देश के आलू किसानों के लिए बड़ी राहत की खबर आई है। अब खराब बीज का डर नहीं, नुकसान का रोना नहीं। बनास डेयरी और भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ने हाथ मिलाया है। इस साझेदारी से बीज से लेकर बाजार तक पूरी चेन बनेगी। रोग-मुक्त, प्रमाणित बीज मिलेगा, पैदावार बढ़ेगी, और उपज सीधे बाजार तक पहुंचेगी। सहकारिता मंत्रालय के सचिव डॉ. भूटानी ने इसे सशक्तिकरण का मील का पत्थर बताया।
आलू की खेती में सबसे बड़ी समस्या बीज की गुणवत्ता। अक्सर पुराना या बीमार बीज से फसल खराब हो जाती है। अब बनास डेयरी की आधुनिक टिश्यू कल्चर और एरोपोनिक लैब का इस्तेमाल होगा। भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ये सुविधाएं लेकर बीज तैयार करेगी। बनास डेयरी तकनीकी मदद और बाजार का रास्ता देगी।
बीज से बाजार तक पूरी वैल्यू चेन
इस समझौते का सबसे बड़ा फायदा ये कि किसान अब कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कर सकेंगे। पहले से तय दाम, तय बाजार। बीच के दलाल गायब। बनास डेयरी के एमडी संग्राम चौधरी ने कहा कि डेयरी से आगे बढ़कर अब फसल क्षेत्र में कदम रखा है। भारतीय बीज सहकारी के एमडी चेतन जोशी ने बताया कि बीज आलू में आत्मनिर्भरता आएगी।
किसान भाइयों को वैज्ञानिक तरीके सिखाए जाएंगे। मिट्टी टेस्ट, सही खाद, सही पानी। रोग आए तो पहले ही पकड़। टिश्यू कल्चर से बना बीज 100 प्रतिशत शुद्ध, वायरस फ्री। एक बीज से 25-30 किलो आलू। पैदावार 300-400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक।
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सहकारिता मंत्रालय का समर्थन
ये साझेदारी प्रधानमंत्री के ‘सहकार से समृद्धि’ विजन का हिस्सा है। सहकारिता मंत्रालय पूरी तरह साथ है। डॉ. भूटानी ने कहा कि किसान अब सिर्फ उत्पादक नहीं, उद्यमी बनेंगे। बनास डेयरी गुजरात में पहले से मशहूर है, अब आलू में भी नाम करेगी।
बीज सहकारी समिति पहले से कई फसलों में काम कर रही है। अब आलू पर फोकस। दोनों मिलकर किसानों को ट्रेनिंग, बीज, बाजार – सब देंगे। छोटे किसान, जो 1-2 एकड़ पर आलू बोते हैं, उनके लिए ये वरदान है।
पहले चरण में गुजरात-उत्तर प्रदेश
शुरुआत गुजरात से होगी, जहां बनास डेयरी का मजबूत नेटवर्क है। फिर उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल – जहां आलू की खेती ज्यादा है। किसान सहकारी समितियों से जुड़ेंगे। बीज लेना, उपज बेचना – सब एक छत के नीचे।
कृषि विशेषज्ञ बता रहे हैं कि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा आलू उत्पादक है। लेकिन बीज की कमी से 20-30 प्रतिशत नुकसान होता है। ये साझेदारी उसे रोकेगी। बाजार में आलू 10-15 रुपये किलो बिकता है, लेकिन किसान को 5-6 रुपये। अब सीधा कनेक्शन, मुनाफा दोगुना।
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