सिर्फ 30 दिन में तैयार! इस फसल से होगी बंपर कमाई, न रखरखाव न जानवरों का झंझट

Ramdana Farming: उत्तर प्रदेश का बाराबंकी जिला, जो अफीम की खेती के लिए मशहूर रहा है, अब रामदाने (अमरंथ) की खेती से गुलज़ार हो रहा है। ये फसल किसानों के लिए कम समय में मोटी कमाई का ज़रिया बन रही है। पारंपरिक फसलों जैसे धान और गेहूँ से हटकर, बाराबंकी के किसान अब रामदाने को अपनाकर अपनी जेब भर रहे हैं। कम लागत, आसान देखभाल, और बाज़ार में बढ़ती माँग की वजह से ये फसल किसानों की नई पसंद बन गई है। पोषण से भरपूर होने के कारण इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है।

रामदाने की खेती की खासियत

रामदाने की खेती की सबसे बड़ी खूबी है कि इसे जानवर नहीं चरते, जिससे किसानों को फसल की रखवाली की टेंशन नहीं रहती। इसकी देखभाल भी दूसरी फसलों के मुकाबले कम करनी पड़ती है, जिससे मेहनत और पैसा दोनों बचते हैं। ढाई से तीन महीने में तैयार होने वाली ये फसल तेज़ी से बढ़ती है और अच्छा मुनाफा देती है। बाराबंकी के किसान विक्रम सिंह और निर्मला देवी जैसे कई लोग इसे बड़े पैमाने पर उगा रहे हैं।

बाज़ार में रामदाने की माँग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि ये प्रोटीन, फाइबर, और पोषक तत्वों से भरपूर है। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोग इसे सुपरफूड मानते हैं, जिससे इसकी कीमत 100-150 रुपये प्रति किलो तक मिल जाती है। एक बीघे में 2-2.5 हज़ार रुपये की लागत लगती है, लेकिन मुनाफा लाखों तक पहुँच सकता है।

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कम लागत में बंपर मुनाफा

रामदाने की खेती में लागत बेहद कम आती है। बाराबंकी के किसानों का कहना है कि एक बीघे में खेती शुरू करने के लिए 2-2.5 हज़ार रुपये की ज़रूरत पड़ती है, जिसमें बीज, खाद, और मज़दूरी शामिल है। अगर गोबर की खाद का इस्तेमाल करें, तो लागत और कम हो जाती है। एक बीघे से 3-4 क्विंटल रामदाना निकलता है, और बाज़ार में 100-150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक्री होती है। यानी, एक बीघे से 30-50 हज़ार रुपये का मुनाफा आसानी से हो सकता है। ये फसल बारिश पर निर्भर नहीं रहती और कम पानी में भी अच्छी उपज देती है, जो इसे और किफायती बनाता है।

रामदाने की खेती का आसान तरीका- Ramdana Farming

रामदाने की खेती शुरू करना बेहद आसान है। खेत को अच्छे से जोत लें और मिट्टी को हल्की व दोमट रखें। बीज को 2-3 इंच गहराई पर बोएँ और पौधों के बीच 10-12 इंच की दूरी रखें। शुरू में हल्का पानी दें, और बाद में ज़रूरत के हिसाब से सिंचाई करें। गोबर की खाद या जैविक खाद का इस्तेमाल करें, ताकि लागत कम रहे और मिट्टी की उर्वरता बनी रहे।

बुआई का सबसे अच्छा समय सितंबर-अक्टूबर है, ताकि सर्दियों में कटाई हो सके। ढाई-तीन महीने में फसल तैयार हो जाती है। बाराबंकी के कृषि अधिकारियों ने RMA-4, अन्नपूर्णा RMA-7, और PRA-1 जैसी उन्नत किस्मों की सलाह दी है, जो ज़्यादा पैदावार देती हैं। ये किस्में 3.5-4 क्विंटल प्रति बीघा तक उपज दे सकती हैं।

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बाज़ार में माँग और कीमत

रामदाने की माँग न सिर्फ स्थानीय बाज़ारों में, बल्कि बड़े शहरों जैसे लखनऊ, दिल्ली, और मुंबई में भी बढ़ रही है। व्रत-उपवास में इसकी खपत बढ़ जाती है, और बेकरी, स्नैक्स, और हेल्थ फूड इंडस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। बाराबंकी के किसान इसे सीधे मंडियों या व्यापारियों को बेचकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अगर किसान इसे ऑर्गेनिक तरीके से उगाएँ, तो कीमत 20-30% और बढ़ सकती है। स्थानीय कृषि अधिकारी गणेश चंद्र मिश्रा का कहना है कि रामदाने की खेती जलवायु परिवर्तन के दौर में भी फायदेमंद है, क्योंकि ये सूखा और बाढ़ दोनों सहन कर सकती है।

किसानों के लिए सलाह

रामदाने की खेती छोटे और बड़े दोनों किसानों के लिए फायदे का सौदा है। बाराबंकी के किसानों की तरह आप भी इसे अपनाकर कम लागत में मोटी कमाई कर सकते हैं। सबसे पहले अपने नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) या ज़िला कृषि कार्यालय से RMA-4, RMA-7, या PRA-1 जैसे उन्नत बीज लें। बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवाएँ और जैविक खाद का इस्तेमाल करें। बाज़ार में बिक्री के लिए सही समय का इंतज़ार करें, खासकर व्रत-उपवास के सीजन में। अगर संभव हो, तो ऑर्गेनिक खेती करें, क्योंकि इसकी माँग और कीमत ज़्यादा है।

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  • Shashikant

    नमस्ते, मैं शशिकांत। मैं 2 साल से पत्रकारिता कर रहा हूं। मुझे खेती से सम्बंधित सभी विषय में विशेषज्ञता प्राप्‍त है। मैं आपको खेती-किसानी से जुड़ी एकदम सटीक ताजा खबरें बताऊंगा। मेरा उद्देश्य यही है कि मैं आपको 'काम की खबर' दे सकूं। जिससे आप समय के साथ अपडेट रहे, और अपने जीवन में बेहतर कर सके। ताजा खबरों के लिए आप Krishitak.com के साथ जुड़े रहिए।

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