सरसों की खेती करने वाले किसान भाइयों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) की नई देन पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 (PDZ 14) एक बड़ा सहारा साबित हो रही है। इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) द्वारा विकसित इस किस्म को बदलते मौसम की चुनौतियों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इसमें इरूसिक एसिड और ग्लुकोसिनोलेट्स की मात्रा बेहद कम होने से तेल स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित है। केंद्रीय बीज समिति ने मार्च 2024 में इसे मंजूरी दी थी, और अब यह जोन-3 के समयबद्ध सिंचित खेतों में लोकप्रिय हो रही है। ICAR के परीक्षणों से साबित है कि यह पारंपरिक किस्मों से 10-15 फीसदी ज्यादा उपज देती है, जिससे किसानों की आय में सीधी बढ़ोतरी होती है।
डॉ. एस.के. सिन्हा जैसे कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, सरसों की यह किस्म रोगों से लड़ने की मजबूत क्षमता रखती है। अल्टरनेरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट, डाउन मिल्ड्यू और पाउडरी मिल्ड्यू जैसे चार प्रमुख रोगों के खिलाफ यह काफी हद तक प्रतिरोधी है। इससे फसल पर रोग का असर कम पड़ता है, और उत्पादन वर्षा भर स्थिर रहता है। उत्तर भारत के शुष्क और ठंडे मौसम में भी यह अच्छा प्रदर्शन करती है। IARI के आंकड़ों के मुताबिक, औसतन 21.48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है, जो 2,184 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के बराबर है। यह किस्म मध्यम अवधि की है, जो लगभग 132 दिनों में पक जाती है। इससे किसान समय पर कटाई कर अगली फसल की योजना बना सकते हैं।
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उच्च तेल सामग्री और कम रोग जोखिम से दोगुना फायदा
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 की सबसे बड़ी खासियत इसकी तेल सामग्री है। अन्य सरसों किस्मों की तुलना में यह 42.05 फीसदी तेल देती है, जो किसानों को अधिक मूल्यवान उत्पाद प्रदान करती है। यूरोपियन फूड सेफ्टी अथॉरिटी (EFSA) के मानकों के अनुरूप होने से इसका तेल और खली दोनों इंसान व पशुओं के लिए सुरक्षित हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होने से कीटनाशकों और रसायनों पर खर्च बचता है। एक किसान ने बताया कि पारंपरिक किस्मों में रोगों से 20-30 फीसदी नुकसान होता था, लेकिन PDZ 14 से लागत 15 फीसदी कम आई। ICAR के 2024 के परीक्षणों में यह गर्मी, सूखा और ठंड सभी में बेहतर रही।
यह किस्म कम समय में अधिक पैदावार देने वाली है। बुवाई अक्टूबर-नवंबर में करें तो फरवरी-मार्च तक कटाई हो जाती है। बीज दर 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें, और 30×10 सेमी की दूरी पर लगाएं। ICAR की सिफारिश है कि अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में इसे लगाएं। इससे खेत की उत्पादकता बढ़ती है, और किसान साल में दो फसलें आसानी से ले सकते हैं।
Pusa Double Zero Mustard 35 (PDZ 14).#ICAR #उन्नततकनीकउत्तमखेती #rabi2025@ChouhanShivraj @PIB_India @AgriGoI pic.twitter.com/ge8GkiVUQc
— Indian Council of Agricultural Research. (@icarindia) November 5, 2025
यूपी, एमपी, राजस्थान जैसे राज्यों में सबसे उपयुक्त
पूसा डबल जीरो मस्टर्ड 35 विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड के लिए अनुकूल है। इन राज्यों में सरसों की खेती बड़े पैमाने पर होती है, और यहाँ की जलवायु में यह किस्म 10-11 फीसदी ज्यादा हार्वेस्ट इंडेक्स देती है। ICAR के असम परीक्षणों में भी पुषा सरसों किस्में स्थानीय से बेहतर रहीं। किसान इसे जोन-3 के सिंचित क्षेत्रों में आजमाएं, तो मुनाफा दोगुना हो सकता है। सरकारी सब्सिडी पर बीज उपलब्ध हैं, जो कृषि केंद्रों से लें।
कुल मिलाकर, यह किस्म सरसों उत्पादन को नई दिशा दे रही है। कम लागत, उच्च उपज और स्वास्थ्यवर्धक तेल से किसान आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। ICAR की वेबसाइट पर और जानकारी चेक करें।
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