पशुओं के लिए ये बीमारी बन रही है काल, इलाज भी है मुश्किल, पहचानें लक्षण और बचाव के उपाय

किसान भाइयों, गाय, भैंस, बकरी और भेड़ जैसे पशु हमारे लिए परिवार की तरह हैं। लेकिन एक ऐसी बीमारी है, जो इन पशुओं को चुपके-चुपके कमजोर कर देती है, और वो है जोह्न की बीमारी। इसे पैराट्यूबरकुलोसिस भी कहते हैं। ये बीमारी पशुओं की आंतों को नुकसान पहुँचाती है, जिससे उनका वजन घटता है, दूध कम होता है और वो धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाते हैं। इसका इलाज मुश्किल और खर्चीला है, इसलिए सावधानी और जल्दी पहचान ही इसका सबसे अच्छा उपाय है। आइए, जानते हैं कि गाँव में अपने पशुओं को इस बीमारी से कैसे बचा सकते हैं।

जोह्न की बीमारी कैसे फैलती है

ये बीमारी एक खतरनाक बैक्टीरिया की वजह से होती है, जिसे माइकोबैक्टीरियम एवियम पैराट्यूबरकुलोसिस कहते हैं। ये बैक्टीरिया इतना चालाक है कि पशु के बीमार होने से पहले ही दूसरों में फैलना शुरू कर देता है। अगर कोई पशु संक्रमित है, तो उसका मल, दूध या थनों के जरिए ये बीमारी दूसरे पशुओं तक पहुँच सकती है। बछड़े अपनी माँ के दूध से या गर्भ में ही ये बीमारी पकड़ सकते हैं। अगर खेत का पानी या चारा गंदा हो जाए, तो भी ये फैलता है। सबसे बड़ी बात, इस बीमारी के लक्षण दिखने में कई साल लग जाते हैं, जिससे पशुपालक को पता ही नहीं चलता कि उनके झुंड में खतरा बढ़ रहा है।

पशुओं में इस बीमारी के लक्षण

जोह्न की बीमारी को पहचानना आसान नहीं, क्योंकि ये धीरे-धीरे पशु को कमजोर करती है। आमतौर पर 3 से 5 साल की उम्र में पशुओं में इसके लक्षण दिखते हैं। पशु को बार-बार पतला दस्त होने लगता है, जिससे उसका वजन तेजी से घटने लगता है। दूध देने वाली गाय या भैंस का दूध कम हो जाता है। हैरानी की बात ये है कि पशु की भूख तो बनी रहती है, लेकिन वो फिर भी कमजोर होता जाता है। अगर पशु को तनाव हुआ, जैसे उसे कहीं ले जाया गया या बेचा गया, तो लक्षण और तेजी से सामने आते हैं। गाँव में कई बार पशुपालक इन लक्षणों को दूसरी बीमारियों समझ लेते हैं, जिससे सही समय पर इलाज नहीं हो पाता।

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भारत में जोह्न की बीमारी की स्थिति

हमारे देश में गाय, भैंस और बकरियों की बड़ी तादाद इस बीमारी से जूझ रही है, लेकिन ज्यादातर पशुपालक इसकी जांच नहीं करवाते। गाँव में जांच के लिए सही उपकरण और किट्स की कमी है। विदेशों में ELISA जैसे टेस्ट आसानी से उपलब्ध हैं, जो जल्दी पता लगा लेते हैं कि पशु बीमार है या नहीं। लेकिन भारत में ये सुविधा अभी हर जगह नहीं है। इसका मतलब ये नहीं कि हम हार मान लें। गाँव के पशुपालक कुछ आसान उपाय अपनाकर अपने पशुओं को इस बीमारी से बचा सकते हैं।

बीमारी की जांच कैसे करें

जोह्न की बीमारी को पकड़ने के लिए कई तरह की जांच होती हैं। खून की जांच से पता चलता है कि पशु के शरीर में बीमारी से लड़ने वाली ताकत है या नहीं। मल की जांच से बैक्टीरिया का पता लगाया जाता है। कुछ खास टेस्ट, जैसे पीसीआर और कल्चर, बहुत सटीक होते हैं, लेकिन ये महँगे हैं और समय लेते हैं। अगर पशु मर जाए, तो पोस्टमार्टम से भी बीमारी की पुष्टि हो सकती है। लेकिन कोई भी एक टेस्ट पूरी तरह सही नहीं होता, इसलिए डॉक्टर अक्सर दो-तीन टेस्ट मिलाकर नतीजा निकालते हैं। गाँव में पशु चिकित्सक से संपर्क करके समय-समय पर जांच करवाना जरूरी है।

जोह्न की बीमारी से बचाव के आसान उपाय

किसान भाइयों, इस बीमारी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है सावधानी। अगर आपके झुंड में ये बीमारी नहीं है, तो नए पशु लाते समय उनकी अच्छे से जांच करवाएँ। संक्रमित पशुओं को तुरंत अलग करें और जरूरत पड़े तो झुंड से हटाएँ। बछड़ों को साफ-सुथरे माहौल में रखें और सिर्फ स्वस्थ माँ का दूध दें। पशुओं का मल सही तरीके से नष्ट करें, ताकि वो पानी या चारे में न मिले। हर 6 से 12 महीने में पूरे झुंड की जांच करवाएँ। गाँव में पशु चिकित्सक से बात करके सही सलाह लें। अगर सरकार की कोई राष्ट्रीय जांच योजना हो, तो उसमें शामिल हों, ताकि बीमारी को जड़ से खत्म किया जा सके।

पशुपालकों के लिए खास सलाह

जोह्न की बीमारी से लड़ना मुश्किल है, लेकिन नामुमकिन नहीं। अगर आपके झुंड में ये बीमारी पहले कभी नहीं आई, तो बचाव के सारे उपाय आज से ही शुरू कर दें। अगर बीमारी पकड़ में आ चुकी है, तो घबराएँ नहीं। अपने पशु चिकित्सक के साथ मिलकर पूरे झुंड की नियमित जांच करवाएँ। साफ-सफाई का खास ध्यान रखें, क्योंकि ये बीमारी गंदगी से तेजी से फैलती है। गाँव में अपने आसपास के पशुपालकों को भी इस बीमारी के बारे में बताएँ, ताकि सब मिलकर इसे रोक सकें। अपने पशुओं को स्वस्थ रखकर आप न सिर्फ़ दूध और आय बचा सकते हैं, बल्कि अपने परिवार की मेहनत को भी सुरक्षित रख सकते हैं।

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  • Shashikant

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