Pusa Basmati 1886 Variety : धान की खेती में बासमती की अलग ही पहचान है, और पूसा बासमती 1886 इसकी एक ऐसी उन्नत किस्म है, जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित ये किस्म खास तौर पर हरियाणा और उत्तराखंड के बासमती उत्पादक क्षेत्रों के लिए बनाई गई है। यानी इन इलाकों के किसान इसे लगाकर अच्छी पैदावार और मुनाफा कमा सकते हैं।
खरीफ के मौसम में उगाई जाने वाली ये किस्म सिंचित खेतों में शानदार उपज देती है। औसतन ये 44.9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देती है, लेकिन सही देखभाल और प्रबंधन के साथ 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिल सकती है। इसकी खासियत इसके लंबे, पतले और सुगंधित दाने हैं, जो पकाने के बाद और फैलते हैं, जिससे बाजार में अच्छा दाम मिलता है।
मुख्य विशेषताएं और रोगों से सुरक्षा
पूसा बासमती 1886 बासमती 6 का एक उन्नत संस्करण है, जिसे रोगों से लड़ने की ताकत देने के लिए खास तौर पर तैयार किया गया है। ये किस्म बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट जैसे खतरनाक रोगों के खिलाफ प्राकृतिक रूप से मजबूत है। इसमें xa13 और Xa21 जीन बैक्टीरियल ब्लाइट से बचाते हैं, जबकि Pi2 और Pi54 जीन ब्लास्ट रोग को रोकते हैं।
इसकी वजह से किसानों को रासायनिक दवाओं पर कम खर्च करना पड़ता है, और फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। इसके दाने लंबे और सुगंधित होने के साथ-साथ खाने में स्वादिष्ट होते हैं, जो इसे बाजार में हर किसी की पसंद बनाते हैं। ये किस्म 145 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को समय पर फसल बेचने का मौका मिलता है।
खेती की सही विधि
पूसा बासमती 1886 की खेती में सही तरीके अपनाने से पैदावार को कई गुना बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए प्रति हेक्टेयर 16 से 20 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है। बुवाई का सबसे अच्छा समय 15 मई से 15 जून के बीच है। नर्सरी में बीज बोने के बाद 25 से 30 दिन में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।
रोपाई करते वक्त पंक्ति से पंक्ति की दूरी 20 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। इससे पौधों को बढ़ने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है और हवा का संचार बना रहता है। सही दूरी और समय पर रोपाई से फसल की शुरुआत मजबूत होती है, जो बाद में अच्छी उपज देती है।
उर्वरक का सही प्रबंधन
फसल को ताकत देने के लिए उर्वरक का सही इस्तेमाल बहुत जरूरी है। पूसा बासमती 1886 के लिए नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा 80, 50 और 40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फॉस्फोरस-पोटाश की पूरी मात्रा को खेत तैयार करते समय आधार खाद के रूप में देना चाहिए। बाकी नाइट्रोजन को दो हिस्सों में बांटकर देना बेहतर है। पहला हिस्सा रोपाई के पांच दिन बाद और दूसरा हिस्सा कल्ले फूटने के समय, यानी 50 से 60 दिन बाद, टॉप ड्रेसिंग के रूप में डालें। सही समय पर और सही मात्रा में खाद देने से पौधे स्वस्थ रहते हैं और दाने भारी और चमकदार आते हैं।
सिंचाई और पानी का प्रबंधन
पानी का सही प्रबंधन पूसा बासमती 1886 की अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है। रोपाई के बाद पहले दो से तीन हफ्तों तक खेत में पांच से छह सेंटीमीटर पानी भरा रखें। इसके बाद मिट्टी की नमी को देखते हुए जरूरत के हिसाब से सिंचाई करें। खास तौर पर फूल आने की अवस्था में खेत में पर्याप्त नमी होना बहुत जरूरी है। इस समय पानी की कमी होने से दाने ठीक से नहीं भरते, और उपज कम हो सकती है। अगर आपके पास ड्रिप या स्प्रिंकलर सिस्टम है, तो उसका इस्तेमाल करें। ये पानी की बचत करता है और पौधों को सही मात्रा में नमी देता है।
खरपतवार से बचाव
खरपतवार फसल के पोषण को चुरा लेते हैं, इसलिए इनका समय पर नियंत्रण जरूरी है। रोपाई के तीन से पांच दिन बाद ब्यूटाक्लोर 50 ईसी की 2.5 से 3.0 लीटर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर खेत में छिड़काव करें। ये शुरुआती खरपतवारों को खत्म करता है और पौधों को बढ़ने के लिए ज्यादा जगह और पोषण मिलता है। अगर खरपतवार फिर भी उग आएं, तो दस से पंद्रह दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। ये न सिर्फ खरपतवार हटाती है, बल्कि मिट्टी को हवा भी देती है, जिससे जड़ें मजबूत होती हैं।
रोगों पर काबू
पूसा बासमती 1886 में बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट के खिलाफ प्राकृतिक सुरक्षा तो है, लेकिन कुछ अन्य रोगों, जैसे गुमाल झुलसा और झोंपा, का खतरा रह सकता है। इनसे बचने के लिए रोग के लक्षण दिखने से पहले ही कार्बेन्डाजिम की 500 ग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। ये छिड़काव निवारक उपाय के तौर पर बहुत फायदेमंद है। अगर खेत में नमी ज्यादा हो, तो रोगों की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए पानी का प्रबंधन सावधानी से करें और खेत को साफ रखें।
कीटों से फसल की रक्षा
पत्ती लपेटक, तना छेदक और फुदका जैसे कीट पूसा बासमती 1886 को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनसे बचने के लिए कई कीटनाशक इस्तेमाल किए जा सकते हैं। क्लोरपायरिफॉस 20 ईसी को दो मिलीलीटर प्रति लीटर, कार्टेप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस.पी. को दो ग्राम प्रति लीटर, एसिफेट 75 एस.पी. को दो ग्राम प्रति लीटर या टॉपसिन 36 एस.एल. को चार लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
वैकल्पिक तौर पर कार्टेप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी. की 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मात्रा में बुरकाव भी किया जा सकता है। खास तौर पर भूरे पौध फुदकों से बचने के लिए कॉन्फिडोर की 200 मिलीलीटर मात्रा को 500 से 600 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। ये उपाय फसल को सूखने से बचाते हैं और दानों की गुणवत्ता को बनाए रखते हैं।
पूसा बासमती 1886 से मुनाफे की खेती
पूसा बासमती 1886 एक ऐसी किस्म है, जो न सिर्फ अच्छी पैदावार देती है, बल्कि बाजार में भी किसानों की मेहनत का पूरा दाम दिलाती है। इसके लंबे, सुगंधित और स्वादिष्ट दाने हर किसी को पसंद आते हैं। रोगों के खिलाफ इसकी मजबूत प्रतिरोधक क्षमता और कम रासायनिक खर्च इसे छोटे और बड़े किसानों के लिए फायदेमंद बनाते हैं।
सही समय पर बुवाई, उर्वरक, सिंचाई और कीट-रोग प्रबंधन के साथ ये किस्म 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज दे सकती है। हरियाणा और उत्तराखंड के किसान अगर 2025 में इस किस्म को अपनाते हैं, तो वे अपनी खेती को मुनाफे का धंधा बना सकते हैं। अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करके इस किस्म के बीज और खेती की पूरी जानकारी लें।
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