सिर्फ 30 दिन में तैयार! इस फसल से होगी बंपर कमाई, न रखरखाव न जानवरों का झंझट

Ramdana Farming: रामदाना जिसे चौलाई या राजगिरा भी कहा जाता है, भारत के गाँवों में सदियों से उगाई जाने वाली फसल है। यह कम पानी, कम खाद और कम मेहनत में तैयार हो जाती है। सूखा पड़ने पर भी यह फसल नहीं सूखती और गरीब मिट्टी में भी अच्छा उत्पादन देती है। आजकल बाजार में रामदाना के दाने, आटा और लड्डू की मांग बहुत बढ़ गई है क्योंकि लोग ग्लूटेन फ्री और पौष्टिक अनाज की तरफ जा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, गुजरात और हिमाचल जैसे राज्यों में किसान इसे सफलतापूर्वक उगा रहे हैं। कृषि विश्वविद्यालयों की रिपोर्ट के अनुसार एक हेक्टेयर से 10-15 क्विंटल दाना और 20-25 क्विंटल हरा चारा आसानी से मिल जाता है। लागत मात्र 10-15 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर आती है जबकि बिक्री से 50-80 हजार तक की कमाई हो जाती है।

रामदाने की खेती की खासियत-Ramdana Farming

रामदाने की खेती की सबसे बड़ी खूबी है कि इसे जानवर नहीं चरते, जिससे किसानों को फसल की रखवाली की टेंशन नहीं रहती। इसकी देखभाल भी दूसरी फसलों के मुकाबले कम करनी पड़ती है, जिससे मेहनत और पैसा दोनों बचते हैं। ढाई से तीन महीने में तैयार होने वाली ये फसल तेज़ी से बढ़ती है और अच्छा मुनाफा देती है। बाराबंकी के किसान विक्रम सिंह और निर्मला देवी जैसे कई लोग इसे बड़े पैमाने पर उगा रहे हैं।

बाज़ार में रामदाने की माँग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि ये प्रोटीन, फाइबर, और पोषक तत्वों से भरपूर है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग इसे सुपरफूड मानते हैं, जिससे इसकी कीमत 100-150 रुपये प्रति किलो तक मिल जाती है। एक बीघे में 2-2.5 हज़ार रुपये की लागत लगती है, लेकिन मुनाफा लाखों तक पहुँच सकता है।

ये भी पढ़ें- काला नमक चावल: पूर्वांचल का GI टैग वाला खुशबूदार सोना, अब किसानों की कमाई का दमदार जरिया

जलवायु और मिट्टी का चुनाव

रामदाना गर्म और सूखी जलवायु में अच्छी तरह उगती है। जून-जुलाई में बोआई करने पर अगस्त-सितंबर में फसल तैयार हो जाती है, सिर्फ 90-110 दिन का फसल चक्र है। यह फसल 50 डिग्री तापमान तक सहन कर लेती है और बहुत कम बारिश में भी चल जाती है। बलुई दोमट से लेकर हल्की काली मिट्टी तक हर जगह उगाई जा सकती है। खराब और बंजर जमीन में भी यह फसल हिट साबित होती है। ज्यादा पानी वाली जगहों पर जल निकास की अच्छी व्यवस्था रखें वरना जड़ें सड़ सकती हैं।

उन्नत किस्मों का चयन

भारत में कई अच्छी किस्में उपलब्ध हैं जो ज्यादा उत्पादन देती हैं। राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय और ICAR की सिफारशों के अनुसार ये मुख्य किस्में हैं। दुर्गापुरा लाल, आरएमए-7, सुहाली और प्रिया किस्में लाल दाने वाली हैं और बाजार में इनकी अच्छी कीमत मिलती है। सफेद दाने के लिए जीए1, जीए2 और केबी4 किस्में अच्छी हैं। अन्नपूर्णा और वीएल चौलाई 44 जैसी संकर किस्में 15-18 क्विंटल तक दाना दे देती हैं। ये सभी किस्में बीज कंपनियों और कृषि केंद्रों पर आसानी से मिल जाती हैं। कलमी या प्रमाणित बीज ही लें ताकि उत्पादन ज्यादा हो।

