Rice variety Kokila-33: खेती में नई-नई किस्में आजमाने से किसान भाइयों की मेहनत रंग लाती है। किसानों के लिए धान की नई किस्म कोकिला-33 किसी वरदान से कम नहीं। ये किस्म कम पानी और कम लागत में बंपर पैदावार देती है। शक्ति वर्धक हाइब्रिड सीड्स प्राइवेट लिमिटेड ने इसे तैयार किया है, और अब ये पूरे देश में धान किसानों की पहली पसंद बन रही है। इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि ये सिर्फ 110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ 30-32 क्विंटल तक उपज देती है।
कोकिला-33 की खासियत- Rice variety Kokila-33
कोकिला-33 धान की खेती में कई खूबियाँ हैं। इसके पौधे 92-96 सेमी ऊँचे और मजबूत तने वाले होते हैं। मजबूत तना होने की वजह से फसल गिरने का डर नहीं रहता। इस किस्म के दाने लंबे, पतले और चमकदार होते हैं, जो बाजार में अच्छा दाम दिलाते हैं। ये किस्म सिर्फ 105-110 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जबकि पुरानी किस्मों को 120-130 दिन लगते हैं। इसकी पुष्पन अवधि भी सिर्फ 88 दिन है, यानी फसल जल्दी तैयार होकर खेत खाली कर देती है। इससे किसान अगली फसल जल्दी बो सकते हैं।
कोकिला-33 की सबसे बड़ी ताकत है इसका कम पानी में उगना। आजकल पानी की कमी हर किसान की परेशानी है। ये किस्म कम सिंचाई में भी अच्छी पैदावार देती है। सही देखभाल और आधुनिक तरीकों से खेती करने पर ये प्रति एकड़ 30-32 क्विंटल तक धान दे सकती है। कई किसान इसकी पैदावार से खुश हैं और इसे पी.बी.-1692 और पी.बी.-1509 जैसी पुरानी किस्मों से बेहतर मानते हैं। बाजार में इसके चावल की अच्छी माँग है, जिससे मुनाफा और बढ़ जाता है।
रोगों से लड़ने की ताकत
कोकिला-33 को अमेरिकन सूक्ष्म कवच तकनीक से तैयार किया गया है, जिससे ये रोगों से लड़ने में माहिर है। धान की फसल में अक्सर जड़ सड़न, झुलसा या ब्लास्ट जैसे रोग लग जाते हैं। लेकिन इस किस्म में रोग प्रतिरोधक क्षमता इतनी मजबूत है कि कीटनाशकों का खर्चा कम हो जाता है। इससे न सिर्फ फसल सुरक्षित रहती है, बल्कि जेब पर भी बोझ कम पड़ता है।
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कोकिला-33 की खेती के लिए सही समय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इसकी नर्सरी की बुवाई जून के आखिरी हफ्ते तक, यानी 30 जून के आसपास कर लेनी चाहिए। नर्सरी बोने के 20-25 दिन बाद, जब पौधे 15-20 सेमी के हो जाएँ, उन्हें खेत में रोप देना चाहिए। अगर सीधी बुवाई करनी हो, तो जून के पहले हफ्ते में खेत तैयार करके बीज बो सकते हैं। खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए, ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो।
बीजोपचार कैसे करें?
बुवाई से पहले बीज का उपचार करना बहुत जरूरी है, ताकि जड़ सड़न या फफूंद जैसे रोग फसल को नुकसान न पहुँचाएँ। इसके लिए 1 लीटर पानी में 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम मिलाएँ। इस घोल में बीज को भिगोकर छाया में 2 घंटे सुखाएँ। अगर सीधी बुवाई कर रहे हैं, तो प्रति एकड़ 8-10 किलो बीज काफी है। बीज सर्टिफाइड और अच्छी क्वालिटी का हो, ताकि अंकुरण 85-90% तक हो। अगर बीज की अंकुरण क्षमता कम है, तो बीज की मात्रा थोड़ी बढ़ा सकते हैं।
कम लागत, ज्यादा मुनाफा
कोकिला-33 की खेती में लागत कम लगती है, क्योंकि ये कम पानी और कम कीटनाशकों की माँग करती है। इसके दाने लंबे और चमकदार होने की वजह से बाजार में अच्छा दाम मिलता है। अगर किसान भाई इसकी खेती के लिए ड्रिप सिस्टम या सरकार की सब्सिडी योजनाओं का फायदा उठाएँ, तो लागत और कम हो सकती है। गाँव के दूसरे किसानों के साथ मिलकर बीज और खाद थोक में खरीदें, इससे भी खर्चा बचेगा।
क्यों चुनें कोकिला-33?
ये किस्म उन किसानों के लिए वरदान है, जो कम पानी और कम समय में ज्यादा पैदावार चाहते हैं। इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता और जल्दी तैयार होने की खूबी इसे खास बनाती है। मध्य प्रदेश के किसान इसे आजमा रहे हैं और अच्छे नतीजे पा रहे हैं। अगर सही समय पर बुवाई और बीजोपचार किया जाए, तो ये किस्म बंपर मुनाफा दे सकती है। गाँव के कृषि केंद्र से कोकिला-33 के बीज और खेती की पूरी जानकारी ले सकते हैं।
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