Rai Farming: किसान भाइयों, राई या घोडराई न सिर्फ तेल के लिए अच्छी है, बल्कि इसके हरे पत्ते सब्जी में इस्तेमाल होते हैं, और खल बीज निकालने के बाद पशुओं का चारा बनती है। कम पानी, कम खाद और कम मेहनत में अच्छी कमाई – यही राई की खासियत है। मौसम विभाग ने सामान्य ठंड की भविष्यवाणी की है, इसलिए नवंबर में बोना सबसे सही रहेगा। आज हम बात करेंगे राई की पूरी खेती की, खास तौर पर पूसा बोल्ड, क्रांति, राजेंद्र राई पिछेती, राजेंद्र अनुकूल और राजेंद्र सुफलाम जैसी बेहतरीन किस्मों की। ये किस्में ICAR और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की सिफारिश की हुई हैं, जो रोग प्रतिरोधक हैं और तेल की मात्रा 40-42 प्रतिशत तक देती हैं। चलिए, खेत तैयार करने से लेकर कटाई तक सब कुछ स्टेप बाय स्टेप समझते हैं।
खेत और मिट्टी की तैयारी – नींव मजबूत रखें ताकि फसल हरी रहे
राई किसी भी मिट्टी में उग जाती है, लेकिन दोमट या बलुई दोमट सबसे अच्छी रहती है। पीएच 6.0 से 7.5 के बीच हो तो बढ़िया। उत्तर भारत के मैदानों में, जहाँ पानी का निकास अच्छा हो, वहाँ ये फसल खूब चलती है। खेत को 2-3 बार हल चलवाकर भुरभुरा बनाएँ। पुरानी फसल की जड़ें और घास साफ कर दें। प्रति हेक्टेयर 8-10 टन सड़ी गोबर की खाद डालें – ये मिट्टी को पोषण देगी और पानी सोखने की ताकत बढ़ाएगी। अगर जैविक खेती कर रहे हैं, तो वर्मीकम्पोस्ट या नीम खली मिला लें। रासायनिक खाद की बात करें तो बोने से पहले 40 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फास्फोरस और 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें। आधी नाइट्रोजन और पूरी फास्फोरस-पोटाश बोने के समय, बाकी कल्ले फूटने पर। खेत समतल रखें, ताकि पानी एक जगह न रुके।
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बीज और किस्मों का चयन – सही बीज से आधी जीत
राई की खेती में बीज की गुणवत्ता सबसे महत्वपूर्ण है। प्रमाणित बीज कृषि केंद्र या NSC से लें। बोने की दर 4-5 किलो प्रति हेक्टेयर रखें। बोने से पहले बीज को कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो से उपचारित करें, ताकि फफूंद से बचाव हो। अब किस्मों की बात। पूसा बोल्ड एक दमदार किस्म है, जो 120-140 दिन में तैयार हो जाती है। प्रति हेक्टेयर 18-20 क्विंटल पैदावार देती है, और तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक। ये रोगों से लड़ने में मजबूत है। क्रांति किस्म थोड़ी जल्दी पकती है – 125-130 दिन में, और उपज 20-22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर।
तेल 40 प्रतिशत। राजेंद्र राई पिछेती, राजेंद्र अनुकूल और राजेंद्र सुफलाम पिछेती किस्में हैं, जो 105-115 दिन में तैयार हो जाती हैं। राजेंद्र राई पिछेती और सुफलाम 12-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती हैं, जबकि अनुकूल 10-13 क्विंटल। सभी में तेल 40-41 प्रतिशत। अगर ठंड देर से आए, तो पिछेती किस्में चुनें, वरना पूसा बोल्ड या क्रांति।
बोने का सही समय और तरीका, पानी और खाद का प्रबंधन
उत्तर भारत में राई बोने का सबसे अच्छा समय मध्य नवंबर है। लाइन से लाइन 30 सेंटीमीटर और बीज से बीज 10-15 सेंटीमीटर दूरी रखें। गहराई 2-3 सेंटीमीटर। छिटकवाँ विधि भी चलती है, लेकिन लाइन में बोने से उपज ज्यादा। बोने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि अंकुरण जल्दी हो। अंकुरण 5-7 दिन में शुरू हो जाता है। अगर मौसम सूखा है, तो बोने से एक दिन पहले खेत गीला कर लें।
राई कम पानी वाली फसल है। कुल 2-3 सिंचाइयाँ काफी – पहली 20-25 दिन बाद, दूसरी फूल आने पर, तीसरी दाना भरते समय। अगर बारिश हो रही हो, तो और कम। ज्यादा पानी से जड़ें सड़ सकती हैं। खाद की दूसरी खुराक कल्ले फूटने पर दें। घास नियंत्रण के लिए बोने के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें। रासायनिक तरीके से पेंडीमेथालिन का छिड़काव बोने के 2-3 दिन बाद कर सकते हैं।
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कीट और रोगों से बचाव, देसी और वैज्ञानिक तरीके
राई में मुख्य कीट एफिड और रोग अल्टरनेरिया ब्लाइट हैं। एफिड से बचाव के लिए नीम तेल का घोल हर 15 दिन में छिड़कें। रोग दिखे तो मैंकोजेब का स्प्रे करें। पिछेती किस्में रोगों से कम…”, अधिक प्रभावित होती हैं, इसलिए पूसा बोल्ड जैसी मजबूत चुनें। सरसों के साथ मिश्रित खेती करें तो कीट कम लगते हैं।
फसल जब पत्तियाँ पीली पड़ने लगें और दाने भूरे हो जाएँ, तब काटें। पूसा बोल्ड 120-140 दिन में, क्रांति 125-130 में, और राजेंद्र सीरीज़ 105-115 दिन में तैयार। कटाई सुबह करें, सूखने दें, फिर थ्रेशिंग। दाने नमी 8 प्रतिशत से कम रखें। भंडारण में नीम पत्तियाँ मिलाएँ। उपज के अनुसार, क्रांति से 20-22 क्विंटल, पूसा बोल्ड 18-20, और राजेंद्र किस्में 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर। तेल निकालने पर 40-42 प्रतिशत मिलता है, जो बाजार में 5000-6000 रुपये क्विंटल बिकता है।
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