सरजू 52 धान, सूखे में भी लहराएगा खेत, मुनाफा होगा ज़बरदस्त, किसानों का भरोसेमंद साथी!

Sarju 52 Dhan: धान की खेती किसानों का गर्व है, भैया! और जब बात सरजू 52 जैसी धान की किस्म की हो, तो खेतों में लहलहाती फसल की तस्वीर अपने आप बनने लगती है। ये किस्म कम पानी, कम लागत, और कम उपजाऊ मिट्टी में भी बंपर उत्पादन देती है, जिसने इसे उत्तर प्रदेश, बिहार, और झारखंड जैसे राज्यों में किसानों का चहेता बना दिया है। सरजू 52 के लंबे, पतले दाने और बेहतरीन स्वाद इसे बाज़ार में खास बनाते हैं। सूखा हो या कमज़ोर मिट्टी, ये किस्म हर मुश्किल हालात में कमाल दिखाती है। आइए, जानते हैं कि सरजू 52 की खेती कैसे करें, कितना खर्च आएगा, और ये आपकी कमाई को कैसे बढ़ाएगी।

खेत को बनाएँ सरजू 52 का मज़बूत ठिकाना

सरजू 52 की खेती शुरू करने से पहले खेत को सही तरीके से तैयार करना ज़रूरी है। ये किस्म बलुई दोमट, चिकनी, या कम उपजाऊ मिट्टी में भी उग सकती है, जिसका pH 5.0 से 9.5 के बीच हो। खेत को दो-तीन बार हल चलाकर भुरभुरा करें। गोबर की खाद या वर्मी-कम्पोस्ट डालें, ताकि मिट्टी को पोषण मिले। अगर जलभराव की दिक्कत हो, तो छोटी नालियाँ बनाएँ, ताकि बारिश का पानी निकल जाए। बुआई से पहले बीज को थिरम (3 ग्राम प्रति किलो बीज) या बाविस्टिन (2 ग्राम प्रति किलो) से उपचारित करें, ताकि फफूंद और कीटों से बचाव हो।

बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर बोएँ, पंक्तियों में 20-25 सेंटीमीटर का फासला रखें। अगर पानी कम है, तो गीली नर्सरी या ड्रिप इरिगेशन अपनाएँ। खेत की तैयारी में 3,000-5,000 रुपये प्रति एकड़ का खर्च आता है, जो लंबे समय तक फायदा देता है। मिट्टी की जाँच करवाएँ, ताकि सही खाद का इंतज़ाम हो।

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कम पानी में लहलहाती फसल

Sarju 52 Dhan की सबसे बड़ी खासियत है इसका कम पानी में उगना। ये खरीफ सीज़न में जून-जुलाई में बुआई के लिए आदर्श है और 120-130 दिन में पककर तैयार हो जाती है। 100 सेंटीमीटर से कम बारिश वाले इलाकों में भी ये अच्छा उत्पादन देती है, जो इसे सूखा-सहिष्णु बनाता है। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करें, ताकि मिट्टी नम रहे। फूल आने और दाने बनने के समय पानी की ज़रूरत बढ़ती है, लेकिन जलभराव से बचें। ड्रिप इरिगेशन से पानी की 30-40% बचत हो सकती है, और सरकार की 50% सब्सिडी इसे सस्ता बनाती है। खरपतवार से बचने के लिए बुआई के 20-25 दिन बाद निराई-गुड़ाई करें।

तना छेदक और पत्ती लपेटक जैसे कीटों से बचाव के लिए नीम का तेल या कार्टैप हाइड्रोक्लोराइड (170 ग्राम प्रति एकड़) का छिड़काव करें। मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो, तो एनपीके (50:12:12 किलो प्रति एकड़) का इस्तेमाल करें, लेकिन मिट्टी की जाँच ज़रूरी है। सरजू 52 बैक्टीरियल ब्लाइट और ब्लास्ट जैसे रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है, जो इसे भरोसेमंद बनाता है।

सस्ती खेती, मोटा मुनाफा

सरजू 52 की खेती में लागत इतनी कम है कि छोटे किसान भी इसे आसानी से अपना सकते हैं। एक एकड़ के लिए 90-100 किलो बीज चाहिए, जिनकी कीमत 25-80 रुपये प्रति किलो है। बीज, खाद, और सिंचाई का खर्च जोड़कर कुल लागत 10,000-15,000 रुपये आती है। ड्रिप इरिगेशन लगाने में 20,000-30,000 रुपये अतिरिक्त खर्च हो सकते हैं, लेकिन सब्सिडी इसे किफायती बनाती है। सरजू 52 से प्रति हेक्टेयर 50-55 क्विंटल धान मिल सकता है, और कम उपजाऊ मिट्टी में भी 40-45 क्विंटल तक उत्पादन होता है। बाज़ार में इसका धान 50-60 रुपये प्रति किलो बिकता है, यानी एक एकड़ से 60,000-80,000 रुपये का मुनाफा हो सकता है।

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अगर चावल बिरयानी या रोज़मर्रा के खाने के लिए बेचें, तो दाम 70-80 रुपये प्रति किलो तक जा सकते हैं। इसका स्वाद और लंबे दाने बाज़ार में हमेशा डिमांड में रहते हैं। जैविक खेती करने पर दाम और बढ़ सकते हैं, जिससे मुनाफा दोगुना हो सकता है।

खेतों को लहलहाने का मंत्र

सरजू 52 की खेती को कामयाब बनाने के लिए कुछ देसी नुस्खे अपनाएँ। नज़दीकी कृषि विज्ञान केंद्र से बीज और खेती की पूरी जानकारी लें, जहाँ मुफ्त ट्रेनिंग और मिट्टी जाँच की सुविधा मिलती है। बुआई से पहले मिट्टी की जाँच करवाएँ, ताकि सही खाद और सिंचाई का इंतज़ाम हो। पानी की कमी हो, तो सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI) विधि अपनाएँ, जिसमें कम बीज और पानी से ज़्यादा पैदावार होती है। फसल तैयार होने पर स्थानीय मंडी, चावल मिलों, या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म, जैसे Amrapali Foods, पर बेचें। त्योहारों, जैसे दीवाली या होली, के समय चावल की मांग बढ़ती है, तो सही समय पर बिक्री करें।

जैविक खाद, जैसे अज़ोला या नीम की खली, का इस्तेमाल करें, ताकि लागत कम हो और मिट्टी की सेहत बनी रहे। छोटे स्तर पर, जैसे आधा एकड़ से, शुरुआत करें, ताकि अनुभव मिले और नुकसान का डर न रहे। बाढ़ या सूखे का खतरा हो, तो फसल बीमा करवाएँ। सरजू 52 की खेती कम संसाधनों में भी खेतों को लहलहा देती है। इसे आजमाएँ और बंपर फसल का मज़ा लें!

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  • Dharmendra

    मै धर्मेन्द्र पिछले तिन साल से पत्रकारिता कर रहा हूँ मै ugc नेट क्वालीफाई हूँ भूगोल विषय से मै एक विषय प्रवक्ता हूँ , मुझे कृषि सम्बन्धित लेख लिखने में बहुत रूचि है मैंने सम्भावना संस्थान हिमाचल प्रदेश से कोर्स किया हुआ है |

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