आज ही अपनाएं कतरनी धान की नई किस्म, कम लागत में पाएं दोगुनी पैदावार और मुनाफा

बिहार के किसान भाइयों के लिए एक बड़ी खुशखबरी है! कतरनी धान, जो अपनी खुशबू और स्वाद के लिए मशहूर है, अब किसानों की आमदनी को दोगुना करने जा रहा है। बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर के वैज्ञानिकों ने मेहनत और शोध के बाद कतरनी धान की एक नई किस्म तैयार की है, जिसका नाम है सबौर कतरनी धान-1। यह नई किस्म पुरानी कतरनी से डेढ़ गुना ज्यादा पैदावार देती है और किसानों की कई समस्याओं को हल करती है। आइए, जानते हैं कि यह नई किस्म कैसे किसानों के लिए वरदान साबित होगी।

ज्यादा पैदावार, कम परेशानी

पहले कतरनी धान की खेती करने वाले किसान कम उपज की वजह से परेशान रहते थे। पुरानी किस्म से प्रति हेक्टेयर करीब 25 क्विंटल धान मिलता था, लेकिन अब सबौर कतरनी धान-1 से 35-37 क्विंटल तक पैदावार हो सकती है। यानी उसी खेत और उसी मेहनत से अब ज्यादा फसल मिलेगी।

इस नई किस्म को BAU के वैज्ञानिक डॉ. मनकेश और उनकी टीम ने खासतौर पर बिहार के किसानों की जरूरतों को ध्यान में रखकर बनाया है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें कीटों का हमला कम होता है। पुरानी कतरनी की खुशबू कीटों को आकर्षित करती थी, लेकिन इस नई किस्म में यह समस्या काफी हद तक कम कर दी गई है। इससे किसानों को कीटनाशकों पर खर्च भी बचेगा।

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कम पानी, ज्यादा फायदा

सबौर कतरनी धान-1 की एक और खूबी है कि यह कम पानी में भी अच्छी फसल देता है। बिहार के उन इलाकों में, जहाँ सिंचाई की सुविधा कम है, यह किस्म किसानों के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगी। कम पानी में अच्छी पैदावार का मतलब है कि किसान बिना ज्यादा खर्च के बेहतर फसल उगा सकेंगे। BAU के वैज्ञानिक इस किस्म की बुआई और देखरेख पर खुद नजर रख रहे हैं। यूनिवर्सिटी परिसर में इसकी खेती शुरू हो चुकी है, और भविष्य में जो किसान इस बीज को अपनाएंगे, उन्हें वैज्ञानिकों से तकनीकी मदद भी मिलेगी।

कतरनी की खासियत

कतरनी धान की अपनी एक अलग पहचान है। भागलपुर के जगदीशपुर और आसपास के इलाकों में इसकी खेती खूब होती है। इस धान की खुशबू और स्वाद इसे बाकी धानों से अलग बनाता है। यही वजह है कि कतरनी चावल को GI (Geographical Indication) टैग मिला हुआ है। इस टैग की वजह से कतरनी की बाजार में मांग और कीमत दोनों अच्छी हैं। अब नई किस्म की ज्यादा पैदावार के साथ किसानों को और ज्यादा मुनाफा होगा। बाजार में कतरनी की डिमांड को देखते हुए यह नई किस्म किसानों की जेब को और मजबूत करेगी।

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जैविक खेती के लिए भी उपयुक्त

सबौर कतरनी धान-1 न सिर्फ ज्यादा पैदावार देता है, बल्कि यह जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए भी बहुत अच्छा है। जैविक खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशकों का इस्तेमाल नहीं होता, जिससे मिट्टी और पर्यावरण सुरक्षित रहते हैं। कतरनी की यह नई किस्म कम कीटों के हमले और कम पानी की जरूरत की वजह से जैविक खेती के लिए भी मुफीद है। इससे किसान शुद्ध और पौष्टिक चावल उगा सकेंगे, जो बाजार में अच्छी कीमत दिलाएगा।

किसानों की आमदनी में इजाफा

इस नई किस्म के आने से किसानों को पुरानी लागत में डेढ़ गुना ज्यादा फसल मिलेगी। यानी खेती का खर्च वही रहेगा, लेकिन धान की बिक्री और मुनाफा बढ़ेगा। इससे किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और वे आत्मनिर्भर बनेंगे। साथ ही, BAU के वैज्ञानिकों की तकनीकी मदद से किसान इस किस्म को आसानी से उगा सकेंगे। यह नई किस्म न सिर्फ कतरनी की परंपरा को बचाएगी, बल्कि किसानों की जिंदगी को भी बेहतर बनाएगी।

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  • Shashikant

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