Quinoa Ki Kheti: क्विन्वा, जिसे किनोवा, क्विनोआ, या किनवा भी कहते हैं, एक पोषक तत्वों से भरपूर अनाज है, जिसे सुपरफूड के नाम से जाना जाता है। यह दक्षिण अमेरिका की एंडीज पर्वतमाला से उत्पन्न हुआ, लेकिन अब भारत में भी इसकी खेती और मांग बढ़ रही है। क्विन्वा में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, और खनिज, जैसे कैल्शियम, मैग्नीशियम, और आयरन, प्रचुर मात्रा में होते हैं। यह ग्लूटेन-मुक्त होने के कारण स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों में लोकप्रिय है। क्विन्वा की खेती कम लागत में उच्च मुनाफा देने वाली फसल है, जो शुष्क और कम उपजाऊ मिट्टी में भी उगाई जा सकती है। यह लेख क्विन्वा की खेती की पूरी प्रक्रिया, लाभ, लागत, और बाजार की जानकारी देगा।
क्विन्वा का परिचय
क्विन्वा (वानस्पतिक नाम: चेनोपोडियम क्विनोआ) अमरंथ परिवार का पौधा है, जो बथुआ से संबंधित है। इसका पौधा 1-2 मीटर ऊंचा होता है, और इसके बीज सफेद, लाल, काले, या बैंगनी रंग के होते हैं। इसके पत्ते हंस के पैर जैसे होते हैं, और तना मोटा व सीधा होता है। क्विन्वा के बीजों में सैपोनिन नामक पदार्थ होता है, जो हल्का कड़वा होता है और पक्षियों से फसल की रक्षा करता है। खाद्य उपयोग से पहले सैपोनिन को धोकर हटाया जाता है।
क्विन्वा की खेती भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, और उत्तराखंड जैसे राज्यों में हो रही है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) ने इसे भविष्य की खाद्य सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना है। वर्तमान में, शहरी बाजारों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे किसानों के लिए यह लाभकारी फसल बन रही है।
उपयुक्त मिट्टी और जलवायु कैसी हो
क्विन्वा की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। यह अत्यधिक अम्लीय (pH 4.8) से क्षारीय (pH 8.5) मिट्टी में भी उग सकती है। बलुई दोमट या मुरूम मिट्टी, जिसमें अच्छी जल निकासी हो, इसके लिए आदर्श है। मिट्टी में जैविक पदार्थ होना चाहिए ताकि नमी बनी रहे। बड़े पत्थरों वाली मिट्टी से बचें, क्योंकि यह जड़ों के विकास में बाधा डालती है।
क्विन्वा ठंडी जलवायु में बेहतर उगती है। इसके लिए 18-20 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है। यह -8 डिग्री तक की सर्दी और 36 डिग्री तक की गर्मी सहन कर सकती है, लेकिन 36 डिग्री से अधिक तापमान पर पौधा निष्क्रिय हो जाता है और पराग निष्फल हो सकते हैं। भारत में रबी मौसम (अक्टूबर-नवंबर) में इसकी बुवाई की जाती है। समतल और जल निकासी वाली भूमि जरूरी है, और रिज-फरो प्रणाली जलभराव को रोकती है।
खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका
क्विन्वा की खेती (Quinoa Ki Kheti) के लिए खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। खेत की दो-तीन गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। पुरानी फसलों के अवशेष और खरपतवार हटाएं। प्रति हेक्टेयर 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट डालें। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए जीवामृत का उपयोग भी किया जा सकता है।
बुवाई के लिए 4-5 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। बीज को 1.5 ग्राम मैनकोजेब प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें ताकि फफूंदी से बचाव हो। बुवाई अक्टूबर-नवंबर में लाइनों में करें, जहां पंक्तियों के बीच 30-45 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी हो। बीज को 1-2 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि अंकुरण बेहतर हो।
खाद और उर्वरक विशेष ध्यान
क्विन्वा को अधिक उर्वरक की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन संतुलित पोषण से पैदावार बढ़ती है। बुवाई से पहले प्रति हेक्टेयर 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20-30 किलोग्राम फॉस्फोरस, और 20 किलोग्राम पोटाश डालें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय और बाकी 25-30 दिन बाद दें। जैविक खेती के लिए वर्मी कंपोस्ट, नीम खली, या जीवामृत का उपयोग करें।फसल की वृद्धि के दौरान सूक्ष्म पोषक तत्व, जैसे जिंक और मैग्नीशियम, की कमी दिखे तो पर्णीय छिड़काव करें। अधिक उर्वरक देने से बचें, क्योंकि यह पौधों की वानस्पतिक वृद्धि बढ़ा सकता है और बीज उत्पादन कम कर सकता है।
