पूसा 44 धान पंजाब, हरियाणा, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों की पसंदीदा किस्म रही है। इसकी उच्च उपज (30-32 क्विंटल/एकड़) और बाजार माँग ने इसे लोकप्रिय बनाया। लेकिन अब सरकार और कृषि विशेषज्ञ इस पर प्रतिबंध की सिफारिश कर रहे हैं। पंजाब और हरियाणा में इसकी बिक्री और बुवाई पर रोक लग चुकी है। यह कदम वायु प्रदूषण, जल संकट, और मिट्टी की उर्वरता की रक्षा के लिए उठाया गया है। आइए जानें प्रतिबंध के कारण, प्रभाव, और वैकल्पिक किस्में जो टिकाऊ खेती को बढ़ावा देंगी।
प्रतिबंध के प्रमुख कारण
पूसा 44 की लंबी अवधि (160-165 दिन) इसे अक्टूबर अंत तक तैयार करती है, जिससे गेहूं की बुवाई (नवंबर प्रथम सप्ताह) में देरी होती है। समय की कमी से किसान पराली जलाते हैं, जिससे दिल्ली-NCR में AQI 400-500 तक पहुँच जाता है। इसकी मोटी पराली (8-10 टन/हेक्टेयर) CO2 और PM2.5 उत्सर्जन बढ़ाती है। दूसरा, पूसा 44 को 2400 मिमी पानी (30-32 सिंचाई) चाहिए, जो भूजल स्तर को प्रति वर्ष 0.5-1 मीटर गिराता है। पंजाब और हरियाणा में जल संकट गहरा रहा है। तीसरा, यह मिट्टी की उर्वरता को नुकसान पहुँचाती है, क्योंकि गहरी जड़ें पोषक तत्व सोख लेती हैं, और पराली जलाने से सूक्ष्मजीव नष्ट होते हैं। सरकार और ICAR कम पानी और समय वाली किस्मों को बढ़ावा दे रहे हैं।
प्रतिबंध का प्रभाव
किसान पूसा 44 की उच्च उपज के कारण इसे छोड़ने से हिचक रहे हैं, लेकिन प्रतिबंध से आय में कमी का डर है। पर्यावरण को लाभ होगा, क्योंकि पराली जलाने में 20-30% कमी और भूजल संरक्षण में सुधार होगा। सरकार बायो डी-कंपोजर, सुपर सीडर, और हैप्पी सीडर पर 50-80% सब्सिडी दे रही है। बासमती किस्मों (Pusa Basmati 1509) की माँग बढ़ रही है, जो निर्यात के लिए उपयुक्त हैं।
वैकल्पिक किस्में: टिकाऊ और लाभकारी
किसानों को पूसा 44 की जगह निम्नलिखित किस्में अपनाने की सलाह दी जा रही है:
PR 126: 123-125 दिन में तैयार, 28-30 क्विंटल/एकड़ उपज, 1800 मिमी पानी, कम पराली (6 टन/हेक्टेयर), गेहूं बुवाई के लिए समय।
Pusa Basmati 1509: 115-120 दिन, 20-24 क्विंटल/एकड़, 1500 मिमी पानी, सुगंधित, निर्यात योग्य, झोंका रोग प्रतिरोधी।
PR 121: 135-140 दिन, 28-30 क्विंटल/एकड़, 1900 मिमी पानी, उच्च गुणवत्ता, कम पराली।
ये किस्में पराली 20-30% कम करती हैं और गेहूं की बुवाई समय पर होने देती हैं। बासमती किस्में 3,500-4,000 रुपये/क्विंटल की कीमत देती हैं, जो पूसा 44 (2,500-3,000 रुपये/क्विंटल) से अधिक है।
सरकार का सहयोग
सरकार किसानों को नुकसान से बचाने के लिए कई कदम उठा रही है। सुपर सीडर और बायो डी-कंपोजर पर 50-80% सब्सिडी, PR 126 और Pusa Basmati 1509 के बीज KVK, IARI, और NSC (www.mystore.in) पर उपलब्ध हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और KVK मुफ्त प्रशिक्षण दे रहे हैं। AIF योजना से 3% ब्याज सब्सिडी पर 2 करोड़ लोन और FPO के जरिए सामूहिक बिक्री से 10-15% अधिक दाम मिलते हैं।
कृषि विशेषज्ञों की राय
कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि पूसा 44 अल्पकालिक लाभ देती है, लेकिन मिट्टी, जल, और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाती है। IARI के विशेषज्ञों के अनुसार, “कम अवधि की किस्में और सीधी बुवाई पानी, श्रम, और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बचाती हैं।” टिकाऊ खेती के लिए बदलाव जरूरी है, वरना भविष्य में किसानों को बड़ा नुकसान होगा।
मुनाफे की तुलना
पूसा 44: उपज 30 क्विंटल/एकड़, कीमत 2,800 रुपये/क्विंटल, आय 84,000 रुपये, लागत 30,000 रुपये, मुनाफा 54,000 रुपये।
Pusa Basmati 1509: उपज 22 क्विंटल/एकड़, कीमत 3,800 रुपये/क्विंटल, आय 83,600 रुपये, लागत 25,000 रुपये, मुनाफा 58,600 रुपये।
PR 126: उपज 29 क्विंटल/एकड़, कीमत 3,000 रुपये/क्विंटल, आय 87,000 रुपये, लागत 27,000 रुपये, मुनाफा 60,000 रुपये।
नई किस्में कम लागत और अधिक कीमत से मुनाफा बढ़ाती हैं। बासमती का निर्यात मुनाफा 20% तक बढ़ा सकता है।
किसान भाइयो, पूसा 44 ने आपको मुनाफा दिया, लेकिन अब पर्यावरण, मिट्टी, और जल की रक्षा जरूरी है। PR 126 और Pusa Basmati 1509 जैसी किस्में मुनाफा बरकरार रखेंगी और खेती को टिकाऊ बनाएँगी। सरकार की सब्सिडी, नई तकनीक, और FPO का साथ आपके लिए अवसर है। आज का समझदारी भरा फैसला आपके खेत और भविष्य को समृद्ध बनाएगा।
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