बोआई का सही समय और तरीका

खरीफ में जून के आखिरी सप्ताह से जुलाई के मध्य तक बोआई सबसे अच्छी रहती है। 4-5 किलो बीज प्रति एकड़ काफी होता है। लाइन में बोआई करें तो 30 सेमी की दूरी रखें और पौध से पौध 10-15 सेमी। गहराई 2-3 सेमी से ज्यादा न हो। अगर देर हो जाए तो अगस्त तक भी बो सकते हैं लेकिन उत्पादन थोड़ा कम हो जाता है। कुछ किसान रबी में भी दिसंबर-जनवरी में बोते हैं लेकिन खरीफ की फसल सबसे अच्छी होती है।

ये भी पढ़ें- कीजिए इस मोटे अनाजों के राजा की खेती, कम पानी और कम लागत में बम्पर मुनाफा

खाद और उर्वरक की सही मात्रा

रामदाना को ज्यादा खाद की जरूरत नहीं पड़ती। गोबर की सड़ी खाद 8-10 टन प्रति हेक्टेयर डालें। नाइट्रोजन 40-50 किलो, फास्फोरस 30-40 किलो और पोटाश 20-30 किलो प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। आधी नाइट्रोजन और पूरी फास्फोरस-पोटाश बोआई के समय डालें, बाकी नाइट्रोजन 25-30 दिन बाद ऊपरी ड्रेसिंग में दें। जैविक खेती करने वाले किसान वर्मी कंपोस्ट और नीम की खली का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण

पहली सिंचाई बोआई के तुरंत बाद करें, फिर 15-20 दिन के अंतर पर 3-4 सिंचाई काफी हैं। अगर बारिश अच्छी हो तो एक भी सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती। खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई के 20-25 दिन बाद एक निराई-गुड़ाई कर लें। उसके बाद फसल खुद खरपतवार दबा लेती है क्योंकि पौधा बहुत घना हो जाता है।

कीट और रोग से बचाव

रामदाना में कीट-रोग बहुत कम लगते हैं। तना छेदक कीट लगे तो मोनोक्रोटोफॉस या क्लोरपायरीफॉस का छिड़काव करें। पत्ती खाने वाले कीड़ों के लिए नीम आधारित दवा काफी है। फफूंद रोग से बचने के लिए अच्छी जल निकास रखें और कार्बेंडाजिम का छिड़काव जरूरत पड़ने पर करें। ज्यादातर मामलों में कोई दवा डालने की जरूरत नहीं पड़ती।

कटाई और मड़ाई का सही समय

जब दाने वाले गुच्छे भूरे हो जाएं और दाने सख्त हो जाएं तब फसल काट लें। अगस्त-सितंबर में कटाई हो जाती है। कटाई के बाद 4-5 दिन धूप में सुखाएं फिर बैल या मशीन से मड़ाई करें। दाने को अच्छी तरह साफ करके बोरे में भरें। औसत उत्पादन 10-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर आता है। अच्छी किस्म और देखभाल से 20 क्विंटल तक भी मिल जाता है।

बाजार भाव और कमाई

2025 में रामदाना का थोक भाव 6000-9000 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। ऑर्गेनिक रामदाना तो 12000 रुपये तक बिक रहा है। हरा चारा भी 1500-2000 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है। एक एकड़ से 25-40 हजार रुपये की शुद्ध कमाई आसानी से हो जाती है। कई किसान इसे मक्का या बाजरा के साथ अंतरफसल के रूप में भी उगाते हैं।

रामदाना की खेती कम लागत और कम जोखिम वाली फसल है जो छोटे-मझोले किसानों के लिए वरदान साबित हो रही है। सही किस्म और थोड़ी सी देखभाल से अच्छी कमाई की जा सकती है। स्थानीय कृषि विभाग से संपर्क करके सब्सिडी और बीज की जानकारी जरूर लें।

ये भी पढ़ें- मार्च में अपने छत पर कैसे लगाएं पुदीना, गमले में हरा-भरा स्वाद उगाने का आसान तरीका

Author

  • Shashikant

    नमस्ते, मैं शशिकांत। मैं 2 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती से सम्बंधित सभी विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी एकदम सटीक ताजा खबरें बताऊंगा। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं। जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप Krishitak.com के साथ जुड़े रहिए।

    View all posts

Leave a Comment