पशुपालन में रुचि रखने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है। देश में बकरे-बकरियों की 41 रजिस्टर्ड नस्लें हैं, और इनमें राजस्थान की चार खास नस्लें ऐसी हैं, जो मुनाफे का रास्ता खोल सकती हैं। जानकारों के मुताबिक, सिर्फ प्योर नस्लों को ही सरकारी आंकड़ों में दर्ज किया जाता है। अगर किसान इन प्योर नस्ल के बकरों को पालें, तो बकरीद और आम दिनों में मीट की भारी माँग के चलते अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। लेकिन इसके लिए जरूरी है सही नस्ल की पहचान करना। राजस्थान की जखराना, सोजत, सिरोही, और तोतापरी नस्लें खास हैं, जिनके बारे में जानना हर पशुपालक के लिए जरूरी है।
जखराना नस्ल की खासियत
राजस्थान के अलवर जिले के जखराना गाँव से निकली जखराना नस्ल की बकरी और बकरे अपनी खास बनावट के लिए मशहूर हैं। इस नस्ल की पहचान है इसका काला रंग, जिसमें कान और मुँह पर सफेद धब्बे होते हैं। शरीर पर किसी और रंग का धब्बा नहीं मिलता, जो इसे प्योर नस्ल का सबूत देता है। जखराना बकरे और बकरी एक साल में 25 से 30 किलो वजन तक बढ़ जाते हैं। गाँव के अनुभवी पशुपालकों का कहना है कि इस नस्ल की बकरी 60 फीसदी मामलों में दो या तीन बच्चे देती है, जो किसानों के लिए फायदेमंद है। बकरीद के मौके पर जखराना बकरों की माँग खूब बढ़ती है, और बाजार में इनके अच्छे दाम मिलते हैं।
सोजत बकरे की भारी माँग
सोजत नस्ल के बकरे राजस्थान के नागौर, पाली, जैसलमेर, और जोधपुर में पाए जाते हैं। ये नस्ल सफेद रंग की और बड़े आकार की होती है, जो जमनापारी बकरों से मिलती-जुलती है। सोजत बकरों को खास तौर पर मीट के लिए पाला जाता है, क्योंकि इनका वजन औसतन 60 किलो तक होता है। इस नस्ल की बकरी दिन में एक लीटर तक दूध देती है, जो अतिरिक्त आय का स्रोत बनता है। उत्तर भारत और महाराष्ट्र में सोजत बकरों की माँग हमेशा बनी रहती है। पशुपालकों का अनुभव है कि बकरीद के समय इन बकरों की बिक्री से मोटा मुनाफा होता है।
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सिरोही बकरे का आकर्षक लुक
सिरोही नस्ल के बकरे अपनी छरहरी कद-काठी के लिए जाने जाते हैं। ये भूरे और काले रंग में मिलते हैं, जिनके शरीर पर सफेद धब्बे होते हैं। ये नस्ल खास तौर पर राजस्थान में पाई जाती है और दिखने में काफी आकर्षक होती है। बाजार में सिरोही बकरे 12 से 15 हजार रुपये में आसानी से बिक जाते हैं। गाँव के पशुपालकों का कहना है कि इस नस्ल को पालना आसान है, और ये कम खर्च में अच्छा मुनाफा देता है। सिरोही बकरों की माँग मीट के लिए साल भर रहती है, जिससे ये पशुपालकों के लिए भरोसेमंद विकल्प है।
तोतापरी की अनोखी पहचान
तोतापरी नस्ल का बकरा अपनी लंबी और पतली बनावट के लिए जाना जाता है। इसकी ऊँचाई 3.5 से 4 फीट तक होती है, और इसकी नाक तोते जैसी होने के कारण इसका नाम तोतापरी पड़ा। ये नस्ल राजस्थान के भरतपुर और हरियाणा के मेवात जिले में मिलती है। बाजार में बिक्री के लिए तैयार होने में इस नस्ल को करीब 3 साल लगते हैं। तोतापरी बकरे 12 से 13 हजार रुपये से शुरू होकर ऊँचे दामों पर बिकते हैं। पशुपालकों का कहना है कि इस नस्ल की माँग बकरीद और सामान्य दिनों में भी अच्छी रहती है।
प्योर नस्ल की पहचान जरूरी
पशुपालन में सफलता के लिए प्योर नस्ल की पहचान करना सबसे जरूरी है। अगर सही नस्ल का बकरा या बकरी पाली जाए, तो उनके बच्चे भी प्योर नस्ल के होंगे, जिन्हें बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। कई बार बाजार में मिलावटी नस्ल के बकरे बेचे जाते हैं, जिससे किसानों को नुकसान होता है। गाँव के अनुभवी पशुपालकों का सुझाव है कि बकरे खरीदने से पहले उनकी बनावट, रंग, और वजन को अच्छे से जाँच लें। नाबार्ड और कृषि विभाग के विशेषज्ञ भी सलाह देते हैं कि सरकारी पशुपालन केंद्रों से प्योर नस्ल के बकरे खरीदें, ताकि धोखा न हो।
मुनाफे का सुनहरा मौका
राजस्थान की ये चार नस्लें जखराना, सोजत, सिरोही, और तोतापरी पशुपालकों के लिए मुनाफे का बड़ा मौका लेकर आई हैं। बकरीद के समय इनकी माँग कई गुना बढ़ जाती है, और सामान्य दिनों में भी मीट और दूध के लिए इनकी कीमत अच्छी मिलती है। पशुपालकों का अनुभव है कि सही नस्ल और देखभाल से पशुपालन में लागत कम और मुनाफा ज्यादा होता है। नजदीकी पशुपालन केंद्र या कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करके इन नस्लों के बारे में और जानकारी ली जा सकती है। प्योर नस्ल के बकरे पालकर किसान अपनी आय को दोगुना कर सकते हैं।
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