राधिका DRMR 2017-18 सरसों की नई किस्म से बंपर पैदावार और ज्यादा मुनाफा

भारत में सरसों की खेती किसानों के लिए हमेशा से ही लाभकारी मानी जाती रही है। यह न सिर्फ तेल उत्पादन का मुख्य स्रोत है, बल्कि लाखों किसानों की आजीविका का आधार भी है। भारतीय सरसों अनुसंधान निदेशालय (ICAR-DRMR), भारतपुर ने किसानों के लिए एक नई उन्नत किस्म विकसित की है, जिसे राधिका DRMR 2017-18 नाम दिया गया है। यह किस्म खासतौर पर जोन-II यानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के कुछ हिस्सों में देर से बोई जाने वाली सिंचित सरसों की खेती के लिए तैयार की गई है। केंद्र सरकार ने इसे 20 जुलाई 2021 को अधिसूचना संख्या 2986(E) के तहत जारी किया।

राधिका किस्म ने किसानों की उम्मीदों को नया आयाम दिया है, क्योंकि यह औसतन 1788 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उपज देती है और इसमें 40.7 प्रतिशत तक तेल पाया जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कई बड़े रोगों और कीटों के प्रति सहनशील है, जिसके कारण किसानों को रासायनिक दवाओं पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता।

विकास और पहचान

राधिका DRMR 2017-18 को ICAR-DRMR के वैज्ञानिकों ने अखिल भारतीय समन्वित तिलहन अनुसंधान परियोजना के तहत विकसित किया है। इसका उद्देश्य किसानों को ऐसी किस्म देना था, जो देर से बुवाई के बाद भी अच्छी पैदावार दे और रोग-कीटों के प्रकोप को झेल सके। आमतौर पर किसान पूसा बोल्ड जैसी किस्में बोते रहे हैं, लेकिन राधिका किस्म की उपज इनसे 15-20 प्रतिशत अधिक है। यही कारण है कि इसकी पहचान होते ही इसे तेजी से अपनाया गया और कई राज्यों के किसान इसे धान के बाद दूसरी फसल के रूप में लगाने लगे।

किसानों का कहना है कि यह किस्म खेत में मजबूती से खड़ी रहती है, पौधों की ऊंचाई 191 से 204 सेंटीमीटर तक होती है और प्रति फली औसतन 14 बीज आते हैं। इस वजह से उत्पादन ज्यादा मिलता है और बाजार में भी इसका तेल अच्छी कीमत पर बिकता है।

रोग और कीट प्रतिरोध

सरसों की फसल में अल्टरनेरिया ब्लाइट, व्हाइट रस्ट, डाउनी मिल्ड्यू और एफिड जैसी बीमारियां अक्सर बड़ी समस्या बन जाती हैं। लेकिन राधिका DRMR 2017-18 की सबसे बड़ी ताकत यही है कि यह इन रोगों के प्रति काफी हद तक सहनशील है। इससे किसानों को रासायनिक दवाओं पर खर्च कम करना पड़ता है और फसल ज्यादा सुरक्षित रहती है।

व्हाइट रस्ट जैसी बीमारी अक्सर किसानों की उपज 20 से 25 प्रतिशत तक घटा देती है, लेकिन इस किस्म में इसका असर बहुत कम देखने को मिलता है। स्टेम रोट और डाउनी मिल्ड्यू के प्रति भी इसकी सहनशीलता ने किसानों को राहत दी है। राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के किसान रामस्वरूप बताते हैं कि उन्होंने इस किस्म की खेती में छिड़काव पर होने वाला खर्च लगभग 25 प्रतिशत तक घटा दिया।

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उपज और तेल की गुणवत्ता

राधिका किस्म की औसत उपज 1788 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मानी गई है, लेकिन अच्छी देखभाल और उर्वरक प्रबंधन से यह 2000 से 2200 किलो तक आसानी से पहुंच सकती है। इसमें तेल की मात्रा 40.7 प्रतिशत है, जो इसे बाजार में प्रीमियम क्वालिटी बनाती है। साथ ही इसमें ग्लूकोसाइनोलेट की मात्रा कम है, जिससे तेल स्वादिष्ट और स्वास्थ्यवर्धक बनता है।

