Faujhi Keet in Paddy: मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला धान उत्पादन का गढ़ है, जहाँ खेतों की हरियाली किसानों की मेहनत की कहानी बयां करती है। लेकिन जैसे-जैसे धान की फसल पकने को तैयार होती है, सावरदेवी यानी फौजी कीट का खतरा मंडराने लगता है। यह कीट धान की बालियों पर हमला करता है, जिससे पूरी फसल बर्बाद हो सकती है। बालाघाट के बड़गांव स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के निदेशक डॉ. धुआरे ने इस कीट से बचाव के सरल और प्रभावी उपाय सुझाए हैं। आइए, जानें कि कैसे सावरदेवी के प्रकोप से धान की फसल को बचाएँ और बंपर उपज पाएँ।
सावरदेवी (फौजी कीट), कम खाता, ज्यादा नुकसान
डॉ. धुआरे के अनुसार, सावरदेवी या फौजी कीट धान की फसल के पकने के समय, खासकर बालियाँ बनने पर सक्रिय होता है। यह कीट पूरी फौज के साथ हमला करता है, जिससे फसल को भारी नुकसान होता है। यह कम खाता है, लेकिन बालियों को काटकर बर्बाद कर देता है। दिन में यह पौधों की तनों के भीतर, मेड़ों पर घास या बड़े पत्तों में छिपता है, और शाम को सक्रिय होकर हमला करता है। जब तक किसान को नुकसान का पता चलता है, तब तक फसल का बड़ा हिस्सा खराब हो चुका होता है। इसलिए समय पर पहचान और नियंत्रण जरूरी है।

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रासायनिक नियंत्रण, क्लोरोपाइरीफास का सही उपयोग
सावरदेवी कीट से निपटने के लिए रासायनिक दवा प्रभावी है। डॉ. धुआरे सलाह देते हैं कि प्रति एकड़ 350 मिलीलीटर क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव करें। लेकिन सही तरीका अपनाना जरूरी है:
छिड़काव का समय: कीट शाम को सक्रिय होता है, इसलिए दवा का छिड़काव भी शाम को करें। इससे दवा वाष्प बनकर उड़ेगी नहीं और कीट पर सीधा असर होगा।
सही जगह: आमतौर पर किसान केवल पौधों पर दवा छिड़कते हैं, लेकिन कीट मेड़ों पर छिपे होते हैं। इसलिए पौधों के साथ-साथ खेत की मेड़ों पर भी छिड़काव करें।
सावधानी: दवा को सही अनुपात में पानी (500-600 लीटर प्रति एकड़) में मिलाएँ और सुरक्षात्मक गियर (दस्ताने, मास्क) पहनें।
यह तरीका तुरंत परिणाम देता है और फसल को बड़े नुकसान से बचाता है।
जैविक उपाय: दशपर्णी अर्क और ब्रह्मास्त्र
जो किसान रासायनिक दवाओं से बचना चाहते हैं, उनके लिए जैविक उपाय कारगर हैं। डॉ. धुआरे सुझाते हैं कि दशपर्णी अर्क या ब्रह्मास्त्र जैसे जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें:
दशपर्णी अर्क: नीम, करंज, अरंडी जैसे 10 पौधों के पत्तों से बना यह अर्क कीटों को भगाता है। 200 मिलीलीटर अर्क को 10 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ छिड़कें।
ब्रह्मास्त्र: नीम, धतूरा, मिर्च और गोमूत्र से तैयार यह घोल कीटों को नष्ट करता है। 2-3 लीटर घोल को 100 लीटर पानी में मिलाकर उपयोग करें।
समय पर छिड़काव: कीट के लक्षण दिखने पर तुरंत छिड़काव शुरू करें। अगर प्रकोप का अंदेशा हो, तो फसल के पकने से पहले ही मेड़ों और खेत में छिड़काव करें।
लाभ: ये जैविक उपाय पर्यावरण और मिट्टी के लिए सुरक्षित हैं, और उपज की गुणवत्ता बढ़ाते हैं।
सही समय और सावधानी: कीट नियंत्रण की कुंजी
सावरदेवी का प्रकोप आमतौर पर धान की बालियाँ बनने के दौरान (पकने का अंतिम चरण) होता है। इसलिए किसानों को पहले से सतर्क रहना चाहिए:
लक्षण पहचानें: बालियों पर कटे हुए दाने, पत्तियों पर छोटे कीट, या मेड़ों पर छिपे कीटों की मौजूदगी।
शाम का छिड़काव: दवा या जैविक घोल का छिड़काव शाम को करें, जब कीट सक्रिय होते हैं।
मेड़ों पर ध्यान: मेड़ों की घास साफ करें, क्योंकि यहीं कीट छिपते हैं।
निगरानी: फसल की नियमित जाँच करें, ताकि प्रकोप शुरू होते ही उपाय शुरू हो।
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फायदे: फसल सुरक्षित, मुनाफा बढ़े
सावरदेवी से बचाव के ये उपाय बालाघाट के किसानों के लिए वरदान हैं:
उपज में वृद्धि: समय पर नियंत्रण से 20-30% नुकसान बचेगा, और प्रति हेक्टेयर 40-50 क्विंटल उपज संभव।
लागत में कमी: जैविक उपाय सस्ते और टिकाऊ, रासायनिक दवा भी किफायती।
बाजार मूल्य: साफ-सुथरी फसल की MSP (₹2300-2500/क्विंटल) पर अच्छी कीमत।
पर्यावरण सुरक्षा: जैविक उपाय मिट्टी और पानी को नुकसान नहीं पहुँचाते।
भविष्य की राह, सतर्कता और तकनीक
बालाघाट जैसे धान उत्पादक जिलों में सावरदेवी का प्रकोप हर साल चुनौती बनता है। लेकिन डॉ. धुआरे के उपायों से किसान तैयार रह सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह लें, और सरकारी योजनाओं (जैसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन) से कीटनाशक और बीज पर सब्सिडी लें। नियमित निगरानी और समय पर छिड़काव से फसल सुरक्षित रहेगी।
सावरदेवी कीट से डरने की जरूरत नहीं। क्लोरोपाइरीफास या जैविक दशपर्णी अर्क और ब्रह्मास्त्र से फसल को बचाएँ। सही समय पर छिड़काव और मेड़ों की सफाई से धान की बंपर उपज पाएँ।
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