किसान साथियों, रासायनिक खेती ने भारत में फसल उत्पादन को बढ़ाया, लेकिन मिट्टी की उर्वरता, भूजल स्तर, और मानव स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाला। केमिकल खाद और कीटनाशकों से मिट्टी बंजर हो रही है, और कैंसर जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। जैविक खेती मिट्टी को पुनर्जनन, सुरक्षित भोजन, और 30-50% अधिक मुनाफा देती है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और राजस्थान के किसान इस बदलाव से आय दोगुनी कर रहे हैं। लेकिन रासायनिक से जैविक खेती में परिवर्तन चुनौतियों से भरा है। आइए जानें प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान।
जैविक खेती क्यों जरूरी?
जैविक खेती मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ाती है, सूक्ष्मजीवों को पुनर्जनन करती है, और पानी की खपत 20-30% कम करती है। यह फसलों का स्वाद, पोषण (10-15% अधिक विटामिन), और बाजार मूल्य (3,000-5,000 रुपये/क्विंटल) बढ़ाती है। उपभोक्ताओं की जैविक माँग (वैश्विक बाजार 2024 में $200 बिलियन) और सरकारी योजनाएँ (NPOP, PKVY) इसे प्रोत्साहित करती हैं। जैविक खेती पर्यावरण, स्वास्थ्य, और किसानों की आय के लिए टिकाऊ रास्ता है।
प्रमुख चुनौतियाँ
उत्पादन में कमी: शुरुआती 1-2 साल उपज 20-30% कम हो सकती है, क्योंकि मिट्टी को रासायनिक निर्भरता से मुक्त होने में समय लगता है।
जैविक खाद की उपलब्धता: गोबर खाद, वर्मी कम्पोस्ट, और जीवामृत की गुणवत्ता और मात्रा सुनिश्चित करना मुश्किल है।
रोग और कीट प्रबंधन: रासायनिक कीटनाशकों के बिना कीट नियंत्रण चुनौतीपूर्ण है, खासकर फल और सब्जियों में।
बाजार और प्रमाणन: जैविक उत्पादों के लिए स्थानीय बाजार, उचित दाम, और NPOP प्रमाणन की कमी।
जागरूकता और प्रशिक्षण: किसानों को जैविक तकनीकों (जीवामृत, दशपर्णी अर्क) की जानकारी और प्रशिक्षण सीमित है।
समाधान: जैविक खेती की राह कैसे आसान करें
मिट्टी सुधार
मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए 2-3 साल तक हरी खाद (ढैंचा, मूंग, सनई) बोकर मिट्टी में दबाएँ। प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर खाद, 2 टन वर्मी कम्पोस्ट, और 500 लीटर जीवामृत (महीने में 2 बार) डालें। घनजीवामृत (100 किलो/हेक्टेयर) मिट्टी में सूक्ष्मजीव बढ़ाता है। रासायनिक खाद पूरी तरह बंद करें। मिट्टी जाँच (KVK) से पोषक तत्वों की स्थिति जानें। फसल चक्र (दलहन-तिलहन) अपनाएँ। यह उपज को 3 साल में स्थिर करता है।
जैविक कीट और रोग नियंत्रण
नीम तेल (5 मिली/लीटर), गोमूत्र (10% घोल), और लहसुन-मिर्च घोल (2% सांद्रता) से कीट (एफिड्स, थ्रिप्स) नियंत्रित करें। दशपर्णी अर्क (10 मिली/लीटर) फंगल रोगों (झुलसा, ब्लास्ट) के लिए प्रभावी है। नीम खली (150 किलो/हेक्टेयर) मिट्टी में मिलाएँ। ट्रैप फसल (मैरीगोल्ड) और पक्षी बसेरे कीटों को 30-40% कम करते हैं। नियमित निगरानी और छिड़काव (15 दिन अंतराल) से रासायनिक कीटनाशकों की जरूरत खत्म होती है।
जैविक खाद प्रबंधन
गोबर खाद के लिए गाय-भैंस का गोबर (1 टन/महीना/पशु) और वर्मी कम्पोस्ट इकाई (1 लाख रुपये लागत, 2 टन/महीना) स्थापित करें। जीवामृत (10 किलो गोबर, 10 लीटर गोमूत्र, 2 किलो गुड़/200 लीटर पानी) और घनजीवामृत (100 किलो गोबर, 1 किलो गुड़) घर पर बनाएँ। स्थानीय FPO या KVK से वर्मी कम्पोस्ट खरीदें। यह लागत 20-30% कम करता है और उपज 10-15% बढ़ाता है।
बाजार व्यवस्था और प्रमाणन
जैविक उत्पादों को स्थानीय किसान बाजार, जैविक मंडी (Jaivik Kheti Portal), और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (Amazon, Organic India) पर बेचें। NPOP या PGS प्रमाणन (लागत 5,000-10,000 रुपये/वर्ष) से कीमत 30-50% बढ़ती है। FPO के जरिए सामूहिक बिक्री और डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर मॉडल अपनाएँ। रेस्तराँ, सुपरमार्केट, और निर्यात (APEDA) के लिए संपर्क करें। सोशल मीडिया (WhatsApp, Instagram) से स्थानीय माँग बढ़ाएँ।
प्रशिक्षण और सरकारी सहायता
KVK, ICAR, और ATMA से मुफ्त प्रशिक्षण लें। परम्परागत कृषि विकास योजना (PKVY) से प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपये सब्सिडी और जैविक बीज मिलते हैं। राष्ट्रीय जैविक खेती मिशन प्रमाणन और बाजार सहायता देता है। AIF योजना से 3% ब्याज सब्सिडी पर 2 करोड़ लोन। स्थानीय NGO और FPO से तकनीकी सहायता लें।
मुनाफे की गणना
रासायनिक खेती: गेहूं उपज 40 क्विंटल/हेक्टेयर, कीमत 2,500 रुपये/क्विंटल, आय 1 लाख, लागत 40,000 रुपये, मुनाफा 60,000 रुपये।
जैविक खेती (3 साल बाद): गेहूं उपज 35-40 क्विंटल/हेक्टेयर, कीमत 3,500-4,000 रुपये/क्विंटल, आय 1.22-1.6 लाख, लागत 30,000 रुपये, मुनाफा 92,000-1.3 लाख।
जैविक खेती लागत 20-30% कम करती है और मुनाफा 50-100% बढ़ाती है।
रासायनिक से जैविक खेती में परिवर्तन धैर्य और वैज्ञानिक दृष्टिकोण माँगता है। शुरुआती चुनौतियाँ (उपज में कमी, बाजार) को मिट्टी सुधार, जैविक कीटनाशक, और प्रमाणन से हल किया जा सकता है। जैविक खेती मिट्टी, स्वास्थ्य, और आय के लिए टिकाऊ रास्ता है। सरकारी सहायता और प्रशिक्षण का लाभ उठाएँ। किसान भाइयो, आज जैविक खेती अपनाएँ, अपने खेतों को जिंदा करें, और आने वाली पीढ़ियों के लिए समृद्ध भविष्य बनाएँ।
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