Singhade Ki Kheti: बिहार के सहरसा जिले के बलुआहाट गाँव में एक किसान ने बंजर और जलभराव वाली जमीन को सोने की खान में बदल दिया है। मोहम्मद ताहिर नाम के इस किसान ने बेकार पड़ी 2 बीघा जमीन पर सिंघाड़ा (जिसे पानी का फल या वाटर चेस्टनट भी कहते हैं) की खेती शुरू की, और आज वे सालाना 1 लाख रुपये से अधिक कमा रहे हैं।
यह फसल न केवल कम लागत में उगाई जा सकती है, बल्कि छठ महापर्व के दौरान इसकी मांग आसमान छू लेती है, जिससे कीमतें दोगुनी-तिगुनी हो जाती हैं। बिहार जैसे निचले इलाकों में मानसून के बाद पानी ठहरना आम समस्या है, लेकिन सिंघाड़ा जैसी जलीय फसल इसे अवसर में बदल सकती है। आइए जानते हैं कि यह फसल कैसे उगाई जाती है और इससे कैसे लाभ कमाया जा सकता है।
सिंघाड़ा: बंजर जमीन का साथी
सिंघाड़ा एक जलीय फसल है, जो तालाब, पोखर या जलभराव वाले खेतों में आसानी से उगती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह खासकर कोशी क्षेत्र के निचले इलाकों में लोकप्रिय हो रही है। यह फसल गर्मी के मौसम में अप्रैल-मई में नर्सरी से शुरू होती है और जून-जुलाई में रोपाई के बाद दिवाली-छठ तक तैयार हो जाती है। मीठा, रसीला और व्रत के लिए उपयुक्त यह फल पौष्टिक भी है इसमें प्रोटीन, आयरन और जिंक भरपूर होता है, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद माना जाता है।
छठ पूजा के दौरान बिहार और पूर्वी भारत में इसकी डिमांड चरम पर पहुँच जाती है, क्योंकि इसे प्रसाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। 2025 में भी विशेषज्ञों का अनुमान है कि छठ पर इसकी कीमतें 50-100 रुपये प्रति किलो तक पहुँच सकती हैं, जबकि सामान्य दिनों में 20-30 रुपये रहती हैं। बिहार सिंघाड़ा उत्पादन में देश में नंबर वन है, और यहाँ का रकबा लगातार बढ़ रहा है।
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बर्बाद जमीन से लाखों की कमाई
सहरसा के बलुआहाट में मोहम्मद ताहिर की 2 बीघा जमीन मानसून के बाद हमेशा पानी में डूब जाती थी, जिससे धान या सब्जियों की फसलें बर्बाद हो जाती थीं। लेकिन ताहिर ने हार नहीं मानी। उन्हें सिंघाड़ा की खेती के बारे में पता चला, तो उन्होंने अप्रैल में नर्सरी लगाई। जून में पौधों की रोपाई की, और अब उनकी फसल लहलहा रही है।
2 बीघा से उन्हें करीब 100 क्विंटल हरा सिंघाड़ा मिला, जिसकी बिक्री से 1 लाख रुपये का शुद्ध लाभ हुआ। ताहिर बताते हैं कि परिवार के 5 सदस्यों की मेहनत से यह संभव हुआ। उनकी सफलता ने आसपास के कई किसानों को प्रेरित किया है, जो अब अपनी बंजर भूमि पर भी इस फसल की ओर रुख कर रहे हैं। ताहिर की तरह, अगर आप निचले इलाकों में रहते हैं, तो यह फसल आपकी आय का नया स्रोत बन सकती है।
सिंघाड़ा उगाने का आसान तरीका
सिंघाड़ा की खेती के लिए ज्यादा उपजाऊ मिट्टी की जरूरत नहीं बल्कि 2-3 फीट पानी का भराव ही काफी है। अप्रैल-मई में नर्सरी तैयार करें: अच्छे बीज चुनें और उन्हें गीली मिट्टी में बोएँ। जून-जुलाई में मानसून शुरू होते ही 1-1 मीटर लंबी बेलें तोड़कर तालाब या खेत में रोप दें। रोपाई के समय पानी की गहराई 1.5-2 फीट रखें, और पूरे मौसम में इसे बनाए रखें। फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं – बस कभी-कभी खरपतवार हटाएँ और पोल्ट्री खाद या जैविक उर्वरक (फॉस्फोरस और पोटेशियम) डालें।
पहली कटाई सितंबर में हो सकती है, लेकिन मुख्य फसल नवंबर-दिसंबर में तैयार होती है। एक बीघा (करीब 0.25 हेक्टेयर) में 50-60 मन (लगभग 20-25 क्विंटल) पैदावार मिल सकती है। कुल लागत 20-30 हजार रुपये प्रति बीघा आती है, जिसमें बीज, खाद और मजदूरी शामिल है। शुद्ध लाभ 50-70 हजार रुपये प्रति बीघा तक पहुँच सकता है, खासकर छठ पर। अगर आप तालाब नहीं रखते, तो खेत में गड्ढे खोदकर पानी भर सकते हैं।
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छठ पर छप्परफाड़ कमाई का मौका
सिंघाड़ा की खेती का सबसे बड़ा फायदा इसकी कम लागत और उच्च मांग है। हरे फल की पैदावार 80-100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है, जबकि सूखी गोटियों से 17-20 क्विंटल मिल सकता है। कुल प्राप्ति 1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक, और शुद्ध लाभ 1 लाख से अधिक। छठ महापर्व पर बिहार के बाजारों में इसकी कीमतें आसमान छूती हैं, क्योंकि इसे व्रत और प्रसाद में इस्तेमाल किया जाता है। 2025 में भी छठ (नवंबर में) पर मांग दोगुनी होने की उम्मीद है।
इसके अलावा, सिंघाड़े का आटा व्रत के व्यंजनों में इस्तेमाल होता है, जो साल भर आय देता है। बिहार के अलावा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इसकी मांग बढ़ रही है। अगर आप इसे जैविक तरीके से उगाते हैं, तो शहरों के सुपरमार्केट में बेहतर दाम मिल सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें, फसल नाजुक होती है, इसलिए रोगों से बचाव के लिए समय पर छिड़काव करें।
सिंघाड़ा खेती अपनाने के टिप्स
अगर आप बंजर या जलभराव वाली जमीन पर खेती करना चाहते हैं, तो सिंघाड़ा एक बेहतरीन विकल्प है। सबसे पहले, स्थानीय कृषि केंद्र से प्रमाणित बीज लें और मिट्टी-पानी की जाँच करवाएँ। रोपाई के बाद पानी का स्तर न गिरने दें, और फसल पर नजर रखें। छठ से पहले बाजार सर्वे करें, ताकि सही दाम मिलें।
बिहार सरकार की योजनाओं, जैसे किसान क्रेडिट कार्ड, से सब्सिडी पर खाद-बीज लें। ताहिर की तरह, परिवार की मदद से काम करें तो मेहनत कम लगेगी। यह फसल न केवल आर्थिक लाभ देगी, बल्कि बंजर भूमि को उपयोगी बनाएगी। अगर आपके इलाके में भी जलभराव की समस्या है, तो आज ही शुरू करें अगले छठ पर आप भी ताहिर की तरह मुस्कुरा सकते हैं।
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