हरियाणा में आलू की खेती किसानों के लिए मुनाफे का नया रास्ता खोल रही है। महेंद्रगढ़ जिले में हर साल आलू का रकबा 50 एकड़ की दर से बढ़ रहा है। पूरे प्रदेश में औसतन 33,043 हेक्टेयर जमीन पर 8,43,230 मीट्रिक टन आलू का उत्पादन हो रहा है। कुरुक्षेत्र 13,674 हेक्टेयर में 3,62,361 मीट्रिक टन उत्पादन के साथ सबसे आगे है। यमुनानगर 6,048 हेक्टेयर में 1,61,200 मीट्रिक टन के साथ दूसरे और अंबाला 3,224 हेक्टेयर में 73,176 मीट्रिक टन के साथ तीसरे स्थान पर है। मेवात और झज्जर जैसे जिले अभी पीछे हैं, लेकिन वहाँ भी आलू की खेती का रुझान बढ़ रहा है। आलू की खेती से किसान गेहूँ और सरसों जैसी पारंपरिक फसलों से ज्यादा कमाई कर सकते हैं।
आलू के लिए सही मिट्टी और मौसम
दक्षिणी हरियाणा के जिले, जैसे महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, झज्जर, चरखी दादरी, और भिवानी, रेतीली मिट्टी के लिए मशहूर हैं। यह मिट्टी आलू की खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है, क्योंकि यह ढीली होती है और जड़ों को बढ़ने में मदद करती है। रबी सीजन में यहाँ गेहूँ और सरसों की खेती ज्यादा होती है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि आलू की खेती इनसे ज्यादा फायदेमंद हो सकती है। आलू की माँग साल भर रहती है, और बाजार में इसके अच्छे दाम मिलते हैं। सितंबर का दूसरा पखवाड़ा और अक्टूबर का महीना बिजाई के लिए सबसे सही समय है। इस दौरान मौसम और मिट्टी की नमी आलू के अंकुरण के लिए अनुकूल होती है।
सही किस्में और बीजाई का तरीका
आलू की खेती में सही किस्म का चयन मुनाफे की कुंजी है। बागवानी विभाग कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी जवाहर, और कुफरी पुखराज जैसी किस्मों की सलाह देता है। कुफरी चंद्रमुखी 75 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 80 से 100 क्विंटल तक पैदावार देती है। कुफरी जवाहर 90 दिनों में पकती है और 100 से 105 क्विंटल तक उत्पादन देती है। कुफरी पुखराज सबसे ज्यादा पैदावार वाली किस्म है, जो 75 से 90 दिनों में 90 से 160 क्विंटल तक दे सकती है। इन किस्मों के बीज करनाल के आलू अनुसंधान केंद्र, श्यामगढ़ से लिए जा सकते हैं। एक एकड़ में 10 से 12 क्विंटल बीज चाहिए। बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशक से उपचारित करें ताकि रोगों से बचाव हो।
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सरकार की मदद और नई तकनीक
हरियाणा सरकार और अंतरराष्ट्रीय आलू केंद्र (CIP) ने 29 जुलाई 2025 को एक समझौता किया है, जिसके तहत दक्षिणी हरियाणा में उच्च गुणवत्ता वाले रोगमुक्त बीज तैयार किए जाएँगे। करनाल के पोटेटो टेक्नोलॉजी सेंटर (PTC) में एरोपोनिक्स और कंट्रोल्ड क्लाइमेट जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग हो रहा है। इस परियोजना के लिए 2025-26 में 4.48 करोड़ रुपये की फंडिंग दी गई है, और अगले चार साल में 18.70 करोड़ रुपये की लागत से इसे पूरा किया जाएगा। यह परियोजना हरियाणा के साथ-साथ उत्तर प्रदेश और बिहार के किसानों को भी फायदा देगी। इसके अलावा, सैटेलाइट मॉनिटरिंग और AI-आधारित तकनीकें, जैसे Farmonaut, ब्लाइट जैसे रोगों का जल्दी पता लगाने में मदद कर रही हैं।
खेती के लिए खास टिप्स
आलू की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का पीएच 5.5 से 6.5 के बीच होना चाहिए। हर दो सीजन में मिट्टी की जाँच करवाएँ और गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग करें। ड्रिप सिंचाई से पानी और उर्वरक सही मात्रा में दिए जा सकते हैं, जिससे लागत कम होती है। कटाई के बाद आलू को ठंडे और नमी-नियंत्रित भंडारण में रखें ताकि उसकी गुणवत्ता बनी रहे।
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