उत्तर प्रदेश के किसानों के लिए आलू की खेती अब पहले से कहीं ज्यादा लाभकारी हो रही है। नई एयरोपोनिक तकनीक ने खेती में क्रांति ला दी है। इस तकनीक से तैयार रोग-मुक्त बीजों की मदद से किसान कम समय में अधिक पैदावार हासिल कर रहे हैं। कई किसानों ने बताया कि इस विधि से न सिर्फ़ फसल जल्दी तैयार होती है, बल्कि बाजार में उनकी माँग भी बढ़ रही है। सरकार की प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना के तहत मिलने वाली आर्थिक मदद से किसान पॉली हाउस में इस तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। इससे उनकी आय में भारी बढ़ोतरी हो रही है।
एयरोपोनिक तकनीक की खासियत
एयरोपोनिक तकनीक में आलू के बीज मिट्टी के बिना, हवा में पोषक तत्वों के छिड़काव से तैयार किए जाते हैं। यह तरीका पूरी तरह रोग-मुक्त बीज देता है, जो फसल की गुणवत्ता और उत्पादन को बढ़ाता है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि इस तकनीक से तैयार बीजों से प्रति हेक्टेयर 20-25 टन तक आलू की पैदावार मिल सकती है। उत्तर प्रदेश के हापुड़ और कुशीनगर में बने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इस तकनीक को बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों ने अनुभव साझा किया कि इस विधि से फसल 80-90 दिन में तैयार हो जाती है, जिससे वे जल्दी बाजार में बिक्री कर मुनाफा कमा सकते हैं।
सही किस्मों का चयन जरूरी
आलू की खेती में सही किस्मों का चयन मुनाफे का आधार है। कुफरी कंचन, पुखराज, नीलकंठ, चिप्सोना और कुफरी सिंदूरी जैसी किस्में उत्तर प्रदेश की जलवायु के लिए उपयुक्त हैं। इन किस्मों को उगाने के लिए 15 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान और पर्याप्त नमी वाला मौसम चाहिए। विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बुवाई से पहले बीजों का उपचार करें और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज चुनें। इससे फसल रोगों से बची रहती है और पैदावार बढ़ती है।
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खेती के लिए जरूरी तैयारी
आलू की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। मिट्टी को समतल करें और गोबर की खाद या जैविक उर्वरक डालें। प्रति हेक्टेयर 50-60 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80-100 किलोग्राम फॉस्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश का उपयोग करें। बुवाई के बाद समय-समय पर सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण करें। कई किसानों ने बताया कि आधुनिक मशीनों से बुवाई करने और कीटनाशकों का सही समय पर छिड़काव करने से उनकी फसल की गुणवत्ता बढ़ी है।
किसानों के लिए सलाह
किसानों को सलाह है कि वे अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें और एयरोपोनिक तकनीक के बारे में जानकारी लें। यह तकनीक छोटे किसानों के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इसमें लागत कम और मुनाफा ज्यादा है। फसल तैयार होने के बाद इसे सीधे बाजार में बेचें या शीतगृह में स्टोर करें, ताकि सही समय पर अच्छी कीमत मिले। इस तकनीक को अपनाकर उत्तर प्रदेश के किसान न सिर्फ़ अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि आलू की खेती को और आधुनिक बना सकते हैं।