RT-46 Sesame Variety: किसान भाइयों, खरीफ सीजन में तिल की खेती करने वालों के लिए RT-46 तिल की किस्म किसी वरदान से कम नहीं। ये किस्म सिर्फ 70-75 दिनों में पककर तैयार हो जाती है, जो कम समय में फसल लेने वालों के लिए शानदार है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में इसकी खेती बढ़ रही है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा 1990 में विकसित ये किस्म अपनी उच्च उपज, ज्यादा तेल कंटेंट, और रोग प्रतिरोधकता के लिए जानी जाती है। खास बात ये है कि इसके पौधे एकसमान बढ़ते हैं, जिससे फसल की कटाई आसान हो जाती है। बाजार में इसके सफेद बीजों की मांग बढ़ रही है, जो किसानों को मोटा मुनाफा दे रही है।
बंपर उपज और तेल की मात्रा
RT-46 तिल की किस्म एक हेक्टेयर में 8-10 क्विंटल उपज देती है। अगर मौसम अनुकूल रहा और खेती सही तरीके से की जाए, तो उपज इससे भी ज्यादा हो सकती है। इसके बीजों में 48-50% तेल पाया जाता है, जो सामान्य किस्मों से ज्यादा है। इसका तेल उच्च गुणवत्ता वाला होता है, जिसमें फ्री फैटी एसिड (FAA) 0.75-1.5% तक कम होता है, जिससे शेल्फ लाइफ बढ़ती है।
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मध्य प्रदेश के जबलपुर के किसान रमेश पटेल ने बताया कि उन्होंने RT-46 की खेती कर 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज ली और बाजार में 8000 रुपये प्रति क्विंटल का भाव मिला। ये किस्म खाद्य तेल, मिठाई, और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में खूब पसंद की जाती है।
रोग प्रतिरोधकता का कमाल
RT-46 तिल की किस्म की सबसे बड़ी खासियत है इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता। ये अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट (पत्तियों पर दाग) और मेक्रोफोमिना रूट रॉट जैसी बीमारियों के प्रति सहनशील है। मध्य प्रदेश के टिकमगढ़ और छत्तीसगढ़ के रायपुर जैसे क्षेत्रों में, जहाँ तिल की फसल को कीटों और रोगों का खतरा रहता है, RT-46 अच्छा प्रदर्शन करती है।
कीटों जैसे लीफ रोलर और कैप्सूल बोरर से बचाने के लिए क्विनालफोस 25 EC (1.5 मिली/लीटर) का छिड़काव 30 और 45 दिन बाद करें। इससे रासायनिक खर्च भी कम होता है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचता।
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खेती का आसान तरीका
RT-46 तिल की किस्म की खेती के लिए रेतीली दोमट या मध्यम मिट्टी सबसे अच्छी है। खेत को दो बार जोतकर समतल करें और 5 किलो/हेक्टेयर बीज की बुवाई करें। खरीफ सीजन में जुलाई के पहले हफ्ते में बुवाई आदर्श है, और 30×15 सेंटीमीटर की दूरी रखें। 40 किलो नाइट्रोजन, 20 किलो फॉस्फोरस, और 20 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर डालें, जिसमें आधा नाइट्रोजन फूल आने पर दें।
खरपतवार नियंत्रण के लिए 15-20 और 30-35 दिन बाद दो बार निराई करें। पेंडिमेथालिन (1 किलो/हेक्टेयर) का प्री-इमर्जेंस छिड़काव भी फायदेमंद है। तिल को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं, लेकिन फूल और कैप्सूल बनने के समय हल्की सिंचाई करें। पानी के जमाव से बचें, क्योंकि ये फसल इसके प्रति संवेदनशील है।
उपयुक्त क्षेत्र और मुनाफा
RT-46 मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, और उत्तर प्रदेश के लिए खासतौर पर उपयुक्त है। मध्य प्रदेश के जबलपुर, टिकमगढ़, और छत्तीसगढ़ के रायपुर में इसकी खेती से किसानों को अच्छा मुनाफा मिल रहा है। इसके सफेद बीजों की मांग तेल और खाद्य उद्योगों में बढ़ रही है। 2025 में मंडी भाव 7500-9000 रुपये प्रति क्विंटल तक रहा।
राष्ट्रीय बीज निगम (NSC) और स्थानीय कृषि केंद्रों से इसके बीज 150-200 रुपये प्रति किलो में मिलते हैं। किसान भाई इस किस्म को अपनाकर कम समय में बंपर उपज और मुनाफा कमा सकते हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs) – RT-46 तिल की किस्म
1. RT-46 तिल की किस्म कितने दिन में तैयार होती है?
RT-46 तिल की किस्म करीब 70 से 75 दिन में पककर तैयार हो जाती है। ये खासतौर पर उन किसानों के लिए सही है जो जल्दी मुनाफा चाहते हैं।
2. RT-46 तिल का तेल प्रतिशत कितना होता है?
इस किस्म में लगभग 48% से 50% तक तेल निकलता है, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलवाता है। इसका तेल हल्का होता है और शेल्फ लाइफ भी लंबी होती है।
3. RT-46 बीज कहाँ से खरीदें?
RT-46 किस्म के बीज राष्ट्रीय बीज निगम (NSC), IARI के बीज बिक्री केंद्र, और कई online agro portals से भी मिल सकते हैं। बीज की कीमत लगभग ₹150–₹200 प्रति किलो रहती है।
4. क्या RT-46 तिल किस्म रोगों से सुरक्षित है?
हाँ, RT-46 में अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट और जड़ सड़न (रूट रॉट) जैसी बीमारियों के प्रति अच्छी सहनशीलता होती है।
साथ ही, लीफ रोलर और कैप्सूल बोरर जैसे कीटों से भी यह किस्म कम प्रभावित होती है।
5. RT-46 तिल की खेती किन राज्यों में सबसे ज्यादा होती है?
यह किस्म खासतौर पर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और उत्तर प्रदेश में अच्छी उपज देती है।
इन राज्यों में इसकी खेती का रुझान तेजी से बढ़ रहा है।
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