Resham Samriddhi Yojana 2025: उत्तर प्रदेश के गांवों में रेशम की पीली चमक अब सिर्फ साड़ियों तक सीमित नहीं रहेगी। ये खेतों में भी लहरेगी। राज्य सरकार की ‘रेशम समृद्धि योजना’ ने कोट पालन को नया आयाम दिया है। योजना के तहत किसानों को कोट (रेशम के कीड़ों) पालन पर 90% तक सब्सिडी मिलेगी। ये सिर्फ पैसे की बात नहीं, बल्कि ग्रामीण रोजगार, महिलाओं के सशक्तिकरण और राज्य के रेशम उत्पादन में वृद्धि का बड़ा कदम है। 2025-26 की कार्य योजना में 7,500 ग्रामीण समूहों को जोड़ने का लक्ष्य है। मुख्यमंत्री रेशम विकास योजना के तहत ये पहल ODOP (एक जिला, एक उत्पाद) से जुड़ी है, जो पारंपरिक कारीगरों को नई पहचान देगी। आइए, इस योजना की पूरी तस्वीर समझें।
योजना का उद्देश्य, रेशम से आत्मनिर्भर भारत का सपना साकार
रेशम समृद्धि योजना उत्तर प्रदेश सरकार का महत्वाकांक्षी कदम है, जो रेशम कीट पालन (सीरिकल्चर) को बढ़ावा देगा। मुख्य लक्ष्य – ग्रामीण महिलाओं और किसानों को घर बैठे आय का स्रोत देना। योजना राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (SRLM) और रेशम विभाग के संयुक्त प्रयास से चल रही है। महिलाएं शहतूत रेशम और तसर रेशम का उत्पादन घर पर कर सकेंगी। पिछले आठ वर्षों में राज्य से रेशम निर्यात 28 गुना बढ़ा है, और ये योजना इसे और तेज करेगी। कोट पालन से किसान साल में 2-3 चक्र चला सकेंगे, जिससे अतिरिक्त ₹20,000-50,000 की कमाई संभव है। राज्य की रेशम उत्पादन हिस्सेदारी बढ़ेगी, जो वर्तमान में 5% है, को 10% तक ले जाने का लक्ष्य है।
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कोट पालन पर 90% सब्सिडी, लागत कम, मुनाफा ज्यादा
योजना का सबसे आकर्षक हिस्सा – कोट पालन पर 90% सब्सिडी। एक छोटे स्तर के पालन यूनिट की लागत ₹50,000 है, जिसमें से 90% (₹45,000) सरकार देगी। किसान को सिर्फ ₹5,000 लगाने होंगे। सब्सिडी बीज, उपकरण (रैक, ट्रे, सुखाने की मशीन) और विपणन पर मिलेगी। उदाहरण के तौर पर, 100 DFL (डिसीज फ्री लेट) से 40-50 किलो कोकून मिल सकते हैं, जो बाजार में ₹800-1000/किलो बिकते हैं। इससे ₹30,000-40,000 का मुनाफा। योजना के तहत 50,000 महिलाओं को जोड़ने का लक्ष्य है। ग्रामीण समूहों को प्रशिक्षण, बीज और बाजार लिंकेज मिलेगा। अगर आपका गांव शहतूत के पेड़ों से घिरा है, तो ये योजना आपके लिए वरदान है।
रेशम उत्पादन की प्रक्रिया, घर पर आसान शुरुआत
रेशम उत्पादन कृषि आधारित उद्योग है। मुख्य चरण – शहतूत की पत्तियों पर कोट पालन, कोकून निकालना, रीलिंग (रेशम तंतु निकालना) और बुनाई। योजना में महिलाओं को 15-20 दिन का प्रशिक्षण दिया जाएगा। शुरुआत में 500-1000 कोट डालें। 25-30 दिनों में कोकून तैयार। एक कमरा ही काफी – हवादार, साफ जगह। तापमान 25-28°C रखें। उत्तर प्रदेश के लखनऊ, वाराणसी, भदोही जैसे जिलों में ट्रेनिंग सेंटर हैं। रेशम विभाग की वेबसाइट (sericulture.eservicesup.in) पर जागरूकता कार्यक्रमों की जानकारी है। आवेदन प्रथम आओ, प्रथम पाओ के आधार पर जनपद स्तर पर होता है।
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महिलाओं का सशक्तिकरण, रेशम सखी से नई उड़ान
योजना का नाम भले ‘रेशम समृद्धि’ हो, लेकिन ये ‘रेशम सखी योजना’ का विस्तार है। ग्रामीण महिलाओं को ‘रेशम सखी’ बनाकर घर पर उत्पादन सिखाया जा रहा है। 7,500 स्वयं सहायता समूहों (SHG) को लक्ष्य। इससे शहरी पलायन रुकेगा, क्योंकि महिलाएं गांव में ही ₹10,000-15,000 मासिक कमा सकेंगी। SRLM के जरिए FPO (किसान उत्पादक संगठन) बनाए जा रहे हैं, जो विपणन संभालेंगे। दक्षिण भारत की तरह उत्तर प्रदेश भी रेशम हब बनेगा। कांचीपुरम जैसी बुनाई यहां भी फलेगी।
उत्तर प्रदेश रेशम उत्पादन में पिछड़ा था, लेकिन अब बदलाव आ रहा है। 2025-26 में 7,500 समूहों से 1,000 टन अतिरिक्त उत्पादन का लक्ष्य। ODOP से भदोही, मिर्जापुर जैसे जिले रेशम केंद्र बनेंगे। निर्यात यूरोप, अमेरिका में बढ़ेगा। ग्रामीण रोजगार सृजन – 50,000 नौकरियां। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, “रेशम से आत्मनिर्भरता आएगी।” योजना से आर्थिक वृद्धि को नया आयाम मिलेगा।
कैसे आवेदन करें, सरल प्रक्रिया
रेशम विभाग की वेबसाइट पर रजिस्टर करें। स्थानीय KVK या ब्लॉक कार्यालय में संपर्क करें। दस्तावेज – आधार, बैंक पासबुक, SHG प्रमाण पत्र। ट्रेनिंग फ्री, सब्सिडी DBT से। 2025 के लिए आवेदन अब शुरू – जल्दी करें।
बीज की उपलब्धता, बाजार लिंकेज। लेकिन योजना में सब कवर है। रोग नियंत्रण के लिए जैविक तरीके सिखाए जा रहे। भविष्य में 10,000 समूहों का लक्ष्य। रेशम समृद्धि योजना ग्रामीण भारत को नया रंग देगी। 90% सब्सिडी से कोट पालन आसान, आय दोगुनी। किसान भाइयों-बहनों, अभी जुड़ें। उत्तर प्रदेश रेशम का नया केंद्र बनेगा।
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