सिंचाई और जल प्रबंधन
क्विन्वा सूखा-सहिष्णु फसल है और इसे अधिक सिंचाई की जरूरत नहीं होती। पूरी फसल अवधि में 3-4 सिंचाई पर्याप्त हैं। पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। दूसरी और तीसरी सिंचाई पौधों की वृद्धि और बीज अंकुरण के दौरान (25-30 दिन और 50-60 दिन बाद) करें। आखिरी सिंचाई बीज भरने के समय करें। ड्रिप सिंचाई का उपयोग करने से पानी की बचत होती है और जलभराव से बचा जा सकता है।अधिक बारिश या जलभराव वाली भूमि में खेती न करें, क्योंकि इससे जड़ सड़न का खतरा बढ़ता है। रिज-फरो प्रणाली अपनाने से जल निकासी बेहतर होती है।
कीट और रोग का करें ख़ास उपाय
क्विन्वा में कीट और रोगों का प्रकोप कम होता है, क्योंकि इसके बीजों में सैपोनिन पक्षियों और कीटों को दूर रखता है। फिर भी, छोटी इल्लियां पत्तियों को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इनके नियंत्रण के लिए नीम तेल (5 मिली प्रति लीटर पानी) या अजादीरैक्टिन (0.5 मिली प्रति लीटर) का छिड़काव करें।
रोगों में जड़ सड़न और पर्ण धब्बा देखा जा सकता है। जड़ सड़न से बचने के लिए जल निकासी सुनिश्चित करें और मैनकोजेब का उपयोग करें। पर्ण धब्बे के लिए नीम के काढ़े का छिड़काव प्रभावी है। जैविक खेती में बायो-एजेंट्स, जैसे ट्राइकोडर्मा, का उपयोग करें।
कटाई और भंडारण कैसे करें
क्विन्वा की फसल 90-120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। जब पत्तियां पीली पड़ने लगें और बीज सख्त हो जाएं, तब कटाई करें। पौधों को जड़ से उखाड़ें या डंठल काटें। कटे हुए पौधों को 4-5 दिन तक धूप में सुखाएं। इसके बाद थ्रेशिंग करके बीज अलग करें।बीजों को साफ करें और सैपोनिन हटाने के लिए पानी से धोएं। धुले हुए बीजों को छायादार जगह में सुखाएं और नमी-रोधी थैलों में भंडारित करें। भंडारण से पहले बीजों की नमी 10% से कम रखें ताकि फफूंदी न लगे।
लागत और मुनाफे का हिसाब
क्विन्वा की खेती में प्रति हेक्टेयर 30,000-40,000 रुपये की लागत आती है, जिसमें बीज (5,000 रुपये), खाद-उर्वरक (10,000 रुपये), मजदूरी (10,000 रुपये), और सिंचाई/अन्य खर्च (5,000-10,000 रुपये) शामिल हैं। प्रति हेक्टेयर 10-15 क्विंटल उपज मिलती है। बाजार में क्विन्वा का भाव 5,000-10,000 रुपये प्रति क्विंटल है, जिससे 50,000-1,50,000 रुपये की आय हो सकती है। शुद्ध मुनाफा 20,000-1,00,000 रुपये हो सकता है।
जैविक क्विन्वा की मांग अधिक होने से इसका दाम 300-1,000 रुपये प्रति किलोग्राम तक हो सकता है। दिल्ली, हैदराबाद, और मुंबई जैसे शहरों में मांग अधिक है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, जैसे Farmizen और BigHaat, भी अच्छा बाजार प्रदान करते हैं।
क्विन्वा की खेती के लाभ
क्विन्वा की खेती कम पानी और कम उपजाऊ मिट्टी में हो सकती है, जो इसे शुष्क क्षेत्रों के लिए उपयुक्त बनाती है। यह सूखा और पाला सहन कर सकती है। इसके बीजों में सैपोनिन के कारण कीट और पक्षी कम नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कीटनाशकों की जरूरत कम होती है। यह जैविक खेती के लिए आदर्श है। क्विन्वा की मांग शहरी और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बढ़ रही है। यह ग्लूटेन-मुक्त और प्रोटीन युक्त होने के कारण स्वास्थ्यवर्धक भोजन के रूप में लोकप्रिय है। इसके पत्तों को सलाद के रूप में भी उपयोग किया जाता है। भारत में क्विन्वा का आयात 5 करोड़ रुपये से अधिक है, और स्थानीय खेती इसे कम कर सकती है।
क्विन्वा की खेती भारतीय किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर है। यह कम लागत, कम पानी, और कम देखभाल में उच्च मुनाफा देती है। उचित मिट्टी, जलवायु, और वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग करके किसान इस सुपरफूड फसल से अच्छी आय कमा सकते हैं। वर्तमान में बढ़ती मांग और सरकारी सहायता इसे लाभकारी बनाती है। क्विन्वा की खेती अपनाकर अपने खेतों को समृद्ध करें और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाएं।
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