Red Potato: आलू को सब्जियों का बादशाह कहते हैं, और उसमें भी लाल आलू की बात निराली है। भारत आज आलू उत्पादन में दुनिया में दूसरे नंबर पर है, और हमारा लाल आलू नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों की थाली में खूब पसंद किया जाता है। ये आलू भले ही शक्ल में थोड़ा टेढ़ा-मेढ़ा हो, लेकिन इसका स्वाद और खासियत इसे पीले आलू से कहीं महँगा बनाती है। फर्रुखाबाद और कन्नौज जैसे इलाकों में लाल आलू की खेती खूब होती है, और यही वो जगहें हैं जहाँ से ये देश-विदेश में नाम कमा रहा है। आइए, जानते हैं कि लाल आलू इतना खास क्यों है और ये किसानों की जेब कैसे भर रहा है।
लाल आलू का स्वाद और डिमांड
लाल आलू का स्वाद ही उसे बाज़ार में राजा बनाता है। ये आलू पीले आलू की तरह चिकना नहीं होता। इसमें हल्का रबेदारपन होता है, जो खाने में मज़ा दोगुना कर देता है। खासकर मांस के साथ पकाने में ये आलू कमाल करता है, क्योंकि ये मांस के साथ एकदम सही समय पर गलता है। यही वजह है कि नेपाल और बांग्लादेश में इसकी भारी माँग है। पहले पाकिस्तान को भी लाल आलू भेजा जाता था, लेकिन अब वहाँ सप्लाई बंद हो चुकी है। फिर भी, नेपाल के ज़रिए लाल आलू की डिमांड पूरी हो रही है। बांग्लादेश में भी इसकी खपत अच्छी है, और कश्मीर के खाने में भी लाल आलू खूब पसंद किया जाता है। बाज़ार में इसकी कीमत हमेशा ऊँची रहती है, क्योंकि इसकी माँग ज़्यादा और पैदावार थोड़ी कम होती है।
फर्रुखाबाद-कन्नौज में लाल आलू की खेती
लाल आलू की खेती के लिए खास मिट्टी चाहिए, और गंगा के किनारे की रेतीली-दोमट मिट्टी इसके लिए एकदम मुफीद है। इसीलिए फर्रुखाबाद और कन्नौज में लाल आलू खूब उगता है। यहाँ का मौसम और मिट्टी इस आलू को वो खास स्वाद देती है, जो इसे बाज़ार में सबसे अलग बनाता है। एटा और कासगंज में भी थोड़ा-थोड़ा लाल आलू उगाया जाता है, लेकिन फर्रुखाबाद और कन्नौज का नाम सबसे आगे है। मंडी में लाल आलू 20-30 रुपये प्रति किलो तक आसानी से बिक जाता है, जबकि पीला आलू कई बार 10-15 रुपये तक गिर जाता है। जानकार बताते हैं कि लाल आलू की कीमतें हमेशा मज़बूत रहती हैं, क्योंकि इसकी डिमांड कभी कम नहीं होती।
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निर्यात से बढ़ रही कमाई
लाल आलू की विदेशी माँग ने किसानों की किस्मत चमकाई है। नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में इसकी डिमांड की वजह से मंडियों में अच्छा भाव मिलता है। गोरखपुर और बिहार के व्यापारी फर्रुखाबाद-कन्नौज से लाल आलू खरीदकर नेपाल भेजते हैं, और वहाँ से कुछ हिस्सा बांग्लादेश भी जाता है। उत्तर प्रदेश के सादाबाद में 3797 प्रजाति का लाल आलू सऊदी अरब, यूएई, और रूस जैसे देशों में भेजा जा रहा है, जहाँ 50 किलो के पैकेट को 1300-1400 रुपये का भाव मिल रहा है। फर्रुखाबाद और कन्नौज के किसानों को भी ऐसे ही अच्छे दाम मिल रहे हैं। इस निर्यात से न सिर्फ स्थानीय मंडियों में कीमतें मज़बूत रहती हैं, बल्कि किसानों की कमाई भी बढ़ रही है।
लाल आलू की कीमतें ज़्यादातर ऊँची रहती हैं, लेकिन बाज़ार में कभी-कभी उतार-चढ़ाव आता है। अगर आपूर्ति ज़्यादा हो जाए, तो भाव थोड़ा गिर सकता है। फिर भी, विदेशी माँग की वजह से लाल आलू का बाज़ार मज़बूत रहता है। हाल ही में बांग्लादेश में भारत से नए स्टॉक पहुँचने पर आलू की कीमतें 63 रुपये प्रति किलो तक गिरीं, लेकिन फिर भी लाल आलू की डिमांड बरकरार रही। किसानों को सलाह है कि वो कोल्ड स्टोरेज का इस्तेमाल करें, ताकि फसल खराब न हो और सही समय पर अच्छा दाम मिले। सही समय पर मंडी में बेचने से मुनाफा और बढ़ सकता है।
लाल आलू से चमकाएँ खेती
लाल आलू की खेती किसानों के लिए मुनाफे का सौदा है। इसकी माँग देश में ही नहीं, नेपाल, बांग्लादेश, और दूसरे देशों में भी है। फर्रुखाबाद और कन्नौज के किसान इस मौके को खूब भुना रहे हैं। अगर आप भी लाल आलू की खेती शुरू करना चाहते हैं, तो रेतीली-दोमट मिट्टी और अच्छी प्रजातियों का ध्यान रखें। अपने नज़दीकी कृषि केंद्र से उन्नत बीज लें और सही समय पर बुवाई करें। सस्ती बिजली और सोलर पंप जैसी सरकारी योजनाएँ खेती को और आसान बना सकती हैं। लाल आलू की खेती न सिर्फ आपकी जेब भरेगी, बल्कि देश का नाम भी विदेशों में रोशन करेगी।
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