किसान साथियों, पूसा 992 और बहार जैसी उन्नत अरहर किस्मों ने खरीफ मौसम में क्रांतिकारी बदलाव लाने का वादा किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) और क्षेत्रीय कृषि संस्थानों द्वारा विकसित ये किस्में प्रति हेक्टेयर 25 क्विंटल तक की पैदावार दे सकती हैं। ये किस्में न केवल उत्पादन बढ़ाने में सक्षम हैं, बल्कि कम समय में पकने और रोगों के प्रति प्रतिरोधी होने के कारण किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही हैं। यह पहल भारत के दलहन उत्पादन को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
पूसा 992 उच्च उत्पादन की गारंटी
पूसा 992 अरहर की एक ऐसी किस्म है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने विकसित किया है। यह किस्म 120 से 128 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड जैसे राज्यों के लिए आदर्श बनाती है। इसकी खासियत यह है कि इसके दाने मोटे, गोल, और चमकदार होते हैं, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाते हैं। पूसा 992 की बुवाई जुलाई के पहले सप्ताह में करने से अक्टूबर तक फसल तैयार हो जाती है। इसकी औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। यह किस्म फली बेधक कीट और फफूंदी रोगों के प्रति प्रतिरोधी है, जिससे कीटनाशकों पर खर्च कम होता है।
ये भी पढ़ें – अरहर की खेती करने से पहले जान लें ये 6 बेहतरीन किस्में, पैदावार होगी दोगुनी और मुनाफा शानदार!
बहार बिहार की पसंदीदा किस्म
बहार अरहर किस्म बिहार कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की गई है और विशेष रूप से बिहार और झारखंड के लिए अनुकूल है। यह 130 से 140 दिनों में पकने वाली मध्यम अवधि की किस्म है। इसकी पैदावार भी 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो सकती है। बहार के दाने भरे और मध्यम आकार के होते हैं, जो दाल के लिए उपयुक्त हैं। इस किस्म की खास बात यह है कि यह कम सिंचाई वाले क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन करती है। बिहार के रोहतास, भभुआ, और जमुई जैसे जिलों में यह किस्म लोकप्रिय है। यह विल्ट रोग और कीटों के प्रति सहनशील है, जिससे किसानों को कम नुकसान होता है।
वैज्ञानिक खेती की तकनीक
पूसा 992 और बहार अरहर की उच्च पैदावार के लिए वैज्ञानिक खेती जरूरी है। बुवाई से पहले बीजों को 2.5 ग्राम थीरम और 1 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। राइजोबियम कल्चर से बीजोपचार करने से नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है, जिससे उर्वरक की जरूरत कम होती है। बुवाई के लिए 30 सेमी की कतार दूरी और पौधों के बीच 10 सेमी का अंतर रखना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 10-15 किलो नाइट्रोजन, 40-50 किलो फॉस्फोरस, और 20 किलो सल्फर का उपयोग मिट्टी परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। मेड़ों पर बुवाई करने से जलभराव और फफूंदी रोगों से बचाव होता है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद और दूसरी 45-50 दिन बाद करनी चाहिए।
उत्तर भारत में अरहर की माँग और महत्व
अरहर, जिसे तुअर दाल भी कहते हैं, भारतीय भोजन का अभिन्न हिस्सा है। उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड में इसकी खेती न केवल खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि किसानों की आय का प्रमुख स्रोत भी है। भारत में अरहर का उत्पादन 2021 में 43 लाख टन था, जो 2025 तक घटकर 35 लाख टन हो गया है। इस कमी को पूरा करने के लिए पूसा 992 और बहार जैसी उन्नत किस्में महत्वपूर्ण हैं। ये किस्में कम अवधि में अधिक पैदावार देती हैं, जिससे किसान रबी मौसम में गेहूँ, सरसों, या आलू जैसी फसलें भी ले सकते हैं। अरहर की जड़ें मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती हैं।
ये भी पढ़ें – पूसा अरहर-16 किस्म से कम समय में ज़्यादा मुनाफ़ा, जानिए बीज कहां और कैसे खरीदें?
सरकारी समर्थन और योजनाएँ
केंद्र और राज्य सरकारें अरहर उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ चला रही हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) के तहत किसानों को अनुदानित बीज, उर्वरक, और तकनीकी सहायता दी जा रही है। बिहार के मोतिहारी जिले में 175 एकड़ में अरहर की खेती के लिए मुफ्त बीज वितरित किए गए हैं। उत्तर प्रदेश में कृषि अवसंरचना निधि योजना (AIF) के तहत भंडारण और प्रसंस्करण इकाइयों के लिए ऋण उपलब्ध हैं। झारखंड में कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) किसानों को पूसा 992 और बहार की खेती के लिए प्रशिक्षण दे रहे हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की समीक्षा से किसानों को बेहतर दाम मिलने की उम्मीद है। इन प्रयासों से अरहर उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल हो सकती है।
क्षेत्रीय अनुकूलता और चुनौतियाँ
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्र, बिहार के रोहतास, नालंदा, और जमुई, तथा झारखंड के राँची और हजारीबाग जैसे जिले पूसा 992 और बहार के लिए अनुकूल हैं। इन राज्यों की जलोढ़ मिट्टी और 600-800 मिमी वार्षिक वर्षा अरहर की खेती के लिए उपयुक्त है। हालांकि, जलभराव, कीट प्रकोप, और बीजों की समय पर उपलब्धता जैसी चुनौतियाँ हैं। किसानों को स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्रों से संपर्क कर बीज और तकनीकी सलाह लेनी चाहिए। जुलाई के पहले सप्ताह तक बुवाई पूरी कर लेने से पैदावार में सुधार होता है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड में पूसा 992 और बहार अरहर किस्में खेती को लाभकारी बनाने का वादा करती हैं। 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की पैदावार के साथ ये किस्में किसानों की आय और भारत की खाद्य सुरक्षा को मजबूत करेंगी। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें, उन्नत बीज प्राप्त करें, और इस कृषि क्रांति का हिस्सा बनें। वैज्ञानिक खेती अपनाएँ और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करें।
ये भी पढ़ें – अरहर को कीटों से बचाने का धांसू तरीका – अभी आजमाएँ और बंपर उपज पाएँ
