बरसाती मौसम किसानों और पशुपालकों के लिए चुनौतियाँ लेकर आता है। नमी, कीचड़, और गंदगी के कारण पशुओं को कई बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की सरकारों ने पशुओं की देखभाल के लिए विशेष दिशा-निर्देश जारी किए हैं, ताकि पशुपालक अपने मवेशियों को स्वस्थ रख सकें और उनकी आय बनी रहे। इन दिशा-निर्देशों को अपनाकर पशुओं की बीमारियाँ 30-40% तक कम हो सकती हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सही देखभाल से दूध उत्पादन और पशुओं की सेहत में सुधार होता है। आइए जानें कि बरसात में पशुओं की देखभाल के लिए क्या करें और क्या न करें।
पशुशाला को बनाएँ सूखा और साफ
बरसाती मौसम में पशुशाला की साफ-सफाई सबसे जरूरी है। सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, पशुशाला की छत की मरम्मत बारिश शुरू होने से पहले कर लें, ताकि पानी अंदर न टपके। छत को जलरोधक बनाएँ और खिड़कियाँ खुली रखें, जिससे हवा का प्रवाह बना रहे। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, उमस और गर्मी से बचने के लिए पंखे लगाएँ। पशुशाला में मल-मूत्र की नियमित सफाई करें और फिनाइल के घोल से दिन में एक बार धोएँ। किसानों के अनुभव बताते हैं कि साफ-सुथरा बाड़ा पशुओं को त्वचा रोग और निमोनिया जैसे खतरों से बचाता है।
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साफ पानी और चारे का प्रबंध
पशुओं को साफ और ताजा पानी देना बरसात में बहुत जरूरी है। सरकारी सलाह के अनुसार, गंदे पानी से संक्रामक रोग फैल सकते हैं। पानी को बाल्टी में डालकर पिलाएँ और तालाबों या जलाशयों में पशुओं को न ले जाएँ। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, दूषित चारा और पानी पाचन समस्याएँ पैदा करते हैं। गीला या सड़ा हुआ चारा देने से बचें, क्योंकि इससे फफूंद और बदहजमी हो सकती है। किसानों के अनुभव बताते हैं कि सूखा चारा और साफ पानी देने से दूध उत्पादन में 10-15% की बढ़ोतरी हो सकती है। चारे को सूखे स्थान पर स्टोर करें।
टीकाकरण और कीट नियंत्रण
बरसात में पशुओं को खुरपका-मुंहपका (FMD), गलघोंटू, और रक्तस्रावी सेप्टिसीमिया जैसे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। सरकारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, मानसून शुरू होने से पहले पशुओं का टीकाकरण करवाएँ। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, नियमित अंतराल पर कीटनाशक छिड़काव करें, ताकि मक्खियाँ और परजीवी कम हों। नीम आधारित कीटनाशक या बवेरिया बेसियाना जैसे जैविक उपाय कारगर हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि खुरों की नियमित सफाई और जिंक सल्फेट फुट बाथ से पैर सड़न की समस्या कम होती है।
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क्या न करें, जरूरी सावधानियाँ
सरकारी दिशा-निर्देशों में कुछ बातों से बचने की सलाह दी गई है। पशुओं को बिजली के खंभों या विद्युत उपकरणों के पास न बाँधें, क्योंकि बारिश में बिजली का खतरा बढ़ जाता है। पशुशाला में ज्यादा पशुओं को एकत्र न करें, ताकि भीड़ से बीमारियाँ न फैलें। पानी को एक जगह जमा न होने दें, क्योंकि इससे मच्छर और परजीवी बढ़ते हैं। मृत पशुओं को नदियों या तालाबों के पास दफनाने से बचें। किसानों के अनुभव बताते हैं कि इन सावधानियों से पशुओं की मृत्यु दर कम होती है। वैज्ञानिक जानकारी के अनुसार, गीली जगहों पर पशुओं को ले जाने से खुर सड़न का खतरा बढ़ता है।
बरसाती मौसम में पशुओं की देखभाल को जैविक तरीकों से और बेहतर बनाया जा सकता है। नीम की पत्तियों का धुआँ या नीम तेल का छिड़काव मक्खियों और कीटों को दूर रखता है। वर्मी कंपोस्ट से बने बाड़े की सफाई आसान होती है। वैज्ञानिक सलाह के अनुसार, जैविक कृमिनाशक दवाएँ आंतरिक परजीवियों को नियंत्रित करती हैं। किसानों के अनुभव बताते हैं कि जैविक उपायों से पशुओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और दूध की गुणवत्ता सुधरती है।
पशुपालकों के लिए प्रैक्टिकल टिप्स
पशुशाला में जाली या मच्छरदानी लगाएँ, ताकि मच्छरों से बचाव हो। बरसात में पशुओं को बाहर कम निकालें और सूखे बिस्तर का प्रबंध करें। स्थानीय पशु चिकित्सालय से नियमित जाँच करवाएँ। सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए बिहार और छत्तीसगढ़ के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग से संपर्क करें। किसानों के अनुभव बताते हैं कि इन दिशा-निर्देशों को अपनाने से पशुओं की सेहत बनी रहती है और आय में बढ़ोतरी होती है।
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