दिल्ली के नजफगढ़ के किसानों का कहना है कि इस किस्म से निकला तेल स्थानीय बाजार में प्रीमियम कीमत पर बिक रहा है। उच्च ओलिक एसिड की वजह से इसकी डिमांड बढ़ी है और खाद्य तेल उद्योग इसे पसंद कर रहा है।

खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र और समय

यह किस्म खासतौर पर जोन-II यानी दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के लिए अनुशंसित है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे देर से भी बोया जा सकता है और फिर भी यह अच्छी पैदावार देती है। नवंबर के अंत से दिसंबर की शुरुआत तक की बुवाई इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी गई है। इस दौरान जब अन्य किस्में रोगों के प्रकोप में फंसती हैं, तब राधिका मजबूती से खड़ी रहती है।

मिट्टी की बात करें तो यह बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी में सबसे अच्छा प्रदर्शन करती है। pH मान 7 से 8 के बीच हो और खेत में पर्याप्त नमी मौजूद हो, तो उपज और भी ज्यादा हो सकती है। पंजाब और हरियाणा में इसे धान की कटाई के बाद बोया गया और किसानों को शानदार नतीजे मिले।

खेती और प्रबंधन के तरीके

राधिका किस्म की बुवाई 6 से 8 किलो बीज प्रति हेक्टेयर की दर से करनी चाहिए। बीजों को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम जैसे फफूंदनाशी से उपचारित करना जरूरी है। कतारों के बीच 30 सेंटीमीटर दूरी और पौधों के बीच पर्याप्त जगह रखें। खेत को 3-4 बार जुताई कर भुरभुरा बनाना चाहिए और सड़ी हुई गोबर खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालनी चाहिए।

खाद और उर्वरक में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश का संतुलित प्रयोग करना चाहिए। पहली सिंचाई बुवाई के 20 से 25 दिन बाद करनी चाहिए, दूसरी फूल आने के समय और तीसरी फली बनने के समय। अगर ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल किया जाए, तो पानी की बचत के साथ उपज भी बढ़ती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के 20 दिन बाद निराई-गुड़ाई करना जरूरी है।

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कटाई और भंडारण

राधिका किस्म की फसल 120 से 150 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जब पौधे पीले पड़ने लगें और फलियां भूरी हो जाएं, तब कटाई करनी चाहिए। कटाई सुबह या शाम के समय करने से बीज सुरक्षित रहते हैं। कटाई के बाद बीजों को अच्छी तरह सुखाकर बोरी में भरकर ठंडी और सूखी जगह पर रखना चाहिए। यदि सही तरह से भंडारण किया जाए, तो बीज छह से आठ महीने तक ताजे बने रहते हैं।

आर्थिक लाभ और किसानों का अनुभव

राधिका DRMR 2017-18 से प्रति हेक्टेयर लगभग 90 हजार से एक लाख रुपये की आमदनी हो सकती है। उत्पादन लागत 20 से 25 हजार रुपये तक आती है, जिससे शुद्ध मुनाफा 65 से 70 हजार रुपये तक पहुंच जाता है। यदि तेल की प्रीमियम क्वालिटी को बाजार में 6000 रुपये प्रति क्विंटल तक कीमत मिले, तो यह मुनाफा एक लाख रुपये से भी ज्यादा हो सकता है।

हरियाणा के करनाल और पंजाब के अमृतसर के किसानों का कहना है कि इस किस्म ने उनकी पैदावार 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ा दी है। इसके अलावा छिड़काव और खाद पर खर्च भी घटा है, जिससे मुनाफा दोगुना हुआ है।

राधिका DRMR 2017-18 सरसों की एक ऐसी किस्म है, जो किसानों को बंपर पैदावार और उच्च गुणवत्ता वाला तेल दोनों देती है। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता, देर से बुवाई में सफलता और ज्यादा उपज ने इसे किसानों के बीच लोकप्रिय बना दिया है। जोन-II के किसान इस किस्म को अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं और कम लागत में ज्यादा फायदा उठा सकते हैं। यह किस्म न सिर्फ किसानों के लिए वरदान है, बल्कि भारत की तेल उत्पादन क्षमता को भी नई ऊंचाई पर ले जाएगी।

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  • Shashikant

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