जुलाई में कीजिए, केले की इस सब्जी वाली किस्मों की खेती, जिसमे है मुनाफे की मिठास, किसान हो रहे मालामाल

किसान भाइयों, केला सिर्फ फल नहीं, बल्कि एक ऐसी फसल है जो किसानों को बंपर कमाई का रास्ता दिखाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सब्जी वाले केले की खेती से भी अच्छा मुनाफ़ा हो सकता है? नेद्रन, मोंथान, कच्केल, और बथीरा जैसी किस्में खास तौर पर सब्जी के लिए उगाई जाती हैं और इनसे न सिर्फ स्वादिष्ट व्यंजन बनते हैं, बल्कि किसानों की जेब भी भरती हैं। जब खेतों में नई फसल की शुरुआत हो रही है, यह सही समय है कि आप इन किस्मों की खेती शुरू करें। ये किस्में कम मेहनत में ज़्यादा पैदावार देती हैं और बाज़ार में अच्छी मांग रखती हैं। आइए, जानते हैं कि इनके साथ कैसे अपनी मेहनत को सोने में बदलें।

नेद्रन, दक्षिण का गोल्डन केला

नेद्रन, जिसे रजेजी भी कहते हैं, दक्षिण भारत खासकर केरल के किसानों की पसंदीदा किस्म है। इसका तना मोटा और मजबूत होता है, और फल का वजन 20-25 किलोग्राम तक हो सकता है। यह सब्जी के लिए आदर्श है क्योंकि इसका गूदा नम और मुलायम होता है, जिससे सब्जी बनाना आसान हो जाता है। नेद्रन की खेती के लिए दोमट मिट्टी और अच्छा जल निकास ज़रूरी है। इसे जुलाई में रोपकर 12-14 महीने में फसल तैयार हो जाती है। किसान भाइयों को इसकी देखभाल में ड्रिप सिंचाई और जैविक खाद का इस्तेमाल करना चाहिए, जिससे पैदावार 50 टन प्रति एकड़ तक पहुँच सकती है। बाज़ार में इसकी कीमत 25-30 रुपये प्रति किलोग्राम रहती है, जो अच्छा मुनाफ़ा देती है।

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मोंथान, बहुउपयोगी किस्म

मोंथान को कच्केल, बथीरा, या बौंथा जैसे नामों से भी जाना जाता है, और यह बिहार, तमिलनाडु, और केरल में लोकप्रिय है। इसका छिलका मोटा और पीला होता है, जबकि अंदर का गूदा मीठा-नमकपन लिए होता है। इसकी खासियत यह है कि इसका तना और फूल भी खाने योग्य होते हैं, जो अतिरिक्त कमाई का स्रोत बन सकते हैं। मोंथान की खेती के लिए गर्म और नम मौसम सही रहता है, और इसे जुलाई-अगस्त में रोपना फायदेमंद है। एक एकड़ में 40-45 टन पैदावार संभव है, और बाज़ार में इसकी कीमत 20-25 रुपये प्रति किलोग्राम है। नियमित खरपतवार हटाने और हल्की सिंचाई से यह किस्म अच्छी पैदावार देती है।

कच्केल, मज़बूत और मुनाफ़ेदार

कच्केल, जो मोंथान का ही एक रूप है, असमान मौसम में भी पैदा हो सकता है। इसका पौधा सख्त होता है और हवा या सूखे से कम प्रभावित होता है। यह तमिलनाडु और महाराष्ट्र के किसानों के बीच मशहूर है। कच्केल का फल गहरे रंग का और मोटा होता है, जो सब्जी बनाने के लिए उत्तम है। इसकी खेती के लिए मिट्टी का पीएच 6.5-7.5 होना चाहिए, और इसे अच्छी जल निकासी वाली ज़मीन में लगाना बेहतर है। जुलाई में रोपाई करने पर 13-15 महीने में फसल तैयार होती है, और एक एकड़ से 35-40 टन पैदावार मिल सकती है। बाज़ार में इसकी मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को 22-28 रुपये प्रति किलोग्राम की कमाई हो रही है।

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बथीरा, देसी स्वाद का राजा

बथीरा, जिसे कोठिया या गौरिया भी कहते हैं, देसी किस्मों में खास जगह रखता है। इसका गूदा कड़ा और स्वाद में अनोखा होता है, जो सब्जी और पकवान दोनों के लिए मुफीद है। यह किस्म बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में अच्छी पैदावार देती है। बथीरा को गर्म और आर्द्र जलवायु में उगाना चाहिए, और जुलाई की शुरुआत में रोपाई शुरू करने से फायदा होता है। इसकी पैदावार 30-35 टन प्रति एकड़ तक हो सकती है, और बाज़ार में इसकी कीमत 18-22 रुपये प्रति किलोग्राम है। जैविक खाद और समय-समय पर कीट नियंत्रण से यह किस्म और मुनाफ़ेदार बन सकती है।

खेती की तैयारी और देखभाल

सब्जी वाले केले की खेती (Sabji Wala Kela Kheti )के लिए सबसे पहले खेत को चार-पांच बार जोतकर भुरभुरा बनाना चाहिए। इसके बाद 2×2 फीट के गड्ढे बनाकर रोपाई करें, और हर गड्ढे में जैविक खाद डालें। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होगी और पैदावार बढ़ेगी। इन किस्मों को कीटों से बचाने के लिए नीम के तेल का छिड़काव करें, और खरपतवार को समय-समय पर हटाएँ। जुलाई से सितंबर तक रोपाई का सही समय है, और 12-15 महीने में फसल तैयार हो जाती है। अच्छी देखभाल से एक एकड़ में 35-50 टन पैदावार संभव है, जो बाज़ार में अच्छी कीमत दिला सकती है।

बाज़ार और मुनाफ़े की राह

सब्जी वाले केले की मांग होटल, रेस्तराँ, और स्थानीय बाज़ारों में बढ़ रही है। नेद्रन, मोंथान, कच्केल, और बथीरा की सब्जियाँ पकौड़े, साबूदाना खिचड़ी, और अन्य व्यंजनों में इस्तेमाल होती हैं, जिससे इनकी कीमत स्थिर रहती है। एक एकड़ में 9-10 लाख रुपये की लागत के बाद 15-20 लाख रुपये तक की कमाई हो सकती है, खासकर अगर आप ड्रिप सिंचाई और टिश्यू कल्चर पौधों का इस्तेमाल करें। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में इसकी खेती से किसान पहले से मुनाफ़ा कमा रहे हैं, और आप भी इस मौके का फायदा उठा सकते हैं।

इन किस्मों की खेती में कीट और बीमारियाँ चुनौती हो सकती हैं, जैसे चेंपा और पनामा विल्ट। इसके लिए फॉस्फैमिडोन जैसे कीटनाशकों का सही इस्तेमाल करें और मिट्टी में पानी का जमाव न होने दें। साथ ही, स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेकर नई तकनीक अपनाएँ। बाज़ार में सही दाम पाने के लिए अपनी फसल को सीधे व्यापारियों से जोड़ें या सहकारी समितियों का सहारा लें। यह मेहनत आपको लंबे समय तक फायदा देगी।

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र एक कृषि विशेषज्ञ हूं जिसे खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी साझा करना और नई-नई तकनीकों को समझना बेहद पसंद है। कृषि से संबंधित लेख पढ़ना और लिखना मेरा जुनून है। मेरा उद्देश्य है कि किसानों तक सही और उपयोगी जानकारी पहुंचे ताकि वे अधिक उत्पादन कर सकें और खेती को एक लाभकारी व्यवसाय बना सकें।

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