Pulses Crop Diseases: रबी सीजन में दलहन फसलों की खेती भारतीय कृषि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चना, मसूर, मटर, उड़द, मूंग और राजमा जैसी फसलें इन दिनों किसानों के खेतों की शान हैं। लेकिन बदलते मौसम और अन्य कारणों से इन फसलों पर रोगों और कीटों का खतरा बना रहता है। यदि समय पर इनका उपचार न किया जाए, तो फसल का उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हो सकता है। इस लेख में हम दो प्रमुख रोगों – जड़ और कॉलर सड़न रोग और हरदा रोग – पर चर्चा करेंगे, उनके लक्षण, कारण और बचाव के उपायों के बारे में जानेंगे।
रबी सीजन में रोगों का प्रभाव क्यों बढ़ता है?
रबी सीजन के दौरान जनवरी-फरवरी में मौसम में तेजी से बदलाव देखने को मिलता है।
- नमी का बढ़ना: लगातार बारिश या ओस से मिट्टी की नमी बढ़ जाती है, जो फसल में रोग फैलाने वाले कीटाणुओं को पनपने का मौका देती है।
- तापमान में गिरावट: कम तापमान पर फसल कमजोर हो जाती है और रोगों के प्रति संवेदनशील हो जाती है।
- वानस्पतिक वृद्धि: पौधों की अधिक वृद्धि होने पर रोग का प्रभाव बढ़ने की संभावना रहती है।
जड़ और कॉलर सड़न रोग
जड़ और कॉलर सड़न रोग दलहन फसलों के लिए एक गंभीर समस्या है। यह रोग पौधे की जड़ों और तने के निचले हिस्से को प्रभावित करता है, जिससे पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
लक्षण
- पौधे की जड़ और तना के ऊपरी हिस्से पर सड़न के लक्षण।
- जड़ों के भीतर के ऊतक काले पड़ जाना।
- पौधों का सूखना और उत्पादन में कमी।
बचाव और उपचार
- बीज उपचार:
- ट्राईकोडरमा: 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज।
- कार्बेन्डाजिम: 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज।
- रोग का प्रारंभिक उपचार:
- कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर जड़ों पर छिड़काव करें।
- कैप्टान 70% + हेक्साकोनाजोल 5%: 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर छिड़काव।
हरदा रोग
हरदा रोग को दलहन फसलों का सबसे घातक रोग माना जाता है। यह रोग उत्पादन को सीधे तौर पर प्रभावित करता है और पौधों को कमजोर कर देता है।
लक्षण
- पत्तियों, तनों और फलियों पर गोलाकार सफेद और भूरे रंग के फफोले।
- फफोलों का काला पड़ना और तने का सूख जाना।
- उत्पादन में भारी गिरावट।
कारण
- अत्यधिक वानस्पतिक वृद्धि।
- मिट्टी में नमी का अधिक होना।
- कम तापमान।
बचाव और उपचार
- बीज उपचार:
- बुआई से पहले कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से बीज को उपचारित करें।
- राइजोबियम कल्चर: 20 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज।
- फसल का उपचार:
- कार्बेन्डाजिम और मैन्कोजेब: 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
अन्य सावधानियां और सुझाव
- संतुलित उर्वरकों का उपयोग: फसल को पोषण देने के लिए संतुलित उर्वरकों का उपयोग करें।
- खेत का निरीक्षण: फसल में रोग के लक्षण समय-समय पर जांचते रहें।
- नमी का प्रबंधन: खेत में अधिक नमी न होने दें और जल निकासी की उचित व्यवस्था करें।
- सामूहिक प्रयास: सामूहिक स्तर पर किसानों को कृषि विभाग द्वारा दी जाने वाली सलाह का पालन करना चाहिए।
कृषि विभाग की सलाह
झारखंड कृषि विभाग ने किसानों को समय पर फसल का निरीक्षण करने और उपयुक्त दवाओं का छिड़काव करने की सलाह दी है। इससे न केवल उत्पादन की गुणवत्ता बनी रहेगी, बल्कि फसल का नुकसान भी रोका जा सकेगा।
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