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को भारत की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा बना सकती है। यह न केवल ग्रामीण रोजगार बढ़ाएगी, बल्कि भारत को खाद्य निर्यात में अग्रणी देश बनाएगी।
प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उन्नयन योजना ग्रामीण भारत के लिए एक क्रांतिकारी कदम है। हर जिले में खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना और ODOP के जरिए यह योजना किसानों को बेहतर आय और युवाओं को रोजगार दे रही है। सरकारी सहायता, सब्सिडी, और प्रशिक्षण इसे और प्रभावी बनाते हैं। यदि आप किसान, युवा उद्यमी, या SHG सदस्य हैं, तो इस योजना का लाभ उठाएं। अपने नजदीकी कृषि कार्यालय से संपर्क करें और ग्रामीण भारत की तरक्की में योगदान दें।
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