विदेशी नस्ल की सानेन बकरी आज किसानों के लिए किसी एटीएम से कम नहीं है। इसके दूध और मांस की बाजार में भारी मांग है, जिससे किसान कम लागत में बढ़िया मुनाफा कमा सकते हैं। यह बकरी देसी नस्ल की गाय-भैंसों से भी ज्यादा दूध देती है, इसीलिए इसे “दूध की रानी” कहा जाता है। वहीं, इसके मांस की कीमत ₹1500 प्रति किलो तक पहुंच जाती है। ग्रामीण से लेकर शहरी इलाकों तक में बकरी पालन एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है।
सानेन बकरी की खासियत
रायबरेली जिले के पशु चिकित्सा अधीक्षक डॉ. इंद्रजीत वर्मा के अनुसार, सानेन बकरी को “गरीब की गाय” भी कहा जाता है। यह नस्ल नीदरलैंड से आई है और रोजाना 8 से 10 लीटर दूध देती है, जबकि भारतीय गाय-भैंसें महज 6-8 लीटर दूध ही दे पाती हैं। इसकी वजह से छोटे और सीमांत किसानों के लिए यह नस्ल वरदान साबित हो रही है।
सानेन बकरी के दूध और मांस में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। इसका दूध ₹150-200 प्रति लीटर और मांस ₹1000-1500 प्रति किलो तक बिकता है। इसके दूध से बना पनीर ₹1000 प्रति किलो और घी ₹3000 प्रति किलो तक बाजार में बिकता है।
सानेन बकरी की पहचान कैसे करें?
इस नस्ल की बकरी का रंग आमतौर पर सफेद होता है। इसके सींग ऊपर की ओर लंबे और कान सीधे खड़े होते हैं। नर बकरे का वजन 80 किलो तक होता है, जबकि मादा का वजन 60 किलो तक रहता है। इसका शरीर मजबूत और स्वस्थ होता है, जो इसे भारतीय जलवायु के अनुकूल बनाता है।
सानेन बकरी पालन के फायदे
- कम लागत, ज्यादा मुनाफा:
बकरी पालन में देसी पशुओं की तुलना में कम खर्च आता है, लेकिन दूध और मांस की ऊंची कीमतों से किसानों को अच्छा लाभ मिलता है। - जल्दी प्रजनन क्षमता:
सानेन बकरी महज 9 महीने में ही प्रजनन के लिए तैयार हो जाती है, जिससे किसानों को तेजी से पशुधन बढ़ाने में मदद मिलती है। - बाजार में मांग:
स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ने के कारण इसके दूध और मांस की मांग लगातार बढ़ रही है।
कहाँ पाई जाती है सानेन बकरी?
सानेन बकरी नीदरलैंड मूल की नस्ल है, लेकिन यह भारत में भी अच्छी तरह से अनुकूलित हो गई है। यह मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। इन राज्यों में इसके उच्च दूध उत्पादन और मांस की गुणवत्ता के कारण इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।
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